Parliament Budget Session 2024: संसद के बजट सत्र को एक और दिन के लिए बढ़ा दिया गया है. अब यह सत्र नौ फरवरी (शुक्रवार) की जगह उसके अगले दिन 10 फरवरी (शनिवार) तक चलेगा. इस बीच मोदी सरकार बजट सत्र के अंतिम दिन संसद में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन की सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन पर श्वेत पत्र (White Paper On Economy) लाने वाली है. 


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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में पीएम मोदी का विपक्ष पर निशाना


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (5 फरवरी) को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए कांग्रेस पर परिवारवाद, महंगाई, आर्थिक नाकामियों और विकास की सुस्त स्पीड को लेकर निशाना साधा था. लोकसभा चुनाव से पहले संसद के आखिरी सत्र यानी काफी अहम बजट  सेशन में यूपीए सरकार के 10 सालों के आर्थिक कुप्रबंधन को लेकर मोदी सरकार श्वेत पत्र लाएगी. 


संसद में पेश श्वेत पत्र में आर्थिक कुप्रबंधन के अलावा यूपीए सरकार के दौरान उठाए जा सकने वाले सकारात्मक कदमों के असर के बारे में भी बात की जाएगी. साथ ही इस श्वेत पत्र में यूपीए शासनकाल में भारत की आर्थिक दुर्गति और अर्थव्यवस्था पर पड़े नकारात्मक प्रभावों को भी विस्तार से रखा जाएगा.


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट भाषण ने किया था जल्द श्वेत पत्र लाने का जिक्र


इससे पहले केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण ने कहा था कि सरकार 2014 से पहले के 'इकोनॉमी मिसमैनेजमेंट' को लेकर श्वेतपत्र लाने की तैयारी कर रही है. वित्त मंत्री ने घोषणा की थी, "अब यह देखना उचित है कि हम 2014 तक कहां थे और अब कहां हैं. मोदी सरकार सदन के पटल पर एक श्वेत पत्र रखेगी." साल 2004 से 2014 तक केंद्र में 10 साल तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी. इसके बाद मई 2014 में केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार आई थी.


लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) से पहले अंतरिम बजट के ठीक बाद इस एक्शन को मोदी सरकार के इस बड़े रणनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है. आइए, जानते हैं कि श्वेत पत्र क्या होता है? इसके साथ ही यूपीए शासन के 10 साल की आर्थिक नीतियों (Economic Policy) को नाकाम बताने से चुनाव पर कैसे असर पड़ सकता है.


श्वेतपत्र क्या होता है? द चर्चिल पेपर क्या है


देशों या राजनेताओं की ओर से जारी किया जाने वाला श्वेतपत्र एक चुनौतीपूर्ण मुद्दे पर जानकारी देने के लिए डिटेल्ड रिपोर्ट का काम करता है. किसी मुद्दे पर जब कई दृष्टिकोण एक साथ आते हैं तो लोगों के लिए समझने में मुश्किल होती है. आमतौर पर, उसी परिस्थिति में श्वेत पत्र जारी किया जाता है. इस दस्तावेज के जरिए मुद्दों को स्पष्ट किया जाता है, उसके हल ढूंढे जाते हैं और निष्कर्ष भी निकाले जा सकते हैं. हालांकि, श्वेतपत्र (White Paper) कोई नया शब्द नहीं है.


ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने साल 1922 में एक दंगे को संबोधित करने के लिए पहला "श्वेत पत्र" जारी किया था. यह दस्तावेज बाद में चर्चिल व्हाइट पेपर (Churchill White Paper) के नाम से मशहूर हुआ. बहुत साल बाद तक भी यह शब्द ऐसे ही बोला जाता रहा है. 


श्वेतपत्र का क्या महत्व है, इसकी मांग कब और क्यों की जाती है 


लोकतांत्रिक देशों में श्वेतपत्र काफी महत्व रखता है. क्योंकि राजनेताओं के लिए नीतियों पर अपनी राय जाहिर करने और उन्हें जनता तक पहुंचाने के साधन के रूप में श्वेतपत्र बड़ा काम करता है. कनाडा जैसे कई देशों में वाइट पेपर के जरिए सीधे जनता को सूचित किया जाता है. माना जाता है कि इससे अलग-अलग नीतियों पर जनता की राय को बढ़ावा मिलता है. दूसरी ओर श्वेतपत्र न केवल तब जारी किए जाते हैं जब स्पष्टता की कमी होती है बल्कि तब भी जारी किए जाते हैं जब सुधार की मांग की जाती है. हालांकि, इसमें कई विषयों को कवर किया जा सकता है. 


कई बार जवाबदेही म्केभाने  मामलों में भी श्वेतपत्र को जारी किया जाता है. कोविड-19 के बाद चीन ने एक श्वेतपत्र जारी कर कहा था कि वैश्विक महामारी के दौरान उनसे कोई लापरवाही नहीं हुई. चीन ने किसी भी दोष से बचने के मकसद से तुरंत दुनिया के साथ पूरी जानकारी साझा करने का दावा किया था. इसी तरह, कई बड़ी कंपनियां भी अक्सर प्रोडक्ट्स या टेक्नोलॉजी को दुनिया के सामने पेश करने के लिए श्वेतपत्र जारी करती हैं.


लोकसभा चुनाव 2024 में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा को मिलेगा बूस्टर डोज


लोकसभा चुनाव 2024 में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है. संसद में पीएम मोदी ने अकेले भाजपा को 370 और एनडीए को 400 से ज्यादा सीटों पर जीत मिलने का भरोसा जताया है. वहीं, मोदी सरकार को सत्ता से निकाल बाहर करने के लिए बने विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन का हाल चुनाव से पहले ही बुरा होता जा रहा है. इस बीच यूपीए के शासनकाल में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार की आर्थिक नीतियों पर चर्चा और उससे निकले चुनावी मुद्दे कांग्रेस को डिफेंस मोड में ला देगी और भाजपा को आक्रामक प्रचार का मौका मिलेगा.