Makar Sankranti 2022: उत्तरायण ही वह समय होता है, जब संक्रांति का दिन बदलाव का दिन बन जाता है. दरअसल उत्तरायण सूर्य देव की एक स्थिति है. इसे प्राचीन नक्षत्र गणना के अनुसार स्थापित किया गया था.
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पटनाः Makar Sankranti Uttrayant: मकर संक्रांति का पर्व जीवन में बदलाव का पर्व है. यह सूर्य के सिर्फ राशि परिवर्तन की तिथि नहीं है, बल्कि जीवन में नवचेतना की ओर बढ़ने की घड़ी है. दरअसल, सर्दी रुकावट का प्रतीक मानी जाती है और गर्मी या ऊष्मा चलायमान होने का. भारतीय सनातन परंपरा में चरैवेति-चरैवेति का सिद्धांत और सूत्र दिया गया है. चरैवेति, यानी चलते रहना. मकर संक्रांति इसी सिद्धांत का उदाहरण है.
शुभ है उत्तरायण का समय
बात जब संक्रांति की आती है, तो इसके साथ उत्तरायण जुड़ जाता है. उत्तरायण ही वह समय होता है, जब संक्रांति का दिन बदलाव का दिन बन जाता है. दरअसल उत्तरायण सूर्य देव की एक स्थिति है. इसे प्राचीन नक्षत्र गणना के अनुसार स्थापित किया गया था. मान्यता है कि इस दौरान धरती से स्वर्ग तक का मार्ग प्रकाशित हो जाता है और देवता भी इस दौरान शक्तिशाली हो जाते हैं. इसलिए उत्तरायण को बहुत ही शुभ माना जाता है. यह तिथि इतनी शुभ है कि भयंकर पीड़ा में बाणों से बिंधे भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए इस दिन की प्रतीक्षा की थी. उन्होंने स्वेच्छा से इस दिन प्राण त्यागे थे.
शुभता का प्रतीक है मकर संक्रांति
महाभारत के अंतिम अध्याय का यह प्रसंग भारतीय सनातनी परंपरा प्राचीन उन्नत पद्धति की ओर इशारा करता है. मकर संक्रांति का पर्व शुभता का प्रतीक है. इसके साथ ही
यह नवचेतना का पर्व है. भीष्म पितामह इसी शुभ काल में प्राण त्यागना चाहते थे, इसीलिए बाणों से बिंधे होने का बाद भी इस तिथि की प्रतीक्षा की थी. इस दिन से ही सूर्य उत्तरायण होते हैं. इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है. यह ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है.खिचड़ी का सेवन करना और दान करना श्रेयस्कर माना जाता है और इसीलिए उत्तर-मध्य भारत में यह पर्व खिचड़ी कहलाता है.
जानिए क्या है उत्तरायण
सूर्य की दो स्थितियां होती हैं उत्तरायण और दक्षिणायण. जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर मकर राशि से मिथुन राशि तक चलायमान होते हैं. ऐसे में इसे उत्तरायण कहते हैं. उत्तरायण के दौरान दिन बड़े होते जाते हैं. इसके कारण रातें छोटी होने लगती हैं. दूसरी तरफ जब सूर्य दक्षिण दिशा की ओर कर्क राशि से धनु राशि तक का गति करते हैं, तो इसे दक्षिणायन कहा जाता है. दक्षिणायण के दौरान रातें बड़ी होती है और दिन छोटे. उत्तरायण और दक्षिणायन, दोनों का ही समयकाल छह-छह महीने का होता है.