वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि 'हमें यह मानने में कोई ऐतराज नहीं कि राम चबूतरा श्रीराम का जन्मस्थान है क्योंकि ऐसा तीन कोर्ट ने माना है.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Ayodhya case) में मंगलवार को अयोध्या केस (Ayodhya case) की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष (Muslim Parties) ने माना कि 'राम चबूतरा' भगवान श्रीराम (Lord Ram) का जन्मस्थान है. वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि 'हमें यह मानने में कोई ऐतराज नहीं कि राम चबूतरा श्रीराम का जन्मस्थान है क्योंकि ऐसा तीन कोर्ट ने माना है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने 'आइने अकबरी' का जिक्र करते हुए कहा कि ये पुस्तक सभी वर्गों में लोकप्रिय थी. बावजूद इसके आइने अकबरी में भी 'जन्मस्थान' का कहीं जिक्र नहीं मिलता. जफरयाब जिलानी ने कहा कि रामायण और रामचरित मानस में राम जन्मस्थान का ज़िक्र नहीं है. इसपर जस्टिस बोबडे ने सवाल किया कि 'आईने अकबरी' सभी वर्गों में लोकप्रिय थी. इसमें बाबरी मस्जिद का ज़िक्र क्यों नहीं है?
जस्टिस चंद्रचूड़ - किसी ग्रन्थ में 'जन्मभूमि' का ज़िक्र नहीं होने का मतलब यह नहीं कि जन्मभूमि का अस्तित्व ही नहीं है! जस्टिस चन्दचूड़ ने जिलानी से सवाल किया कि सिर्फ इसलिए कि वाल्मिकी रामायण और रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म के किसी 'खास जगह' का जिक्र नहीं है, इतना भर से हिन्दू नहीं मान सकते कि अयोध्या में किसी 'खास जगह' पर श्रीराम ने अवतार लिया था.
जिलानी ने जवाब दिया कि ऐसे कोई सबूत नहीं है कि 1949 में केंद्रीय गुम्बद में पूजा होती रही हो. जस्टिस बोबडे का सवाल - आप ये मानते है कि जो रामचबूतरा 1885 के बाद अस्तित्व में आया, वह श्री राम का जन्मस्थान है. ज़फरयाब जिलानी- हमे ये मानने में कोई हर्ज नहीं . तीन कोर्ट इससे पहले ये बात कह चुके है. जस्टिस बोबड़े ने जिलानी से सीधा सवाल किया - आपकी बात को माने तो इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था? ज़फरयाब जिलानी- हमे ये मानने में कोई दिक्कत नहीं कि श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया था. विवाद इस बात को लेकर है कि श्री राम का जन्मस्थान मस्जिद के अंदर नहीं है.
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मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन इस मामले में केस दायर करने वाले सूट नंबर एक, यानि पक्षकार गोपाल सिंह विशारद की ओर से दायर अर्जी पर जवाब दे रहे हैं. धवन ने कहा- विशारद ने श्रीरामजन्मभूमि पर पूजा के व्यक्तिगत अधिकार का दावा करते हुए मुकदमा दायर किया था और उनकी मौत के बाद उनकी याचिका का कोई औचित्य नहीं रहा. मालूम हो कि 1950 में पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए निचली अदालत में केस दायर करने वाले पक्षकार गोपाल सिंह विशारद का 1986 में देहांत हो चुका है, अब उनके बेटे राजेन्द्र सिंह पैरवी कर रहे हैं.
मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि इस पर सवाल उठाया जा रहा है कि मुस्लिम वहां पर नामज़ पढ़ते थे, 22-23 दिसंबर की रात को जिस तरह से वहां मूर्ति को रखा गया, वह हिन्दू नियम के अनुसार सही नहीं है.
राजीव धवन ने कहा कि 40 गवाहों की गवाही को क्रोस इज़मीनेशन नहीं किया गया. गोपाल सिंह विशारद की याचिका में भी भगवान राम जन्मस्थान के बारे में नहीं बताया गया मस्जिद के बीच के गुम्बद के नीचे जन्मस्थान होने का दावा किया गया और पूजा के अधिकार की मांग की गई.
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वकील धवन ने कहा कि हाई कोर्ट में सुनवाई करने वाले जज जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने माना था कि राम चबूतरे पर पूजा की जाती थी, धवन ने हाइकोर्ट के में एक जज के ऑब्जर्वेशन का विरोध किया जिन्हने कहा था कि मुस्लिम वहां पर अपना कब्जा साबित नहीं कर पाए थे. धवन ने कहा कि हम इसका विरोध करते है, हमारा वहां पर कब्ज़ा था. शीतल दुबे की रिपोर्ट का ज़िक्र करते हुए कहा जिंसमे कहा गया था मस्जिद के परिसर में हवन और पूजा होती थी और नामज़ नहीं होती थी. इस पर धावन ने कहा कि वह हवन और पूजा भी हो सकती है, इस रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया कि पूजा और हवन मस्जिद के अंदरूनी आंगन में होती थी.
राजीव धवन अयोध्या विवाद से जुड़ी कई पुरानी याचिकाओं का ज़िक्र करते हुए मस्जिद पर मुस्लिम पक्ष का कब्ज़ा साबित करने की कोशिश की. धवन ने कहा कि मुतावल्ली ने अर्ज़ी दाखिल की थी जिस पर सरकार ने आदेश दिया था गर मस्जिद पर मुस्लिम का कब्ज़ा नही होता तो वह मुतावल्ली अर्ज़ी क्यों लगाता और सरकार फैसला क्यों देती इससे साबित होता है मस्जिद पर मुस्लिम का कब्ज़ा था। मोहम्मद अजगर ने कब्रिस्तान पर कब्ज़े के लिए अर्ज़ी लगाई थी, रघुवर दास ने याचिका दाखिल की और कहा था कि मुस्लिम वहां पर चुना कर रहे है.