Shiv Sena: कब और क्यों बनी थी शिवसेना, पॉलिटिक्स में कैसे हुई एंट्री, कितनी बार बदला सिंबल? पूरा इतिहास
Shiv Sena History: पिता केशव सीताराम ठाकरे ने साल 1966 में बाल ठाकरे को बतौर कार्टूनिस्ट और समाजसेवी बाल ठाकरे की बढ़ती लोकप्रियता के बीच सुझाव दिया कि एक राजनीतिक पार्टी का गठन करना चाहिए. उन्होंने ही महाराष्ट्र की सियासत के दिग्गज बाल ठाकरे की पार्टी को शिवसेना नाम भी दिया.
Shiv Sena Rift: महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर (Rahul Narvekar) ने में शिवसेना विधायकों की अयोग्यता पर अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि चुनाव आयोग (ECI) के रिकॉर्ड में एकनाथ शिंदे गुट ही असली शिवसेना है. उन्होंने कहा कि इसके लिए मैंने चुनाव आयोग के फैसले को ध्यान में रखा है. एकनाथ शिंदे को हटाने का अधिकार उद्धव ठाकरे के पास नहीं है. उनके पास शिवसेना के किसी भी सदस्य को हटाने का अधिकार नहीं है.
शिवसेना का 1999 का संविधान मान्य, एकमात्र पहलू विधायक दल का बहुमत
स्पीकर राहुल नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना के 2018 में संशोधित संविधान को वैध नहीं माना जा सकता है. यह चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में भी नहीं है. उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार वैध संविधान के रूप में शिवसेना के 1999 के संविधान को ध्यान में रखा गया है. स्पीकर ने 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि शिवसेना के दो गुटों की ओर से चुनाव आयोग को सौंपे गए संविधान पर आम सहमति नहीं बनी है. लीडरशिप को लेकर दोनों गुटों के विचार अलग-अलग हैं. एकमात्र पहलू विधायक दल का बहुमत है. इसलिए विवाद से पहले के लीडरशिप स्ट्रक्चर को ध्यान में रखते हुए प्रासंगिक संविधान तय करना होगा.
करीब डेढ़ साल पहले शिवसेना में बगावत, सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को सौंपा फैसले का अधिकार
महाराष्ट्र में करीब डेढ़ साल पहले शिवसेना में बगावत हुई थी. इसके बाद शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित उनके गुट के 39 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्यता के फैसले का निर्णय विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को सौंपा था. स्पीकर के फैसले के बाद इस राजनीतिक घटनाक्रम पर विराम लग गया. आइए, जानते हैं कि शिवसेना कब और क्यों बनी थी और कैसे इसकी एंट्री पॉलिटिक्स में हुई, साथ ही शिवसेना का सिंबल कितनी बार बदला गया?
पिता केशव सीताराम ठाकरे की सलाह पर बाल ठाकरे ने की थी शिवसेना की स्थापना
अपने पिता केशव सीताराम ठाकरे की सलाह पर बाला साहेब ठाकरे ने साल 1966 में 19 जून को बतौर संगठन शिवसेना (Shiv Sena) की स्थापना की थी. तब इसका निशान दहाड़ता हुआ बाघ था. आज भी शिवसेना के अंदरूनी कामकाज में इसका इस्तेमाल होता है. बाद में पिता की सलाह पर ही बाला साहेब ठाकरे ने संगठन को राजनीतिक दल के रूप में बदला और 1968 में वृहन्मुंबई नगरपालिका (BMC) का चुनाव लड़ा था.
शिवसेना में 80 प्रतिशत समाज सेवा और 20 फीसदी राजनीति का शुरुआती नारा
बालासाहेब ठाकरे ने महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए संगठन के तौर पर शिवसेना की स्थापना की थी.तब उन्होंने 'अंशी टके समाजकरण, वीस टके राजकरण' यानी 80 प्रतिशत समाज सेवा और 20 फीसदी राजनीति का नारा दिया था. बाद में राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए उन्होंने भूमिपुत्र का नारा लगाना शुरू कर दिया था. साल 1970 के शुरुआती दिनों में शिवसेना को काफी लोकप्रियता मिली. महाराष्ट्र में दूसरे राज्यों खासकर दक्षिण भारतीय लोगों पर कई हमले हुए. 'पुंगी बजाओ, लुंगी भगाओ' जैसे नारे लगने लगे.
हिंदुत्व का सियासी दांव, भाजपा से गठबंधन और शिवसेना को मिला जीत का स्वाद
साल 1970 के बाद शिवसेना का भूमिपुत्र का राजनीतिक दांव कमजोर होने लगा. शिवसेना ने पहला चुनाव 1971 में लड़ा था, लेकिन उसका एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया. इसके बाद शिवसेना ने हिंदुत्व के रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू किया. साल 1989 में भाजपा के साथ इसी मुद्दे पर गठबंधन बनाने से शिवसेना का 4 सांसद लोकसभा पहुंचे. इसके बाद शिवसेना ने पहली बार 1990 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा और उसके 52 विधायक बने. हालांकि, भाजपा के साथ शिवसेना का लंबा गठबंधन 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा में टूट गया. चुनाव बाद फिर दोनों पार्टी ने गठबंधन बनाकर सरकार चलाई. हालांकि, 5 साल बाद यह दोस्ती विधानसभा के बाद दोबारा टूट गई.
दहाड़ता बाघ, रेल इंजन... और धनुष बाण, कैसे बदलता गया शिवसेना का सिंबल
साल 1966 में बनी शिवसेना ने 1968 में ढाल और तलवार के सिंबल के साथ बीएमसी चुनाव मैदान में कदम रखा था. इसके बाद साल 1978 में शिवसेना ने रेल इंजन को अपना चुनाव चिन्ह बनाया था. साल 1980 में भी शिवसेना इस चिन्ह के साथ चुनाव लड़ी. शिवसेना ने साल 1985 के दौरान विधानसभा चुनाव में कदम बढ़ाते हुए टॉर्च, मशाल से लेकर बैट-बॉल जैसे चिन्हों का भी इस्तेमाल किया था. साल 1989 के दौरान जब शिवसेना के 4 सांसद चुनकर लोकसभा में पहुंचे, तब चुनाव आयोग ने उन्हें धनुष-बाण का सिंबल दिया. अब शिवसेना में टूट के बाद देखना होगा कि उद्धव ठाकरे जलती मशाल के साथ अपनी पार्टी को सामने ला रहे हैं. एकनाथ शिंदे गुट को 'दो तलवारें और एक ढाल' का चुनावी प्रतीक आवंटित किया गया.
शिवसेना का प्रभाव क्षेत्र, प्रमुख विंग और प्रमुख का पद क्या है
महाराष्ट्र में मुंबई और कोंकण तटीय क्षेत्र शिवसेना का मुख्य गढ़ है. हालांकि लोकसभा चुनाव 2014 में उसे मुंबई में हार मिली. इसी चुनाव में शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र के अंदरूनी इलाकों में अपनी पैठ बनाई. शिवसेना में अध्यक्ष के बजाय प्रमुख का पद होता है. बालासाहेब ठाकरे इस पद पर पूरी जिंदगी रहे. उनके निधन के बाद उद्धव ठाकरे शिवसेना के सबसे बड़े नेता हैं. हालांकि उन्होंने शिवसेना प्रमुख का पद लेने से इनकार कर दिया था. बाल ठाकरे के पोते और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे शिवसेना की युवा सेना के प्रमुख हैं. भारतीय विद्यार्थी सेना शिवसेना की स्टूडेंट विंग है.
शिवसेना में बगावत की कहानी, ओबीसी नेता छगन भुजबल ने की थी शुरुआत
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के सामने बगावत की तीन बड़ी घटना हुई. वहीं, उनके निधन के बाद उद्धव ठाकरे के सामने एक बार और सबसे बड़ी बगावत हुई, जो पार्टी की टूट तक पहुंच गई. बाल ठाकरे के समय 1991 में शिवसेना का ग्रामीण इलाकों में विस्तार करने वाले ओबीसी नेता छगन भुजबल ने बगावत की. विपक्ष का नेता नहीं बनाए जाने से नाराज भुजबल ने शिवसेना छोड़ने का फैसला किया था. उनके साथ 18 विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी. उनमें से 12 उसी दिन शिवसेना में वापस लौट आए थे. हालांकि बाद में शिवसेना से हारकर भुजबल शरद पवार की एनसीपी में शामिल हो गए.
महाराष्ट्र की सियासत के पक्के खिलाड़ी नारायण राणे और राज ठाकरे की बगावत
शिवसेना में भुजबल के बाद 2005 में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने बगावत किया और कांग्रेस में शामिल हो गए. महाराष्ट्र की सियासत के पक्के खिलाड़ी राणे ने बाद में कांग्रेस भी छोड़ दी. इस समय वह भारतीय जनत पार्टी से राज्यसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री हैं. अगले ही साल 2006 में शिवसेना को तीसरा बड़ा झटका लगा. बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम की नई पार्टी बनाई. राज ठाकरे ने तब कहा था कि उनकी लड़ाई शिवसेना नेतृत्व के साथ नहीं, बल्कि पार्टी नेतृत्व के आसपास के लोगों के साथ है.
एकनाथ शिंदे की बगावत से गिरी महाविकास आघाड़ी सरकार, टूटी शिवसेना
उद्धव ठाकरे के सामने पहली और सबसे बड़ी बगावत उनके करीबी शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने की. उन्होंने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाविकास आघाड़ी बनाने वाले उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा दी. चुनाव आयोग ने ठाकरे गुट की पार्टी के लिए 'शिवसेना - उद्धव बालासाहेब ठाकरे' और एकनाथ शिंदे गुट की पार्टी के लिए 'बालासाहेबंची शिवसेना' (बालासाहेब की शिवसेना) नाम दिया था. दोनों गुटों ने खुद को असली शिवसेना बताया है.