राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम ने अशोक गहलोत की रिवाज बदलने की कोशिश को भले पूरा नहीं किया हो, लेकिन उन्हें लोकसभा चुनाव को लेकर बिसात बिछाने की शुरुआत करने का मौका दे दिया है. राजस्थान के 119 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा के खाते में 115 सीटें और कांग्रेस की झोली में 69 सीटें गई हैं. जनादेश देखकर अशोक गहलोत ने इस्तीफा दे दिया और भाजपा ने सरकार ने सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी है. दूसरी ओर राजस्थान में सत्ता गंवाने के बावजूद वोटों के आंकड़ों ने अशोक गहलोत को ज्यादा निराश नहीं किया है और राहुल गांधी की आंखों की चमक बरकरार रखी है. अशोक गहलोत अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं को चुनाव में नहीं भुना पाए और राजस्थान में सरकार बदले जाने का सियासी रिवाज भी नहीं बदल पाए, मगर आलाकमान को बताने लायक डेटा जुटा लिया है. 72 वर्षीय अशोक गहलोत खुद सरदारपुरा विधानसभा सीट से 26396 वोटों से जीत गए. उन्होंने बीजेपी के महेंद्र सिंह राठौड़ को मात दी है. आइए, जानते हैं कि राजस्थान चुनाव के नतीजे के ऐसे कौन से आंकड़े हैं जो सियासी तौर पर अशोक गहलोत के लिए इमेज सेविंग बन सकते हैं.


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लोकसभा चुनाव 2024 के सेमीफाइनल में राजस्थान में कांग्रेस का वोट स्थिर


हाल ही में खत्म हुए पांच राज्यों के चुनाव को इसलिए ही सेमीफाइनल कहा जाता रहा है कि कुछ ही महीने बाद लोकसभा चुनाव है. साथ ही इन पांच राज्यों में 83 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से अकेले राजस्थान में 25 लोकसभा सीट हैं. राजस्थान में हर बार राज्य सरकार बदले जाने के पैटर्न के साथ एक खास बात यह भी रही कि साल 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई और अशोक गहलोत सीएम बने थे, लेकिन छह महीने से भी कम समय बाद हुए लोकसभा चुनाव 2019 में राजस्थान के 25 सीट में 24 भाजपा और एक सीट आरएलपी के खाते में गई थी. इसको लेकर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पिछले प्रदर्शन यानी जीरो सीट से आगे बढ़ने की उम्मीद कर रही है. क्योंकि राजस्थान में भाजपा की जीत भले हो गई हो, कांग्रेस के वोट शेयर में मामूली कमी दर्ज की है. 


राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयरिंग के अंतर की तुलना


राजस्थान चुनाव के नतीजे के मुताबिक बीजेपी को 41.69 फीसदी और कांग्रेस को 39.53 प्रतिशत वोट मिले. राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 के नतीजे में बीजेपी को 39.3 फीसदी और कांग्रेस को 39.8 फीसदी वोट मिले थे. उस समय बीजेपी ने 73 सीटों पर कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत हासिल की थी. पिछले और इस बार के चुनावों नतीजे को देखा जाए तो बीजेपी का वोट शेयर सिर्फ दो फीसदी बढ़ा है, लेकिन सीटें 42 बढ़ गई हैं. वहीं, पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस का वोट प्रतिशत  0.3 फीसदी घट गया है, लेकिन 30 सीटें कम हो गई हैं. हालांकि, 2018 में जीतने और हारने वाली पार्टियों के बीच वोट शेयर का जो अंतर महज 0.5 फीसदी था, वह 2023 में दो फीसदी से ऊपर हो गया.


कांग्रेस की चुनावी हार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराए जा रहे राहुल गांधी


राहुल गांधी की आंखों की चमक बढ़ाने के लिए एक आंकड़ा यह भी है कि इस बार चुनावी राज्यों में हार के लिए कोई उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा. क्योंकि भले ही वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और स्टार प्रचारक हों, लेकिन इस बार उन्हें राज्य की लीडरशिप को ही फ्रंट फुट पर खेलने दिया और खुद बैक सीट पर रहे. भारत जोड़ो यात्रा को तेलंगाना में कांग्रेस की जीत का श्रेय दिया जा रहा है, मगर तेलंगाना से ज्यादा दिन गुजारने के बावजूद मध्य प्रदेश और राजस्थान में हार के लिए उनका नाम पहले की तरह नहीं लिया जा रहा. वहीं, जातिगत जनगणना और सरकारी अधिकारियों में जाति का मुद्दा लोकसभा चुनाव तक छाए रहने की उम्मीद है. 


नवगठित जिले से नहीं मिल पाया फायदा, 2024 पर गहलोत की निगाहें


वहीं, राजस्थान में लंबे समय से जारी नए जिलों की मांग को अशोक गहलोत ने चुनाव से ठीक पहले पूरी कर दी थी. गहलोत ने अपने आखिरी बजट सत्र में नए जिलों के गठन का बड़ा दांव खेलते हुए नए जिले बनाने की घोषणा की. हालांकि, यह दांव विधानसभा चुनाव में बुरी तरह फेल हो गया, मगर माना जा रहा है कि जयपुर, जोधपुर को छोड़कर 16 नए जिलों को लेकर कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है. इस बार तो कांग्रेस 16 नवगठित जिलों में से केवल दो सीट पर ही जीत हासिल कर पाई.