अब पर्यटकों को लुभाने के लिए विकसित किया जाएगा बटेश्वर स्थान, कहा जाता है बिहार का काशी
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1142483

अब पर्यटकों को लुभाने के लिए विकसित किया जाएगा बटेश्वर स्थान, कहा जाता है बिहार का काशी

बिहार के भागलपुर जिले के कहलगांव बटेश्वर स्थान धाम के आसपास के क्षेत्र के पर्यटन क्षेत्र के तौपर पर विकसित करने के लिए भागलुपर जिला प्रशासन ने राज्य सरकार को योजना भेजी है. इसके विकास के लिए राज्य सरकार से मदद भी मांगी गई है.

(फाइल फोटो)

भागलपुरः लगातार सरकारी उदासीनता का शिकार रहा बिहार का काशी कहा जानेवाला क्षेत्र बटेश्वर स्थान अब अपने नए स्वरूप के साथ पर्यटकों को लुभाने की तैयारी में लग चुका है. इसके लिए तैयारियां जोरों पर है. अगर सबकुछ सही रहा तो आनेवाले दिनों में बिहार के पास एक और ऐसा पर्यटक स्थल होगा जहां बड़ी संख्या में लोग घूमने और मां गंगा में स्नान करने के लिए आने लगेंगे. 

पास ही है विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष 
यह क्षेत्र ऐतिहासिक धरोहरों से भरा पड़ा है, मां गंगा के किनारे बसे इस क्षेत्र को बिहार के लोग काशी कहकर पुकारते हैं. साथ हीं यहां एक पुरातन विश्वविद्यालय के खंडहर हैं जिसे अभी संरक्षित और सुरक्षित रखा गया है. विकास की कमी की वजह से अभी यहां कम पर्यटक ही आते हैं लेकिन अगर इसका विकास कार्य तैयार खाके के अनुसार किया गया तो जल्द ही यह एक पर्यटक क्षेत्र के रूप में विकसित हो जाएगा. वटेश्वर स्थान से कुछ दूरी पर ही विक्रमशिला विश्वविद्यालय के खंडहर हैं. यह विश्वविद्यालय नालंदा और तक्षशिला की तरह एक जमाने में शिक्षा का बड़ा केंद्र हुआ करता था. जिसमें 13वीं शताब्दी के पहले तक 10 हजार छात्र छात्रावास में रहकर तंत्र, आध्यात्म, वेदांग, शास्त्र, उपनिषद, विज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति का ज्ञान प्राप्त करते थे.  

बटेश्वर स्थान के विकास के लिए राज्य सरकार को भेजी गई योजना
बता दें कि बिहार के भागलपुर जिले के कहलगांव बटेश्वर स्थान धाम के आसपास के क्षेत्र के पर्यटन क्षेत्र के तौपर पर विकसित करने के लिए भागलुपर जिला प्रशासन ने राज्य सरकार को योजना भेजी है. इसके विकास के लिए राज्य सरकार से मदद भी मांगी गई है. भागलपुर के जिलाधिकारी ने इसके लिए राज्य पर्यटन विभाग को प्रस्ताव भेज दिया है. इस प्रस्ताव के साथ योजना का वह नक्शा भी भेजा गया है जिसके तहत क्षेत्र का विकास किया जाएगा. अगर सबकुछ ठीक रहा और राज्य सरकार से इसकी अनुमति मिल गई तो जल्द ही बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम इस पर काम शुरू कर देगा. 

ये भी पढ़ें- 9 मंजिला इमारत में तीन विभाग, ऐसा था नालंदा पुस्तकालय जो 3 महीने जलता रहा

योजना में विशेष क्या है
भागलुपर के जिलाधिकारी की तरफ से भेजे गए योजना के मुताबिक बटेश्वर धाम के मंदिर परिसर के संपूर्ण भू-निर्माण (लैंड स्कैपिंग) के साथ इसके सौंदर्यीकरण के काम को रखा गया है इसके साथ ही वेंडिंग जोन, पेयजल, सीटिंग एरिया, चेंजिंग रूम, सीढ़ियां, गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट, व्यू प्वाइंट, पार्किंग एरिया, सोलर लाइट, पैवर ब्लॉक, टॉयलेट के बारे में भी योजना में खाका तैयार करके भेजा गया है. भागलपुर के डीएम ने 8 मार्च को यहां का दौरा किया था और उसके बाद इस पूरे क्षेत्र के विकास की योजना सरकार को भेजी गई है. 

अगर जौ अनाज भर जमीन और होती तो आज बिहार में होती काशी 
इसको लेकर एक कथा प्रचलित है, कहते हैं की पर्वतराज हिमालय की पुत्री देवी पार्वती का विवाह महादेव से हुआ था और दोनों कैलाश में बास करते थे. सती को कैलाश में रहना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि कैलाश पर्वतराज हिमालय के क्षेत्र में हीं पड़ता था. एक दिन महादेव के इस बात का भान हुआ और उन्होंने देवी पार्वती की इच्छा को पूरा करने की सोची. इसके लिए कैलाश के बराबर ही भूमि के टुकड़े की आवश्यकता थी. इसके लिए शर्त यह रखी गई कि पूरा भूखंड गंगा के किनारे स्थित हो जहां गंगा उत्तरवाहिनी बह रही हो और वह स्थान पवित्र भी हो. देवर्षि नारद और देव शिल्पी विश्वकर्मा ने ऐसे क्षेत्र की खोज शुरू की और बिहार के कहलगांव स्थित बटेश्वर स्थान की जमीन इसके लिए सटीक बैठी. ऐसी एक और भूमि झारखंड के देवघर में भी चिताभूमि की भी मिली लेकिन यहां शक्ति पीठ होने के कारण यह जगह दोनों के निवास के लिए सही नहीं माना गया. अब बचा कहलगांव के समीप स्थित बटेश्वर स्थान लेकिन यहां भी एक कमी रह गई, यह भूमि कैलाश की माप से जौ भर कम रह गई. इसके बाद उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी की स्थापना की गई. इस क्षेत्र को पुरानों में गुप्त काशी की भी संज्ञा दी गई है. 

Trending news