बिहार: दूसरों की सुरक्षा करने वाले पुलिस जवान ही हैं असुरक्षित, सोने के लिए छत तक नहीं नसीब
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बिहार: दूसरों की सुरक्षा करने वाले पुलिस जवान ही हैं असुरक्षित, सोने के लिए छत तक नहीं नसीब

पुलिस का जवान राम वरन का कहना है कि कुत्ते से भी बदतर स्थिति में हमें रहने पड़ रहा है. सड़क पर उतरकर कभी बड़े बाबुओं की ड्यूटी बजानी पड़ती है, तो कभी सड़क पर चलते लोगों की सुरक्षा.

टेंट में रहने को मजबूर बिहार पुलिस के जवान.

पटना: शहर के पुलिस (Bihar Police) लाइन में दूसरे को सुरक्षा देने वाले जवान ही सुरक्षित नहीं हैं. टेंट में रहकर रात बिताने के लिए मजबूर हैं. न तो पीने का पानी की सुविधा है और न ही सोने के लिए सही से बिस्तर. किसी तरह से ड्यूटी कर रात बिताना शायद इनकी आदत सी बन गई है. इनके पास हथियार तो हैं, लेकिन उसे रखने के लिए शस्त्रागार नहीं. वर्दी तो है, लेकिन वर्दी को टांगने के लिए एक खूंटी तक नहीं है. शिकायत बड़े अधिकारियों से गई तो यह कहते हुए टाल दिया गया कि किराए का मकान ले लो.

पुलिस का जवान राम वरन का कहना है कि कुत्ते से भी बदतर स्थिति में हमें रहने पड़ रहा है. सड़क पर उतरकर कभी बड़े बाबुओं की ड्यूटी बजानी पड़ती है, तो कभी सड़क पर चलते लोगों की सुरक्षा. सरकार का काम तो करते हैं, लेकिन हम बेबस हैं. रात गुजारने के लिए एक टेंट का ही सहारा था. वह भी टूट गई. उन्होंने कहा कि भगवान की शुक्र रहा कि जान बच गई.

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उन्होंने बताया कि टेंट पर बड़ा सा बरगद का पेड़ टूटकर गिरा था, जिसमें कई जवान घायल हो गए थे. उन्होंने बताया कि डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे पुलिस लाइन पहुंचे थे. घटनास्थल का निरीक्षण भी किया, लेकिन टेंट गिरने के बाद एक बार भी यह नहीं सोचा कि जवान कैसे रात गुजारेंगे. सिर्फ यह कहते हुए निकल गए कि पूरे बिहार में पुलिस लाइन का भवन बनाने के लिए पैसा मिल गया है. जल्द ही जवानों के लिए पुलिस लाइन भवन बनाए जाएंगे.

वहीं, एक और जवान कृष्णा ने बताया कि डीएसपी को कई बार स्थिति से अवगत कराए हैं. हथियार रखने के लिए शस्त्रागार बना हुआ है, लेकिन वहां अधिकारियो का कार्यालय बना दिया गया है. ऐसे में हमलोग कहां जाएं. अगर स्टेशन पर रहते हैं और कोई हथियार लेकर भाग गया तो इसकी भरपाई कौन करेगे. वहीं, एक जवान ने तो यहां तक कहा कि हथियार भींग जाने पर उससे गोली भी नहीं चलती है.

अब सवाल उठता है कि इन जवानों की फरियाद कौन सुनेगा. खाकी वर्दी वाले सरकार के लिए ही काम करते हैं, फिर इस तरह के भेदभाव क्यों हो रहा है. समस्या कोई नई नहीं है, फिर भी आज तक इसका समाधान नहीं हो पाया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार के आला अधिकारियो की नींद खुलती है या नहीं.