दुनिया के कई शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक है. इससे शहरी बच्चों में अस्थमा का खतरा बढ़ रहा है. एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 30 फीसदी बच्चों में अस्थमा के दौरे वायरस के बजाय प्रदूषण के कारण होते हैं. यह खतरा शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में दो से तीन गुना अधिक है.


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द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण से बच्चों की श्वास नली सूज जाती है, जिससे अस्थमा के दौरे पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. अध्ययन में अमेरिका के कम आय वाले नौ शहरों के बच्चों पर शोध किया गया. टीम ने दैनिक वायु गुणवत्ता पर नजर रखी और इसकी तुलना शहरी बच्चों में अस्थमा के मामलों से की.


शोधकर्ताओं ने पाया कि हवा में मौजूद धुएं और धूल के बारीक कण बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं. इसका सर्वाधिक खतरा उन बच्चों में अधिक पाया गया, जो कम विकसित शहरी इलाकों में रहते हैं. इसके अलावा, अन्य कारण निम्नलिखित हैं.
- वायरस फेफड़ों को संक्रमित करते हैं, जो अस्थमा के लिए एक बड़ी वजह है।
- दूसरे लोगों द्वारा सिगरेट पीने पर निकलने वाला धुआं भी वजह
- वंशानुगत भी हो सकते हैं पीड़ित 
- एंटीबायोटिक का अधिक इस्तेमाल


भारत में क्या है स्थिति?
भारत में भी बच्चों में अस्थमा एक बड़ी समस्या है. अध्ययनों के मुताबिक, भारत में बच्चों में पीडियाट्रिक अस्थमा सबसे आम है, जिससे 7.9 फीसदी बच्चे पीड़ित हैं. हालांकि, अस्थमा के पीडित बच्चों की संख्या को लेकर कोई आधिकारिक डाटा उपलब्ध नहीं है.


जागरूकता जरूरी
भारत में माता-पिता में अस्थमा के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ी समस्या है. इससे बच्चों का इलाज सही समय पर नहीं हो पाता है और उनकी स्थिति बिगड़ जाती है. अस्थमा एक गंभीर बीमारी है, जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है. आइए जानते हैं कि बच्चों में अस्थमा के कैसे लक्षण नजर आते हैं.


लक्षण
- सांस लेने के दौरान सीटी बजने जैसी आवाज
- सांस उखड़ना
- सीने में जकड़न महसूस करना
- खांसी होना


क्या जरूरी कदम उठाएं?
अस्थमा के खतरे को कम करने के लिए जरूरी है कि वायु प्रदूषण को कम किया जाए. इसके लिए सरकार को कारगर कदम उठाने चाहिए. इसके अलावा, माता-पिता को भी बच्चों में अस्थमा के बारे में जागरूक होना चाहिए.