Bihar News: सुल्तानगंज स्थित मुरली पहाड़ी पर मिली प्रतिमाएं 1500 साल पुरानी, इंटैक की टीम ने किया सर्वेक्षण
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Bihar News: सुल्तानगंज स्थित मुरली पहाड़ी पर मिली प्रतिमाएं 1500 साल पुरानी, इंटैक की टीम ने किया सर्वेक्षण

Bihar News: बिहार के भागलपुर में उत्तरवाहिनी गंगा तट पर स्थित मुरली पहाड़ी पर मिली मूर्तियों का इतिहास 1500 साल पूराना बताया जा रहा है. इंटैक की टीम ने इसके लिए सर्वेक्षण किया है.

सुल्तानगंज स्थित मुरली पहाड़ी

भागलपुर: भागलपुर के सुलतानगंज उत्तरवाहिनी गंगा तट पर मुरली पहाड़ी अवस्थित है. बलुआ पत्थर की इसी पहाड़ पर मूर्तियां उकेड़ी गयी है. यह मूर्तियां गुप्तकालीन बताई जा रही है. पहाड़ी पर सनातन देवी देवताओं की कई प्रतिमाएं उकेड़ी हुई है. इसका संरक्षण किया जाएगा. बिहार सरकार इसका संरक्षण करेगी. इसको लेकर आज तकनीकी सर्वेक्षण के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फ़ॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज की लखनऊ की टीम ने पहाड़ी पर बनी प्रतिमाओं का घण्टों सर्वेक्षण किया.

वहीं इसी पहाड़ी के दूसरे हिस्से पर अवस्थित अजगैबीनाथ मंदिर का भी सर्वेक्षण किया गया. बिहार सरकार के संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल करने के लिए तथा उपेक्षित पड़ी इन प्रतिमाओं के संरक्षण के लिए वर्षों से मांग हो रही थी. सर्वेक्षण के बाद अब इसके संरक्षण में आने वाले खर्च का पता चलेगा. राज्य सरकार के आदेश के बाद यह पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा. इंटैक के लखनऊ निदेशक धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि 1500 साल पुरानी यह मूर्तियां है जो लोग यहां तब रहा करते थे तब उन्होंने यह बनाया होगा ऐसा प्रतीत होता है.

धर्मेंद्र कुमार ने आगे बताया कि इसका सर्वेक्षण किया गया है रिपोर्ट सौंपने के बाद इसके संरक्षण पर काम शुरू होगा. आपको बता दें कि मुरली पहाड़ व अजिगैबीनाथ मन्दिर के नीचे शिलालेख पर शिव पार्वती विष्णु महिषासुर मर्दिनी सूर्य समेत कई देवी देवताओं की प्रतिमा उकेड़ी गई है. यहां रूद्रपद और शिलालेख भी उत्कीर्ण है जो धरोहर के स्वरूप है. इसके सर्वेक्षण से आने वाली पीढ़ी इसके बारे में जान सकेगी. रिपोर्ट की मानें तो इन मूर्तियों और अभिलेखों से ऐसा जान पड़ता है कि उस समय गंगा नदी इससे कुछ ही दूरी पर बहती होगी और शिलाखंडों पर उकेरी गयी मूर्तियां तब पानी में डूब गयी होंगी. जैसे-जैसे गंगा का पानी कम होता गया लोगों की नजर में मूर्तियां आने लगी होंगी. इन अभिलेखों की लिपि और भाषा का समय पांचवीं-छठी शताब्दी का माना जा सकता है, लेकिन इन मूर्तियों व चित्रों में अब क्षरण शुरू हो गया है.

इनपुट- अश्वनी कुमार

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