बिहार में दशकों बाद नहीं बदल रहे हैं शिक्षा और रोजगार के हालात, युवाओं ने सरकार पर उठाए सवाल
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बिहार में दशकों बाद नहीं बदल रहे हैं शिक्षा और रोजगार के हालात, युवाओं ने सरकार पर उठाए सवाल

बिहार के बाहर काम की तलाश में मजदूरों के पलायन का एक लंबा इतिहास रहा है और इस समस्या से निजात बिहार की जनता को अब-तक नहीं मिली है. ये बात सिर्फ इस सरकार या उस सरकार की नहीं है. ये बात है, आज़ादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी क्या हम आर्थिक रूप से आज़ाद हैं?

 (फाइल फोटो)

Patna: बिहार के बाहर काम की तलाश में मजदूरों के पलायन का एक लंबा इतिहास रहा है और इस समस्या से निजात बिहार की जनता को अब-तक नहीं मिली है. ये बात सिर्फ इस सरकार या उस सरकार की नहीं है. ये बात है, आज़ादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी क्या हम आर्थिक रूप से आज़ाद हैं? बिहार में सत्ता परिवर्तन हुए 17 साल गुजरने को है. बिहार में सत्ता में आने से पहले नीतीश कुमार ने 2005 में एक नारा दिया था कि बिहार में जंगलराज है, गरीबी है, कुव्यवस्था है, भ्रस्टाचार है. इसे हटाना होगा, सुशासन लाना होगा, इस नारे से आम लोगों के बीच एक उम्मीद जगी और लोगों ने भरोसा किया, लोगों को लगा कि व्यवस्था बदलेंगे, स्थिति में बदलाव होगा. लेकिन क्या स्थिति बदली है ?

कब तक बदलेंगे शिक्षा और रोजगार के हालात
2005 से पहले भी बिहार में शिक्षा का हाल बुरा था, स्कूलों में शिक्षक नहीं थे, कॉलेजों में क्लासेज नहीं चलती थी और आज भी स्तिथी लगभग वही है. स्कूलों का भवन तो है लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं है. नीतीश कुमार की ओर लोगों ने इस उम्मीद से देखा कि शिक्षा-स्वास्थ में सुधार होंगे, रोजगार की स्तिथि में सुधार होंगे. युवाओं को लगा कि बिहार में चीनी मील, पेपर मील, जुट मील, खाद मील समेत तमाम पुराने उद्योग जो बंद पड़े थे. उसे किसी प्रकार से फिर से स्थापित किया जाएगा. लेकिन लोगों को सिर्फ मायूसी हाथ लगी. सरकार कहती है कि जो पुराने मील बंद पड़े हैं उसे सरकार चलाने में सक्षम नहीं है.जब तक कोई प्राइवेट इन्वेस्टर आगे नहीं आएगा. तब तक सरकार कुछ नहीं कर सकती है.

दूसरे राज्यों में होता है अपमान

GDP के हिसाब से बिहार भारत का गरीब राज्यों की सूची में शामिल है. दूसरे राज्यों में बिहारी शब्द एक गाली जैसे प्रतित होता था, पलायन करके गए लोगों को वहां अपमान सहना पड़ता था. साल 2018 में जब गुजरात में बिहारियों के खिलाफ हिंसा भड़की थी और ट्रेन के डिब्बों में भरकर लोग लौटने को मजबूर थे, जब कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के कारण बिहारी कामगार जिस हालात में दूसरे राज्यों में फंसे हुए थे वो देश कभी नहीं भूल सकता. कोविड के हालात में सुधार होते ही मजदूरों का पलायन फिर से शुरू हो गया लेकिन राज्य सरकार पलायन को रकने में असमर्थ है.

कुटीर-लघु उद्योग को मिल रहा है बढ़ावा

इसको लेकर युवा कहते हैं कि वो पलायन का विरोधी नहीं हूं. लेकिन अगर कोई महज 10-15 हजार की नौकरी करने के लिए या फिर एक अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य पलायन हो रहा है तो ये राज्य सरकार की नाकामी है. क्योंकि ये किसी भी राज्य की सरकार की जिम्मेदारी होती है कि अपने नागरिक को हर वो मूलभूत सुविधा दे जिसका वो हकदार है.महज अगर अपने राज्य के लोगों को बुनियादी सुविधा भी नहीं दे सकते हैं तो ऐसी सरकार को सत्ता में रहने का कोई हक नहीं बनता है. हालांकि युवाओं का कहना हैं कि राज्य सरकार इस समय कुटीर उद्योग और लघु उद्योग को बढ़ावा दे रही है. 

 

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