आरएसएस की स्थापना के 95 साल: जानिए नए भारत के निर्माण में संघ का कितना योगदान
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आरएसएस की स्थापना के 95 साल: जानिए नए भारत के निर्माण में संघ का कितना योगदान

आज विजयदशमी है और आज ही के दिन 95 साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh -RSS) की स्थापना हुई थी. तब से लेकर अब तक संघ ने कई उतार चढ़ाव और चुनौतियों का सामना किया.

फाइल फोटो (जी मीडिया)

नई दिल्ली: आज विजयदशमी है और आज ही के दिन 95 साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh -RSS) की स्थापना हुई थी. तब से लेकर अब तक संघ ने कई उतार चढ़ाव और चुनौतियों का सामना किया. लेकिन अपनी विचारधारा नहीं बदली और आज नए भारत के निर्माण में संघ के विचार बेहद प्रासंगिक नजर आ रहे हैं. इसकी एक वजह ये भी है कि आज देश की सत्ता जिनके हाथों में है, वो संघ की पाठशाला से ही दीक्षित हुए हैं.

  1. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 95 वर्ष
  2. 1925 में हुई थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
  3. डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी संघ की स्थापना

संघ की स्थापना के 95 साल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ साल 2025 में अपनी स्थापना के 100 साल पूरे कर लेगा. कहा जाता है अपनी स्थापना से लेकर आज तक बिना किसी आधार जितनी आलोचनाएं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने झेली, शायद दुनिया के किसी संगठन ने झेली. देश में जिन्होंने तुष्टिकरण का एजेंडा चलाया, संघ उनके निशाने पर संघ रहा और आज सरहदों के बाहर जो देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं, वो भी इस संगठन को पानी पी पीकर कोसते हैं. नए भारत के निर्माण की जिम्मेदारी जिन हाथों में है. उनके निर्माण की नींव में संघ के विचारों को बड़ा योगदान है. यानि नए भारत के निर्माण में भी संघ की विचारधारा का बड़ा स्थान होगा और अब ये नजर भी आने लगा है.

संघ का इतिहास और विजयदशमी
आज से 95 साल पहले जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर तेजी से पहुंच रहा था, उसी समय देश में राष्ट्र प्रथम की अवधारणा के साथ एक संगठन का जन्म हुआ. उस संगठन का नाम था राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ. संघ की स्थापना वर्ष 1925 में 27 सितंबर को हुई थी, और इसके संस्थापक थे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (Dr Keshav Baliram Headgevar). संघ के स्थापना के दिन विजयादशमी का त्योहार था. इसी वजह से हर साल विजयजशमी (VijayaDashami) के दिन ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का स्थापना दिवस मनाया जाता है. वैसे तो संघ की तरफ से साल में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, लेकिन विजयदशमी के दिन होने वाला कार्यक्रम सबसे अहम होता है.

सरसंघचालक के संबोधन का विशेष महत्व
स्थापना दिवस के दिन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक का संबोधन होता है. जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी होती हैं. इस उद्बोधन के जरिए अगले एक साल के लिए संघ प्रमुख देश के हालात पर अपनी राय व्यक्त करते हैं. अगले वर्ष के लिए संघ और उसके सहयोगी संगठनों के एजेंडे के संकेत भी इस भाषण से मिलते हैं. और सबसे महत्वपूर्ण, सरकार से संघ अपनी अपेक्षाएं भी इस भाषण के जरिए जाहिर करता है.

देश के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणब मुखर्जी भी संघ के कार्यक्रम में हो चुके हैं शामिल
संघ के कार्यक्रमों में संघ से बाहर की किसी बड़ी हस्ती को बुलाने की परंपरा रही है. संघ का मानना है कि अपने कार्यक्रमों में बाहरी बड़ी हस्तियों को बुलाने से बड़ा संदेश जाता है. बाहरी व्यक्ति को संघ की कार्यपद्धति समझाने में आसानी होती है. और वो हस्ती जब संघ के मंच से कोई संदेश देता है, तो उसका समाज पर गहरा असर पड़ता है. साथ ही संघ की स्वीकार्यता भी बढ़ती है. जो कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रबल विरोधी रहे हों. उनके प्रति भी इस संगठन के मन में सहिष्णुता को इस तरह से समझा जा सकता है कि कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे, फिर देश के राष्ट्रपति बने प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukharji) भी संघ के कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

संघ की बढ़ती प्रासंगिकता
साल 1925 से चली अपनी लंबी यात्रा में संघ आज देश के शीर्ष और प्रभावी स्वयंसेवी संगठन के रूप में उभरा है. करीब सौ वर्षों के कालखंड में काफी उतार चढ़ाव से संघ को गुजरना पड़ा है. कभी मतभेद होने के बाद भी भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु (Jawaharlal Nehru) से तारीफ के दो बोल सुनने को मिले हैं तो कभी प्रतिबंध का भी सामना करना पड़ा है. लेकिन संघ ने समाज के सभी वर्गों से व्यक्तिगत संपर्क और संवाद की अपनी अनोखी कार्यपद्धति के कारण बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना अत्यंत शांतिपूर्ण ढंग से किया है. यही वजह है कि आज के दौर में संघ की प्रासंगिकता बहुत बढ़ चुकी है.

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