Captain Anshuman Singh Parents: शहीद हुए कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने बहू पर गंभीर आरोप लगाए हैं. देश के लिए कैप्टन अंशुमान सिंह ने सर्वोच्च बलिदान दिया है. कैप्टन अंशुमान के शहीद होने के बाद उनके माता-पिता एनओके की पॉलिसी में बदवाल की मांग कर रहे हैं. जानिए आखिर क्या है पूरा विवाद, क्या है यह NOK ‘Next Of Kin' नियम.
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Captain Anshuman Singh: देश के लिए कैप्टन अंशुमान सिंह ने सर्वोच्च बलिदान दिया है. कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से नवाजा गया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह की पत्नी और मां मंजू को कीर्ति चक्र सम्मान दिया था. लेकिन अब शहीद अंशुमान के परिवार की तरफ से 'नेक्स्ट ऑफ किन' यानी 'आश्रित' से जुड़ी पॉलिसी को लेकर सवाल उठाया जा रहा है. आज हम आपको बताएंगे कि 'नेक्स्ट ऑफ किन' पॉलिसी क्या है और ये कैसे काम करता है. इससे किसको फायदा मिलता है. इससे पहले जानते हैं कैप्टन अंशुमान सिंह के माता पिता ने अपनी बहू पर क्या गंभीर आरोप लगाए हैं.
'बेटा शहीद हो गया, बहू सबकुछ लेकर चली गई'
‘ना तो बहु मेरे पास है और ना बेटा… और ना वह सम्मान (कीर्ति चक्र), जिसे हाथ पर रखकर कम से कम देख सकूं या फोटो खींच संकू. हमारे यूपी और बिहार की बहुएं ऐसी नहीं होती हैं, वह हमारे साथ रहती हैं…’ ये कहना है कीर्ति चक्र से सम्मानित शहीद अंशुमन सिंह के माता-पिता का. पांच जुलाई को कैप्टन शहीद अंशुमान सिंह को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था. शहीद अंशुमन की मां और उनकी पत्नी यह सम्मान लेने राष्ट्रपति भवन आई थीं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अंशुमान सिंह की पत्नी स्मृति सिंह को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया. साथ में उनके साथ अंशुमन की मां खड़ी थीं. वहीं, अब अंशुमन सिंह के माता पिता ने बहू पर गंभीर आरोप लगाया गया है.
भारत के दूसरे नंबर के सबसे बड़े वीरता पुरष्कार कीर्ति चक्र से मरणोपरांत सम्मानित होने वाले कैप्टन अंशुमान सिंह की मां ने अपनी विधवा बहू यानी शहीद की पत्नी स्मृति सिंह पर गंभीर आरोप लगाने के बाद अब भारतीय सेना के NOK मानदंड में बदलाव की मांग की है. आइए जानते हैं क्या है ये एनओके नियम?
क्या है NOK पॉलिसी?
NOK का फुलफॉर्म 'नेक्स्ट ऑफ किन' है. ये पॉलिसी आश्रित से जुड़ी है, जिससे सरकार की तरफ से शहीद जवान के आश्रितों को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं. आसान भाषा में समझिए कि ये एक तरह से नॉमिनी का मामला है. जवान के शहीद होने के बाद आश्रित को सरकार की तरफ से मिलने वाली राशि, पेंशन और अन्य सभी सुविधाएं दी जाती हैं.
सरल भाषा में समझे क्या है NOK
NOK का फुलफॉर्म होता है Next TO Kin. यानी निकटतम परिजन. किसी भी नौकरी या सेवा में यह सबसे पहले दर्ज किया जाता है कि आप अगर नौकरी कर रहे हैं तो आपके बाद आपका पैसा, या उससे जड़ी कोई भी सुविधा किसको मिलेगी. जिस तरह बैंक में नॉमिनी होता है. एक तरह इसे कानूनी उत्तराधिकारी भी कह सकते हैं. यानी कि जो व्यक्ति सेवा में है यदि उसे कुछ हो जाता है तो उसको मिलने वाली अनुग्रह राशि या सभी देय राशि NOK को ही दी जाएगी.
सेना में NOK नियम कैसे काम करता है
जब कोई व्यक्ति सेना में भर्ती होता है, तो उसके माता-पिता या अभिभावकों का नाम NOK के रूप में दर्ज किया जाता है. हालांकि, एक बार जब वे शादी कर लेते हैं, तो सेना के नियमों के तहत जीवनसाथी का नाम माता-पिता के नाम की जगह ले लेता है. सेना में भर्ती किसी व्यक्ति की अगर मौत हो जाती है तो सेना के लोग उसके NOK से ही बात करते हैं. कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने इसी नियम के मानदंड में बदलाव की मांग की है.
कैप्टन अंशुमान सिंह के मामले में NOK नियम बना मां-बाप के लिए परेशानी?
कैप्टन अंशुमान सिंह की शादी हो गई थी, कैप्टन अंशुमान सिंह के मामले में उनकी शादी के बाद उनकी पत्नी का नाम बतौर आश्रित दर्ज हुआ है. जिस कारण कैप्टन अंशुमान सिंह के शहीद होने के बाद उनकी आश्रित पत्नी को सभी सुविधाएं मिलेगी. तभी तो कैप्टन सिंह के पिता रवि प्रताप सिंह और मां मंजू सिंह ने इन नियमों को बदलने की मांग करते हुए बताया कि स्मृति सिंह अब उनके साथ नहीं रहती हैं और उन्होंने ऑफिस रिकॉर्ड में अपना पता बदल लिया है. जिस वजह से मेरे शहीद बेटे की शहादत के बाद ज़्यादातर अधिकार बहू स्मृति सिंह को मिल रहे हैं.
सम्मान पेंशन, बीमा को लेकर नियम
सेना के किसी शादीशुदा व्यक्ति के मरणोपरांत उनके इंश्योरेंस और पेंशन का कम से कम 67 परसेंट उनके NOK यानी उनकी पत्नी को मिलता है. बाकी 33 परसेंट के लिए व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार, किसी और को ‘नॉमिनी’ बना सकता है. व्यक्ति अगर चाहे तो अपनी पत्नी को 67 परसेंट ज्यादा का भी उत्तराधिकारी बना सकता है. लेकिन इससे कम नहीं.
सम्मान के लिए क्या है नियम
सम्मान को लेकर भी NoK का ही सिद्धांत काम करता है. अविवाहित सैनिकों को मरणोपरांत मिलने वाला सम्मान (मेडल) माता-पिता को सौंपा जाता है. विवाहित सैनिकों के मामले में सम्मान पति/पत्नी को सौंपा जाता है. हालांकि समारोह में माता-पिता को भी आमंत्रित किया जाता है.
NOk को मिलती है पेंशन
रक्षा मंत्रालय से मिलने वाली पेंशन, आर्थिक सहायता, इंश्योरेंस और सम्मान NOk के आधार पर लागू होता है. ड्यूटी पर प्राण देने वाले सैनिकों के परिजनों को कई राज्य सरकारें भी आर्थिक मदद आदि देती हैं. कुछ राज्यों में केस बाय केस मदद दी जाती है, तो कुछ राज्यों में इसके लिए आधिकारिक नियम है.
NOk को क्या-क्या लाभ मिलता है?
एक्स-ग्रेशिया पेमेंट: परिवार को तत्काल राहत के रूप में दी गई राशि.
बीमा: सैनिक को आम तौर पर अलग-अलग इंश्योरेंस स्कीम के तहत कवर किया जाता है.
पेंशन: परिवार को एक फैमिली पेंशन भी मिलती है. जो मृत सैनिक की आखिरी सैलरी का कुछ प्रतिशत हिस्सा होता है.
एजुकेशन हेल्प: मृत सैनिक के बच्चे एजुकेशनल स्कॉलरशिप के हकदार होते हैं.
रोजगार: कुछ मामलों में, NOK को डिफेंस या दूसरे सरकारी क्षेत्रों में रिजर्वेशन मिलता है.
कैप्टन अंशुमन की पत्नी को सेना की तरफ से कितना पैसा मिला?
अंशुमन की वाइफ स्मति सिंह और मां कीर्ति चक्र लेने के लिए राष्ट्रपति भवन पहुंची थी. अब अंशुमन के माता-पिता द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि बहू कीर्ति चक्र और सेना की तरफ से दिया गया सारा पैसा लेकर अपने मायके चली गई है. उन्हें कुछ भी नहीं मिला. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सेना के सूत्रों का कहना है कि कैप्टन अंशुमन के परिजनों को नियम के हिसाब से फंड दिया गया है. आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड (AGIF) के तहत 1 करोड की राशि अंशुमन के माता-पिता और बहू के बीच बराबर बांटी गई है. दोनों को 50-50 लाख रुपये की रकम दी गई है. इसके अलावा राज्य सरकार की तरफ से भी अंशुमन के परिवार को 50 लाख रुपये की रकम दी गई है. इसमें से 15 लाख रुपये माता-पिता और 35 लाख रुपये पत्नी को दिए गए हैं.
85 लाख बहू को, 65 लाख माता-पिता को मिले रुपए
सरल शब्दों में समझें तो शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह की वाइफ को अबतक 85 लाख रुपये की रकम मिल चुकी है. वहीं, उसके माता-पिता को कुल 65 लाख रुपये बेटे की शहादत पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मिलाकर दिए गए हैं. आर्मी सूत्रों का कहना है कि अभी पत्नी को ऑर्डेनरी पेंशन मिलना शुरू हो गया और बैटल कैजुअल्टी के लिए पहले कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी होती है और फिर पूरी जांच के बाद वो लिब्रेलाइज पैशन (पूरी लास्ट ड्रान सैलेरी ) मिलना शुरू होगी. बताया गया कि डिफेंस सर्विस ऑफिसर प्रोविडेंट फंड (DSOPF) का पैसा जो सैनिक जमा करता है वो पत्नी को मिल गया.
कैप्टन अंशुमान सियाचिन में हुए थे शहीद
कैप्टन अंशुमान 26 पंजाब रेजिमेंट में मेडिकल अफसर थे. 2023 में उनकी यूनिट सियाचिन ग्लेशियर में तैनात थी. 19 जुलाई 2023 को ग्लेशियर में सेना के भंडार में आग लगी. शॉर्ट सर्किट से शुरू हुई इस आग ने पहले फाइबर ग्लास से बने एक हट को अपनी ज़द में लिया. कैप्टन अंशुमान ने हट में फंसे 5 सैनिकों को सुरक्षित निकाला. इसके बाद आग मेडिकल रूम में फैली. कैप्टन अंशुमान एक बार फिर जलते हट में घुसे, ताकि कुछ जीवन रक्षक दवाओं को बाहर ला सकें. लेकिन इस बार वो बाहर नहीं आ पाए और उनके प्राण चले गए.
यूपी के देवरिया के रहने वाले थे शहीद कैप्टन
22 जुलाई 2024 को यूपी के देवरिया में सैनिक सम्मान के साथ कैप्टन अंशुमान का अंतिम संस्कार हुआ. और 26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया, जो कि शांति के समय साहस के लिए मिलने वाला दूसरा सबसे बड़ा वीरता पदक है. 5 जुलाई 2024 को ये पदक कैप्टन के NoK, माने स्मृति और कैप्टन की माता को सौंप दिया गया.
कैप्टन अंशुमान सेना की मेडिकल कोर में थे
कैप्टन अंशुमान सिंह ने मिलिट्री की मेडिकल कोर में शामिल थे. शहीद कैप्टन अंशुमान की पत्नी ने बताया कि उनकी मुलाकात इंजीनियरिंग कॉलेज में हुई थी. जिसके बाद उनका चयन पुणे के आर्मर्ड फोर्स मेडिकल कॉलेज में हो गया था. वहीं एमबीबीएस करने के बाद वह सेना की मेडिकल कोर का हिस्सा बने थे. वहीं आगरा के मिलिट्री अस्पताल में ट्रेनिंग हुई थी. जिसके बाद जम्मू में तैनात रहे और उसके बाद सियाचिन में तैनात किया गया था.