UNSC Reforms: संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज (Ruchira Kamboj) ने बड़ा बयान दिया है. सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार पर चर्चा के दौरान, भारत की नेतृत्व क्षमता के बारे में बताया. रुचिरा ने कहा, 'सुरक्षा परिषद में सुधार अहम मसला है. आप अच्छी तरह जानते हैं कि 1990 के दशक की शुरुआत से इस पर चर्चा हो रही है. 2000 में मिलेनियम शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं ने सुरक्षा परिषद के सभी पहलुओं में व्यापक सुधार करने के प्रयासों को तेज करने का संकल्प लिया था. करीब एक चौथाई सदी बीत चुकी है. दुनिया और हमारी आने वाली पीढ़ियां अब और इंतजार नहीं कर सकतीं.'


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और कितना इंतजार?


भारतीय अधिकारी ने वैश्विक नेताओं को दो टूक चेतावनी देते हुए कहा, 'आखिर हमें और कितने समय तक इंतजार करना चाहिए? इस साल सितंबर में भविष्य का शिखर सम्मेलन और अगले साल संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ दोनों एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं. उन आयोजनों को सफल बनाने के लिए हमें ठोस प्रगति करने का लक्ष्य रखना चाहिए.'


'खत्म हो जाएगी यूएनएसी की प्राथमिकता'


भारतीय अधिकारी ने कहा, 'हमें युवा और भावी पीढ़ियों की आवाज पर ध्यान देते हुए सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधारों को तेजी से लागू करना चाहिए. खासकर अफ्रीका और अन्य जगहों में जहां ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने की मांग और तेज हुई है. सभी जगह खास ध्यान देने की जरूरत है. वरना वो दिन दूर नहीं, जब हम सभी सुरक्षा परिषद को गुमनामी और अप्रासंगिकता के रास्ते पर भेजने की दिशा में कदम उठा लेंगे.'


भारत ने पेश किया 'G4 मॉडल'


कंबोज ने संयुक्त राष्ट्र में त्वरित सुधारों के लिए जी-4 मॉडल पेश किया. उसके बारे में बताते हुए रुचिरा ने कहा, 'UN में बदलाव की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. इसे ध्यान में रखते हुए जी4 मॉडल का प्रस्ताव है कि 6 स्थायी और चार या पांच गैर-स्थायी सदस्यों को जोड़कर सुरक्षा परिषद की सदस्यता को मौजूदा 15 से बढ़कर 25 किया जाए. UNSC में 2 अफ्रीकी देशों और दो एशियाई देशों, एक लातिन अमेरिकी और एक कैरेबियाई और पश्चिमी यूरोपीय देश को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किया जाए. कंबोज ने कहा कि G4 मॉडल यह नहीं बताता कि कौन से देश नए स्थायी सदस्य होंगे. ये फैसला लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव के जरिये महासभा ही करेगी.



भारत का कड़ा रुख


भारत ने अब और देरी को रोकने के लिए अपना  रुख कड़ा किया है. गौरतलब है कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस को भी भारत की पर्मानेंट सीट से कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अकेले चीन इसमें अड़ंगा डाल रहा है. यूरोप के कई देश भारत को स्थाई सीट देने का समर्थन करते हैं. अरबपति एलन मस्क ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थाई सदस्यता का समर्थन किया है. 


सुरक्षा परिषद में बदलाव की जरूरत क्यों?


जियोपॉलिटिक्स के जानकारों के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में बदलाव की इसलिए जरूरत है कि क्योंकि 1945 में इसकी स्थापना उस समय के भू-राजनीति के हिसाब से की गई थी. आज की मौजूदा भू-राजनीति उस समय के हिसाब से दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है. 80 साल पहले उस दौर में मीडिया और सोशल मीडिया नहीं थे. दुनिया में गिने चुने अखबार हुआ करते थे. केवल अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस ही बड़ी ताकतें थीं. लेकिन आज भारत, जर्मनी और जापान बीते कुछ दशक से वर्ल्ड प्लेयर बनकर उभरे हैं. 


सुरक्षा परिषद में शीत युद्ध के बाद से ही बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही और इसकी मांग भी हो रही है. लेकिन अब तक इसमें कायमाबी नहीं मिली. इस समय सुरक्षा परिषद में यूरोप का सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व है, जहां दुनिया की कुल आबादी के महज 5% लोग रहते हैं. जाहिर है ये सामाजिक न्याय के सिद्धांत के भी खिलाफ है.


अमेरिका और यूरोप के वर्चस्व से बाकी देशों में भले ही हीनता का भाव यानी इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स न फैले, लेकिन वहां के लोगों में सुपीरियर होने यानी 'अहम ब्रह्मास्मि' (मैं ही सबकुछ हूं) का अहम और वहम दोनों मजबूत हो सकते हैं. अमेरिका और यूरोप में भारत और एशियाई मूल के लोगों के खिलाफ हो रहे हमलों यानी 'हेट क्राइम' (Hate crime) को भी आप इसी से जोड़कर देख सकते हैं.  


वहीं यूएन के इस सबसे अहम निकाय में अफ्रीकी देशों का कोई स्थाई सदस्य नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र का 50 फीसदी काम अकेले अफ्रीका देशों से संबंधित है. यही वजह है कि शनिवार को भारतीय अधिकारी रुचिरा कांबोज ने अफ्रीका की भागीदारी का मुद्दा भी उठाया. गौरतलब है कि भारत अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल कराके अपने वैश्विक नेतृत्व की झलक दुनिया को दिखा चुका है. दुनिया में शांति स्थापित करने वाले अभियानों में भी भारत अहम भूमिका निभा रहा है. लेकिन सुरक्षा परिषद के सदस्य भारत की भूमिका को अबतक नजरअंदाज करते आए हैं.


संघर्ष रोकने की मांग


इस अहम बैठक के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दुनियाभर में संघर्षरत गुटों से मुस्लिम सुमदाय के पवित्र महीने रमजान के दौरान संघर्ष रोकने की अपील की. UNSC ने कहा सीजफायर होने पर 2 करोड़ से ज्यादा लोगों तक खाद्य सामग्री और दवाएं पहुंचाई जा सकेगी. गौरतलब है कि रमजान का महीना सोमवार से शुरू होने की उम्मीद है. खासकर सूडान और गाजा में लड़ाई रोकने के लिए चर्चा हो रही है.