किसानों की दाल खरीद रही है नीतीश सरकार, जानिए रजिस्ट्रेशन के लिए कौन सा कागज हैं जरूरी
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किसानों की दाल खरीद रही है नीतीश सरकार, जानिए रजिस्ट्रेशन के लिए कौन सा कागज हैं जरूरी

बिहार में पहली बार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर दाल की खरीद शुरू की गई है. इसके लिए एक महीने का समय रखा गया है. राज्य के विभिन्न जगहों पर दाल खरीद के लिए सेंटर खोले गये हैं. 

बिहार में सरकार पहली बार किसानों से करेगी दाल की खरीद (प्रतीकात्मक फोटो)

Patna: बिहार में पहली बार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर दाल की खरीद शुरू की गई है. इसके लिए एक महीने का समय रखा गया है. राज्य के विभिन्न जगहों पर दाल खरीद के लिए सेंटर खोले गये हैं. राज्य खाद्य निगम को दाल खरीद का जिम्मा दिया है. चना और मसूर की दाल की खरीदारी राज्य सरकार (State Goverment) की ओर से की जायेगी.

चना और दाल की खरीदारी 15 अप्रैल से 15 मई के बीच होगी. इसको लेकर किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराना शुरू कर दिया है. इस दौरान पटना के दीघा सेंटर पर किसान दाल के बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के लिए पहुंचे. बता दें कि रजिस्ट्रेशन में आधार कार्ड के साथ एकाउंट नंबर और जमीन की रसीद लाना जरूरी है.  इसको लेकर राज्य खाद्य निगम के जिला प्रबंधन दीपक कुमार ने कहा कि, ‘सरकार की ओर से पहली बार दाल खरीद की शुरुआत की गई है’. 

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जिला प्रबंधक ने आगे कहा कि, ‘सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य 5100 रुपए तय किया गया है. उससे लगता है कि किसानों की ओर से इसे समर्थन मिलेगा.’ पहले ही दिन बड़ी संख्या में किसान रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे. दीघा सेंटर के हेड अमित कुमार ने कहा कि, 'सरकार ने पहली बार दाल खरीद की शुरुआत की है. इससे पहले सरकार की ओर से धान और गेंहू की खरीद की जाती रही है. किसानों को लाभ देने और बिचौलियों को खत्म करने के लिए इसकी शुरुआत की गयी है.' 

वहीं, रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे किसानों ने कहा कि, ‘सरकार ने जो समर्थन मूल्य लागू किया है, वो काफी कम है. सरकार की ओर से खरीदारी की शुरुआत की गयी है, इसके लिए हम रजिस्ट्रेशन कराने आए हैं.’ किसानों ने आगे कहा कि, ‘सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर विचार करना चाहिये और इसे बढ़ाना चाहिये.

 राज्य खाद्य निगम के जिला प्रबंधक दीपक कुमार ने कहा कि, ‘बजार की स्थिति हमेशा एक जैसी नहीं रहती है. दाम घटता-बढ़ता रहता है. हो सकता है कि आनेवाले दिनों में खुले बजार में चना और मसूर की दाल का मूल्य हो जाये और किसानों को सरकार को दाल बेंचना अच्छा लगे.’