Jammu and Kashmir: 149 साल बाद खत्म हुई 'दरबार मूव' की प्रथा, अफसरों को आवास खाली करने का आदेश
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Jammu and Kashmir: 149 साल बाद खत्म हुई 'दरबार मूव' की प्रथा, अफसरों को आवास खाली करने का आदेश

जम्मू-कश्मीर में 149 साल बाद दरबार मूव को खत्म कर दिया गया है. इस फैसले के राज्य के कुछ नेता और स्थानीय नागरिक खुश नहीं है. उनका कहना है कि, 'प्रशासन कोई पंसारी की दुकान नहीं जहां नफा नुकसान देखा जाए.'

जम्मू और कश्मीर नागरिक सचिवालय (फाइल फोटो).

श्रीनगर: करीब 149 साल बाद जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के महाराजा गुलाब सिंह द्वारा शुरू की गई 'दरबार मूव' प्रथा को आखिरकार खत्म कर दिया गया है. जम्मू-कश्मीर सरकार ने बुधवार को आदेश जारी करते हुए कर्मचारियों को दिए जाने वाले आवास आवंटन को भी रद्द कर दिया है. साथ ही अफसरों को 3 हफ्ते के अंदर आवास खाली करने का आदेश दिया है. 

क्या है 'दरबार मूव'?

मौसम बदलने के साथ हर छह महीने में जम्मू-कश्मीर की राजधानी भी बदल जाती है. राजधानी शिफ्ट होने की इस प्रक्रिया को 'दरबार मूव' के नाम से जाना जाता है. छह महीने राजधानी श्रीनगर में रहती है और छह महीने जम्मू में. राजधानी बदलने की यह परंपरा 1862 में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने शुरू की थी. गुलाब सिंह महाराजा हरि सिंह के पूर्वज थे जिनके समय ही जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बना था.

हर साल होगी 200 करोड़ रुपये की बचत

सूत्रों के अनुसार, एक बार राजधानी शिफ्ट होने में करीब 110 करोड़ रुपये खर्च होता था. लेकिन दरबार मूव को खत्म करने के फैसले से राजकोष को हर साल करीब 200 करोड़ रुपये की बचत होगी. इस फैसले के बाद, सरकारी ऑफिस अब जम्मू और श्रीनगर दोनों जगहों पर सामान्य रूप से काम करेंगे. राजभवन, सिविल सचिवालय, सभी प्रमुख विभागाध्यक्षों के कार्यालय पहले दरबार मूव के तहत जम्मू और श्रीनगर के बीच सर्दी और गर्मी के मौसम में ट्रांसफर होते रहते थे.

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'प्रशासन कोई पंसारी की दुकान नहीं जहां..'

हालांकि राजनीतिक दल के साथ-साथ कश्मीर घाटी के स्थानीय लोग भी सरकार के इस फैसले से नाखुश दिख रहे हैं. उनका कहना है कि इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के बीच की दूरी और बढ़ जाएगी. जब इस संबंध में पीडीपी के प्रवक्ता हरबख्श सिंह से बातचीत की तो उन्होंने कहा, '370 के बाद जो भी फैसले लिए गए कहीं ना कहीं एंटी लोग थे. सरकार की नियत ठीक भी हो, लेकिन जिस हिसाब से मिस ट्रस्ट है लोग इसे शक की नजर से देखते हैं. प्रशासन कोई पंसारी की दुकान नहीं, जहां नफा और नुकसान देखा जाए कि हमने इतने पैसे बचा लिए.

'राज्यपाल को इस पर दोबारा सोचना चाहिए'

अपनी पार्टी के नेता रफी मीर कहते हैं, 'जम्मू-कश्मीर के लोगों पर इस वक्त ऐसे फैसले थौपना ठीक नहीं है. क्योंकि हमारे यहां पर कोई सरकार नहीं है. इस वक्त हम राज्यपाल शासन में काम कर रहे हैं. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. हमारी रियासत UT में तब्दील हो गई है. जम्मू और कश्मीर हमारा कल्चर अलग-अलग है. राज्यपाल को इस पर दोबारा सोचना चाहिए.'

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इस फैसले से व्यवसाय होगा प्रभावित

बताते चलें कि इस महीने की शुरुआत में, जम्मू और कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा ने कहा था कि जम्मू और कश्मीर प्रशासन पूरी तरह से ई-ऑफिस में बदल गया है, जिससे 'दरबार मूव' की प्रथा समाप्त हो गई है. लोगों का कहना है कि ऐसा आदेश जारी करने से पहले सरकार को पहले डिजिटाइजेशन करना चाहिए. वे इस बात से सहमत हैं कि इससे भारी धन की बचत होगी लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह दोनों क्षेत्रों में व्यवसायों को प्रभावित करेगा. उन्होंने ये भी कहा कि इस कदम से जम्मू और श्रीनगर दोनों सचिवालय पूरे 12 महीने काम करेंगे.

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