Manoj Sinha LT Governor: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अपने ही पहले कार्यकाल से कश्मीर को लेकर काफी संवेदनशील रही है. वहां सरकार ने कई विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया है. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की पोस्टिंग के बाद कामों में गति देखी गई. इसी कड़ी में अब सरकार ने निर्णय लिया है कि जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल पहले से अधिक ज्यादा शक्तिशाली होंगे. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर इसकी जानकारी दी है. अब उपराज्यपाल की मंजूरी के बाद ही किसी भी फैसले को जमीन पर उतारा जाएगा. इसका मतलब हुआ कि वहां दिल्ली वाला फॉर्मूला लगाया गया है.


उपराज्यपाल की शक्तियों में इजाफा


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असल में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवा से जुड़े विषयों पर फैसला लेने से पूर्व उपराज्यपाल की मंजूरी अनिवार्य है. केंद्र के इस फैसले के बाद अब जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल भी दिल्ली के उपराज्यपाल की तरह अधिकारियों के तबादले से संबंधित फैसले ले सकेंगे. महाधिवक्ता और न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति से संबंधित फैसला लेने से पूर्व अब उपराज्यपाल की अनुमति अनिवार्य होगी, लेकिन पहले ऐसा नहीं था.


बिना LG के अनुमति के नहीं होंगे बड़े फैसले


इस पूरे फैसले का लब्बोलुआब यही है कि दिल्ली के एलजी को जो प्रशासनिक शक्तियां मिली हुईं हैं कमोबेश वही शक्तियां जम्मू कश्मीर के एलजी को भी दे दी गई है. यहां भी सरकार बिना एलजी के अनुमति के ट्रांसफर पोस्टिंग नहीं हो पाएगी. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत संशोधित कर नियमों को अधिसूचित किया जाएगा. ऐसा कर उपराज्यपाल की शक्तियों में इजाफा किया गया है.


शक्तियों को बढ़ाकर बड़े संकेत दे दिए


इस संशोधन के बाद अब उपराज्यपाल पुलिस, कानून-व्यवस्था और ऑल इंडिया सर्विस से जुड़े मामलों पर निर्णय ले सकेंगे. सितंबर में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इससे पहले, केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाकर बड़े संकेत दे दिए हैं कि सरकार किसी की भी बने, लेकिन अंतिम निर्णय लेने की शक्ति उपराज्यपाल के पास ही होगी.


विधानसभा चुनाव की आहट


उधर केंद्र सरकार के इस निर्णय पर प्रतिक्रियाओं का दौर भी शुरू हो गया है. पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने लिखा कि एक और संकेत है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव नजदीक हैं. यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण, अविभाजित राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समय सीमा निर्धारित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता इन चुनावों के लिए एक शर्त है. जम्मू-कश्मीर के लोग शक्तिहीन, रबर स्टांप सीएम से बेहतर के हकदार हैं, जिन्हें अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए एलजी से भीख मांगनी पड़ेगी.


मालूम हो कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम संसद में पारित किया गया था. ऐसा करके जम्मू-कश्मीर को दो भागों में विभाजित कर उसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था. इसमें पहला जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख है. अपने इस फैसले को जमीन पर उतारने से पहले केंद्र ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था. फिलहाल अब केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल को ज्यादा ताकत देकर एक और बड़ा निर्णय ले लिया है.