Bihar Politics: RJD की हठधर्मिता से महागठबंधन में बड़ी हुई खाई!
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Bihar Politics: RJD की हठधर्मिता से महागठबंधन में बड़ी हुई खाई!

विधानसभा में 76 सीटों वाली यह पार्टी गठबंधन धर्म निभाने की जगह अपनी ही शर्तों पर आगे बढ़ती नजर आती है.

बिहार विधानसभा के लिए पिछले साल हुए दो सीटों उपचुनाव में भी यही हुआ था.

पटना: Bihar MLC Election 2022: एमएलसी चुनाव के उम्मीदवारों के ऐलान के साथ ही बिहार में उपचुनाव के दौरान महागठबंधन में पड़ी दरार पटने की जगह और गहरी होती दिख रही है. इसके लिए कहीं न कहीं राष्ट्रीय जनता दल की हठधर्मिता और गठबंधन के अन्य दलों को तुच्छ समझने की सोच बड़ी जिम्मेदार नजर आती है. आरजेडी के चाल-ढाल और व्यवहार से अक्सर ये लगता है कि वह गठबंधन के अन्य दलों को कुछ समझती ही नहीं है.

विधानसभा में 76 सीटों वाली यह पार्टी गठबंधन धर्म निभाने की जगह अपनी ही शर्तों पर आगे बढ़ती नजर आती है. उसके इसी दबंग वाले अंदाज से पहले उसकी दूरी कांग्रेस से बढ़ी और अब माले भी दूर खिसकती नजर आ रही है. 

पहले कांग्रेस को दिखाई 'औकात'
राजनीति में चाल, चेहरा और चरित्र का बड़ा महत्व होता है. लेकिन, आरजेडी ने हाल के दिनों में ऐसा जताया है कि उसे न तो अपनी मतवाली चाल से परहेज है, न ही गठबंधन में दबंग वाली छवि बनाए रखने से गुरेज है और न ही हर हाल में महागठबंधन धर्म का पालन करने वाली पार्टी का चरित्र दिखाने की चिंता है.

इस बात में कोई शक नहीं कि बिहार में UPA का स्वरूप काफी कुछ आरजेडी की ताकत से ही तय होता है वो बड़े भाई की भूमिका में है. ऐसी हालत में गठबंधन को बनाए रखने को लेकर उसकी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है. लेकिन आज की तेजस्वी वाली आरजेडी को शायद इस बात की बहुत चिंता नहीं है कि कौन उससे खुश है और कौन नाराज है, तभी तो वह बड़े फैसले लेने में न तो गठबंधन से सहमति बनाती नजर आती है और न ही उन्हें ज्यादा महत्व देती दिखती है.

बिहार विधानसभा के लिए पिछले साल हुए दो सीटों उपचुनाव में भी यही हुआ था, जब आरजेडी ने महागठबंधन के दूसरे बड़े सहयोगी कांग्रेस की एक सीट की मांग को दरकिनार करते हुए दबंगई के साथ अपना उम्मीदवार मैदान में उतार दिया था. परिणाम ये रहा कि दोनों में से कोई भी दल चुनाव नहीं जीत पाए और दोनों दलों के बीच वर्षों से चले आ रहे गठबंधन में गांठ पड़ गयी. 

अब माले को दिखाया 'ठेंगा'
अब एक बार फिर आरजेडी उसे दबंग वाले अंदाज में दिखी है और MLC चुनाव में गठबंधन धर्म की अनदेखी की है. इस बार उसने न सिर्फ कांग्रेस को नजरअंदाज किया है बल्कि वाम दलों को भी ठेंगा दिखाते हुए अपने तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है. लेकिन, आरजेडी इस बार अपनी ही चाल में फंसती नजर आ रही है. उसके दबंग वाले रवैये से इस बार कांग्रेस के साथ माले को भी आरजेडी से दूर खड़ा कर दिया है. 

कांग्रेस-माले हुए साथ तो आरजेडी को होगी मुश्किल
आरजेडी की तरफ से एकतरफा अंदाज में एमएलसी प्रत्याशियों के ऐलान से माले का मूड भी बिगड़ गया है. ऐसे में उसने कांग्रेस के साथ मिलकर अपना प्रत्याशी उतारने का मन बना लिया है. बिहार विधानसभा में विधायकों का जो गणित है, उसके लिहाज से किसी भी दल के उम्मीदवार को जीत के लिए 33 विधायकों का समर्थन चाहिए. ऐसे में 76 विधायकों वाले आरजेडी के दो प्रत्याशियों की जीत को तय है, लेकिन कांग्रेस और माले के विरोध से तीसरे उम्मीदवार को विधान परिषद तक पहुंचना मुश्किल दिखाई दे रहा है.

कांग्रेस के 19 और माले के 16 विधायक हैं यानी दोनों ने अगर आरजेडी का समर्थन नहीं किया और आपस में मिलकर कोई उम्मीदवार उतारा तो 35 विधायकों के दम पर उनकी आसान जीत तय है 

क्या अपनी ही मांद में घिर गयी आरजेडी ?
आरजेडी ने जब MLC चुनाव के लिए तीन उम्मीदवारों का ऐलान किया होगा तो उसे ये एहसास नहीं रहा होगा कि उसकी दादागीरी से तंग आकर माले भी कांग्रेस के साथ खड़ी हो जाएगी और बगावती तेवर अपना लेगी. हालांकि अब जो हकीकत सामने है, उससे तो ये साफ नजर आ रहा है कि लालू यादव (Lalu Yadav) की पार्टी अपनी ही मांद में घिर गयी है. अब या तो उसे अपना तीसरा उम्मीदवार वापस लेना होगा या फिर कांग्रेस और माले की सहमति लेनी होगी. अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर आरजेडी को अपने तीसरे प्रत्याशी की हार के साथ गठबंधन में और गहरे दरार के लिए तैयार रहना होगा.

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