Raja Bhaiya: राजा भैया ने ऐसा फैसला किया है कि ना इधर के लग रहे हैं और ना उधर के लग रहे हैं. लेकिन इस बीच उन्होंने अपने समर्थकों को क्लियर कह दिया है कि वे जिसे चाहें उसका समर्थन कर सकते हैं. लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं हो रही है. इसे समझने की जरूरत है.
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Raghuraj Pratap Singh: लोकसभा चुनाव चल रहें हों और उत्तर प्रदेश में तगड़ी सियासी उठापटक ना हो, ऐसा हो सकता है क्या? बीजेपी कांग्रेस सपा बसपा तो केंद्र बिंदु बने ही हुए हैं, क्षत्रप भी पीछे नहीं हैं. पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह ने जब प्रतापगढ़ वाले राजा भैया से मुलाकात की तभी से उनके ऊपर निगाहें टिकी हुई थीं. अब जाकर राजा भैया ने फैसला ले लिया है.
असल में हुआ यह कि रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने लोकसभा चुनाव को लेकर बड़ा फैसला किया है. राजा भैया ने समर्थकों के हुजूम के बीच ऐलान किया कि वह किसी को समर्थन नहीं देंगे और प्रतापगढ़-कौशांबी लोकसभा सीट पर सभी समर्थकों से कहा है कि वे अपने विवेक के अनुसार वोट देने दें, समर्थक जिसे भी चाहें वोट दे सकते हैं. इसके अलावा एक और बाहुबली धनञ्जय सिंह ने फैसला किया है कि वे बीजेपी का समर्थन करेंगे.
यह संयोग ही है कि रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने फैसला उस समय किया है जब उनकी नजदीकी बीजेपी से हो चली है. पहले अमित शाह से मुलाकात और फिर उसके बाद स्थानीय बीजेपी नेताओं का उनके यहां आना-जाना लगा रहना. ऐसे में उनका यह ऐलान राजनीति पंडितों को पच नहीं रहा है. राजा भैया को आखिर यह फैसला क्यों लेना पड़ा जबकि वे खुलकर बीजेपी के समर्थन का ऐलान कर सकते थे. तो क्या वे अंदरखाने से बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं.
राजा भैया के इस ऐलान के पहले है केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और कौशांबी से बीजेपी सांसद विनोद सोनकर ने कुंडा स्थित उनके आवास जाकर उनसे मुलाकात की और कौशांबी सीट पर बीजेपी के लिए समर्थन भी मांगा. बताया गया कि काफी देर तक यह बैठक चली है. लेकिन चर्चा यह भी राजा भैया से मिलने सपा प्रत्याशी भी आए हुए थे. शायद इसीलिए राजा भैया ने बीच का रास्ता निकाला और उन्होंने किसी का भी समर्थन नहीं करने का ऐलान किया और फैसला समर्थकों पर छोड़ दिया है.
यह समझने की जरूरत है कि राजा भैया की अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक है और उनके सपा बसपा से भी संबंध रहे हैं. विधानसभा चुनावों के दौरान तो उनकी मुलाकात अखिलेश यादव से भी हो चुकी है. बसपा से भी उनके सबंध रहे लेकिन बाद में उनकी बसपा से अदावत भी किसी से नहीं छिपी है. फिर उनकी अदावत अखिलेश से भो हो गई. दोनों के बीच शब्दबाण भी चले. अब वे बीजेपी के नजदीक कहे जाते हैं लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने चौंकाने वाला फैसला लिया है. हालांकि उधर धनंजय सिंह ने तो बीजेपी का समर्थन करने का फैसला लिया है.