Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के नतीजों में औंधे मुंह गिरी BJP, RSS से अंदरखाने तकरार के बीच क्या इस नेता का करियर लगा दांव पर?
लोकसभा चुनाव के नतीजे आए 10 दिन हो गए. लेकिन एनडीए (NDA) के कुछ नेताओं को मनमुताबिक परिणाम नहीं मिलने की टीस रह-रह कर साल रही है. इस बीच महाराष्ट्र की सियासत लगातार करवट बदल रही है. ऐसे में कहा जा रहा है कि एक नेता का सियासी भविष्य दांव पर लग गया है.
RSS BJP Maharashtra Politics: लोकसभा चुनाव के नतीजे आए 10 दिन हो गए. लेकिन एनडीए (NDA) के कुछ नेताओं को मनमुताबिक परिणाम नहीं मिलने की टीस रह-रह कर साल रही है. इस बीच महाराष्ट्र की सियासत लगातार करवट बदल रही है. ऐसे में कहा जा रहा है कि एक नेता का सियासी भविष्य दांव पर लग गया है. हालांकि नतीजों पर प्रधानमंत्री मोदी का बयान आने के बाद बीजेपी (BJP) नेताओं ने फौरन नतीजों के विश्लेषण की बात कहकर सार्वजनिक बयानबाजी करना बंद कर दी थी. लेकिन एनडीए में अंदरखाने उठ रही आवाजें अब सार्वजनिक होकर मीडिया के कैमरों तक आने लगी हैं.
महराष्ट्र में क्या खिचड़ी पक रही है?
महाराष्ट्र से पहली गैर सियासी प्रतिक्रिया आई 10 जून को संघ के मुख्यालय नागपुर से. जिसके कुछ घंटों बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के मुंह से आखिर निकल ही गया कि क्यों नुकसान हुआ? शिवसेना सुप्रीमो ने कहा- 'अबकी बार 400 पर' वाले नारे ने बैकफायर किया'. हालांकि शिंदे ने बड़े सधे शब्दों में ये बात कही. लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों का मानना है कि ये नारा किसी ब्लंडर से कम नहीं था.
ये भी पढ़ें- संघ बनाम बीजेपी: 'भगवान राम ने अहंकार पर प्रहार किया', RSS ने फिर साधा मोदी सरकार पर निशाना
साफ है कि महाराष्ट्र उन प्रमुख राज्यों में से एक रहा जिसने पीएम मोदी के 'अबकी बार, 400 पार' के दावे को पंचर कर दिया. BJP यहां 9 सीटों पर सिमट गई. ये आंकड़ा पांच साल पहले महाराष्ट्र में जीती गई बीजेपी की सीटों की संख्या के आधे से भी कम रहा. महाराष्ट्र की सियासत (Maharashtra Politics) में हुई सोशल इंजीनियरिंग काम नहीं आई. उसके सहयोगी यानी महायुति (NDA) में शामिल साथी शिवसेना और एनसीपी भी वांक्षित नतीजे देने में विफल रहे.
हालांकि विभाजित शिवसेना, जो अब वास्तविक शिवसेना है ने मौके पर चौका मारते हुए शानदा प्रदर्शन किया. लेकिन विभाजित एनसीपी, जो अब आधिकारिक एनसीपी है वो और उसके सर्वेसर्वा अजित पवार का सियासी फ्यूचर खतरे में दिख रहा है. न्यूज़ एजेंसी IANS के मुताबिक, बीजेपी महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की संभावनाओं का आकलन करने के लिए एक इंटरनल सर्वे कर रही है. यानी बीजेपी विधानसभा चुनावों के लिए कोई चौंकाने वाला फैसला ले सकती है.
क्योंकि एनसीपी प्रमुख और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार, जिन्होंने चाचा शरद पवार के खिलाफ बगावत करते हुए कई नेताओं के साथ पार्टी से EXIT किया था, उनका साथ बीजेपी को महंगा पड़ गया. कहा तो यह भी जा रहा है कि पवार का घर टूटने से सहानुभूति की लहर शरद पवार के खेमे को मिली और अजित पवार के हाथ लगभग खाली रह गए. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र में बीजेपी पर परिवार तोड़ने जैसे आरोप लगे. कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर ये भी कहा कि यहां- 'खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़ा बारा आना वाली कहावत फिट बैठी'.
अजित पवार की एनसीपी ने 4 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल एक जीतने में सफल रही. इसकी तुलना एकनाथ शिंदे के प्रदर्शन से करें, जिन्होंने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी, शिवसेना को विभाजित किया था, उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाया था और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. शिंदे की सेना ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा और बीजेपी से बेहतर स्ट्राइक रेट के साथ 7 सीटें जीतीं.
किसका भविष्य दांव पर है. किसका नहीं है? इस सवाल को आगे बढ़ाने से पहले नजर डालिए इस टैली पर
पार्टी | सीट जीतीं | कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा | वोट शेयर |
बीजेपी | 9 | 28 | 26.19% |
शिवसेना | 7 | 15 | 12.95% |
एनसीपी | 1 | 4 | 03.60% |
नतीजों की वजह | चौंकाने वाली | किस पर फूटेगा ठीकरा? | महाराष्ट्र पॉलिटिक्स |
ये भी पढ़ें- भीषण गर्मी से 'तंदूर' बनी दिल्ली! कब तक चलेगा लू का टॉर्चर, मौसम विभाग ने बता दी तारीख
गौरतलब है कि बीजेपी ने जब बेमेल विचारधारा वाली एनसीपी से हाथ मिलाया था तब RSS ने बीजेपी-अजित पवार गठबंधन की आलोचना करते हुए फटकार लगाई थी.
आगे RSS ने अजित पवार के साथ सरकार बनाने को लेकर बीजेपी की बुद्धिमत्ता पर खुलकर सवाल उठाए. RSS की पत्रिका 'ऑर्गनाइज़र' के एक लेख में बीजेपी के इस कदम की आलोचना की गई है और इसे अनावश्यक यानी गैरजरूरी राजनीति कहा गया है. इसमें कहा गया कि अजित पवार की एनसीपी के एनडीए में शामिल होने से बीजेपी की साख पर बट्टा लगा और उसकी ब्रांड वैल्यू कम हो गई.
राज्य में सरकार बनाई लेकिन क्रेडिबिलिटी खो दी?
TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र में बीजेपी के इस सियासी प्रयोग की खूब आलोचना हुई. इसका असर राज्य के नतीजों में भी दिखा. कांग्रेस ने साइलेंट होकर अपने एजेंडे पर फोकस किया और बीजेपी को हुए डैमेज का फायदा उठाते हुए अपना स्कोर हाई कर लिया. बीजेपी-एनसीपी के मेल को लोगों ने अनावश्यक राजनीति और टाले जा सकने वाले जोड़-तोड़ की एक मिलाल बताया था. जानकारों का यह भी मानना है कि महाराष्ट्र के अलावा बंगाल में भी टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने बीजेपी में शामिल एनसीपी नेताओं पर रिएक्शन देते हुए- 'दाग अच्छे हैं.. और बीजेपी की वाशिंग मशीन' जैसे शब्दों के साथ हमला बोला था. ममता बनर्जी की एक रैली में वाशिंग मशीन रखकर उसका डेमो देते हुए पॉलिटिकल सटायर पेश किया गया था.
अजित पवार के नेतृत्व वाला NCP गुट BJP में शामिल हो गया. हालांकि BJP और विभाजित Shiv Sena (शिवसेना) के पास अच्छा बहुमत था. अजित पवार पर भी अदूरदर्शी होने के आरोप लगे. उनके फैसले एक के बाद एक गलत साबित हुए. हालांकि बीजेपी ने अजित पवार से हाथ क्यों मिलाया? इस ज्वलंत सवाल को लेकर महाराष्ट्र में बीजेपी के समर्थक आहत हुए. क्योंकि उन्होंने दशकों से महाराष्ट्र में कांग्रेस की इस विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी? उन्होंने बहुत कुछ सहा लेकिन वो सब भुलाकर बीजेपी ने एक ही झटके में, अजित पवार से हाथ मिलाकर अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी.
मंत्रि पद को लेकर होगी टूट?
चुनाव परिणामों पर संघ प्रमुख और इंद्रेश कुमार के बयानों को एनसीपी नेताओं ने इसे आरएसएस पदाधिकारियों की निजी राय बताकर खुद की आलोचना को कुछ कम करने की कोशिश की है. अजित पवार के नेताओं का दावा है कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन जारी रहेगा. लेकिन चुनाव के बाद मंत्री पद को लेकर एनसीपी की बार्गेनिंग पावर यानी सौदेबाजी की शक्ति में जो कमी महसूस की जा रही थी वह खुलकर तब सामने आई जिस दिन पीएम मोदी ने अपनी मंत्रिपरिषद का गठन किया.
एनसीपी के दावों को नजरअंदाज किया गया
NCP, NDA के उन सहयोगियों में से एक है जिनके पास मोदी 3.0 में कोई मंत्री नहीं है. जब NDA सरकार की रूपरेखा पर चर्चा हो रही थी, तब पोर्टफोलियो आवंटन पर अपनी निराशा जताने वाली एनसीपी पहली पार्टी थी. दरअसल अजीत पवार की पार्टी ने अपने नेता प्रफुल पटेल के लिए पेश किए जा रहे स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री पद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. पवार ने कहा कि यह सर्वसम्मति से लिया गया एक सही फैसला था क्योंकि प्रफुल्ल पटेल पहले केंद्र में कैबिनेट मंत्री रह चुके थे ऐसे में प्रस्तावित पद ग्रहण करना उनके लिए डिमोशन माना जाता.
इसके बाद पटेल ने कहा था कि हमने बीजेपी नेतृत्व के सामने अपनी बात रख दी है और उन्होंने पहले ही हमें कहा है कि बस कुछ दिन इंतजार करें, वे आगे चीजों पर विचार करेंगे.
इसके बाद अजित पवार ने बारामती से लोकसभा चुनाव हारी अपनी पत्नी को राज्यसभा में भेजने का दांव चला है. ऐसे में सोशल गुडविल हो या जनता जनार्दन की सहानुभूति अजित पवार हर मोर्चे पर बैकफुट पर दिख रहे हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद हाशिए पर चल रहे अजित पवार अब एनडीए के भीतर बड़े दावे करने के लिए राज्यसभा में सीट मिलने का इंतजार कर रहे हैं.
शिंदे का रुख देखने वाला होगा
साफ है कि बीजेपी अब इस साल के आखिर में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कमर कस चुकी है. इसलिए अजीत पवार को आने वाले समय में खुद के लिए असहज करने वाली स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है. कुल मिलाकर अजित पवार की सियासी नैया डगमगा रही है. क्योंकि एकनाथ शिंदे ने साबित कर दिया है कि वह भगवा पार्टी के लिए अजित पवार की तुलना में अधिक मूल्यवान होंगे.