Republic Day Story: संविधान सभा का सदस्य वो महाराजा, जिसने अंग्रेजों को झुकाया
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Republic Day Story: संविधान सभा का सदस्य वो महाराजा, जिसने अंग्रेजों को झुकाया

Republic Day Story: दरभंगा स्टेट के राजा महाराजा कामेश्ववर सिंह, महाराजा रामेश्वर सिंह के पुत्र थे. 28 नवंबर 1907 को दरभंगा में मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ जन्म, संविधान सभा के सदस्य रहे.

 (फाइल फोटो)

दरभंगाः Republic Day Story: 26 जनवरी 2022 को जब देश अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है, तब ऐसे दौर में एक बार फिर ध्यान संविधान की ओर चला जाता है. 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में जो संविधान बनकर तैयार हुआ, उसके निर्माण में कई विभूतियों ने अपनी महती भूमिका निभाई थी. इन विभूतियों में एक नाम खास तौर पर शामिल है. वह हैं दरभंगा के महाराजा रहे कामेश्वर सिंह. 

अलग मुकाम पर थी लोकप्रियता
दरभंगा स्टेट के राजा महाराजा कामेश्ववर सिंह, महाराजा रामेश्वर सिंह के पुत्र थे. 28 नवंबर 1907 को दरभंगा में मैथिल ब्राह्मण परिवार में जन्में कामेश्वर सिंह जब पिता की मृत्यु के बाद 1929 में गद्दी पर बैठे तब उन्होंने पिता और दादा की ही तरह लोकसेवा को अपने जीवन का पहले उद्देश्य बनाया. यही वजह रही कि अंग्रेजों के शासनकाल में भी उनकी लोकप्रियता अलग ही मुकाम पर थी. 

असल मायनों में जननेता
यह वजह रही कि लोकप्रियता ने उनकी महाराज और शासक वाली छवि से इतर, असल मायनों में उन्हें जननेता बना दिया. यही वजह रही कि जब देश आजाद होने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन किया गया तब महाराजा कामेश्वर सिंह उसके महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक रहे. उनकी लोकप्रियता का ही नतीजा था कि उन्होंने 1930-31 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन का भी दौरा किया था. 

भूकंप में की जनसेवा
1934 में जब नेपाल-बिहार में भीषण भूकंप आपदा आई, तो इसमें कई लोग मारे गए. दरभंगा में यह आपदा भयंकर विनाश लेकर आई थी. महाराज कामेश्वर सिंह ने बेघर हुए लोगों को तुरंत छत मिल सके इसके लिए सबसे पहले अपनी जमींदारी से जमीन का एक बड़ा हिस्सा दिया साथ ही स्मृति नामक स्मारक का निर्माण करने के लिए एक किले का निर्माण शुरू किया.

नहीं हुआ किले का निर्माण
ब्रिटिश राज ने महाराजा कामेश्वर सिंह को "मूल राजकुमार" की उपाधि से सम्मानित करने की घोषणा की थी. हालांकि किले का काम पूरा नहीं हो सका. यह ठेका कलकत्ता की एक फर्म को दिया गया था और 1939-40 में काम जोरों पर था. मुकदमे की वजह से सभी सुरक्षात्मक उपायों के साथ किले के तीन किनारों का निर्माण किया गया था. बाद में उच्च न्यायालय से स्थगन का आदेश था. इसके बाद किले पर काम अंततः छोड़ दिया गया था.

दान के कायल महात्मा गांधी
भारत की स्वतंत्रता के बाद, उन्हें संसद सदस्य के रूप में चुना गया था और वे राज्यसभा सांसद रहे. 1962 में अपनी मृत्यु तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे. एक बार जब महत्मा गाँधी, मालवीय जी और डा0 राजेंद्र प्रसाद जी के साथ दान लेने के लिए दरभंगा आये तो उन्होंने महाराजाधिराज से एक लाख रूपये दान की अपेक्षा की थी, लेकिन उस समय वो हतप्रभ रह गए जब उन्हें सात लाख का चेक मिला. वो लोग भी महाराजाधिराज के दान देने के प्रवृति के कायल हो गए.

अंग्रेजों को कहा ना
महाराजा के बारे में एक खास बात और इतिहास में दर्ज है. दरअसल, उनकी लोकप्रियता की वजह से ब्रिटिश सरकार भी उनकी हिमायती थी. हालांकि यह हिमायत सिर्फ एक चाल थी. इसके लिए अंग्रेजों ने महाराजा को कई बार अलग-अलग उपाधियों और अलंकरणों से सम्मानित किया. इसका उद्देश्य था कि अंग्रेज वक्त आने पर उनका उपयोग अपने हित में करने की सोच रहे थे. 1942 में ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ लड़ने के लिए महाराजा से मदद मांगी थी. अपने ही देश के क्रांतिवीरों और सेनानियों के दमन के लिए कामेश्वर सिंह ने ब्रिटिश सरकार को दो टूक मना कर दिया और वहीं ने स्वतंत्रता संघर्ष के लिए कांग्रेस को लाखों रुपये दान कर दिए. अंग्रेज उनका मुंह देखते रह गए. 

सबसे कम उम्र के रहे विधायक
1931 में लन्दन में हुए गोलमेज सम्मेलन के वे सबसे कम उम्र के प्रतिनिधि थे और 24 साल की उम्र में भारत के सबसे कम उम्र के विधायक भी रहे. 1932 से राज्य परिषद, संविधान सभा के अंतरिम संसद और राज्य सभा के सदस्य 1962 तक रहे. उन्होंने चर्चिल की भतीजी से महात्मा गांधी की पहली प्रतिमा बनवाई और फिर प्रदर्शन के लिए भारत की वायसराय के समक्ष 1940 में प्रस्तुत किया.

 

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