पीएचडी और रिसर्च में पिछड़ रहा बिहार, कैसे मिलेगी बेहतर रैंक?
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पीएचडी और रिसर्च में पिछड़ रहा बिहार, कैसे मिलेगी बेहतर रैंक?

पटना यूनिवर्सिटी (Patna University) कुछ मामलों में अपवाद है लेकिन बाकी यूनिवर्सिटी की स्थिति पीएचडी और रिसर्च के मामले में बेहद ही खराब है. ऐसे में सवाल ये है कि अगर पीएचडी और रिसर्च किसी भी यूनिवर्सिटी में मानक स्तर के नहीं होंगे तो उसे नैक से बेहतर रैंक कैसे मिलेगा?

 

पीएचडी और रिसर्च में पिछड़ रहा बिहार.

Patna: कहने को हम कह सकते हैं कि बिहार में नालंदा (Nalanda University) और विक्रमशिला (Vikramshila university) जैसे विश्वविद्यालय थे, जहां विदेश से भी छात्र पढ़ने के लिए आया करते थे, लेकिन कोई भी राज्य या संस्थान इतिहास के भरोसे वर्तमान और भविष्य नहीं बना सकता है.

पीएचडी और रिसर्च की स्थिति खराब
यही बात बिहार के विश्वविद्यालयों पर भी लागू होती है. जब भी राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (National Assessment and Accreditation Council) यानी NAAC की टीम बिहार के विश्वविद्यालयों का दौरा करती है तो उसे निराश होना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार के विश्वविद्यालयों में पीएचडी और रिसर्च की स्थिति बेहद ही खराब है. फिलहाल बिहार की कोई भी यूनिवर्सिटी ऐसी नहीं है जहां से उच्च स्तर के रिसर्च पेपर निकल रहे हों.

हालांकि, पटना यूनिवर्सिटी (Patna University) कुछ मामलों में अपवाद है लेकिन बाकी यूनिवर्सिटी की स्थिति पीएचडी और रिसर्च के मामले में बेहद ही खराब है. ऐसे में सवाल ये है कि अगर पीएचडी और रिसर्च किसी भी यूनिवर्सिटी में मानक स्तर के नहीं होंगे तो उसे नैक से बेहतर रैंक कैसे मिलेगा?

पटना साइंस कॉलेज में हो रहा है रिसर्च
पीएचडी और रिसर्च की कमजोर स्थिति को पटना विश्वविद्यालय के कुलपति और रिसर्च टीम से जुड़े प्रोफेसर भी स्वीकार करते हैं. हालांकि, पटना साइंस कॉलेज (Patna Science College) में फिलहाल कुछ शोध जरूर हो रहे हैं.

पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर गिरीश कुमार चौधरी के मुताबिक, 'पीएचडी या रिसर्च पेपर की कमी को हम स्वीकार करते हैं. जितने भी पीएचडी पेपर पिछले कुछ सालों में निकले हैं उस पर सुपरवाइजर यानि शिक्षकों का नाम नहीं होता था इसलिए पीएचडी के मामले में हमारी हालत थोड़ी खराब है. हमलोग डॉक्यूमेंटेशन में पिछड़ रहे हैं.'

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वहीं, आईक्यूएसी के डायरेक्टर बीरेंद्र प्रसाद के मुताबिक, किसी भी यूनिवर्सिटी को नैंक से बेहतर रैंक मिलने में रिसर्च पेपर की भूमिका अहम होती है. जिस लेवल और जितनी संख्या में प्रकाशन होना चाहिए वो नहीं हो रहा है.

हम पीएचडी और रिसर्च पेपर की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि जब भी नैक की टीम बिहार आती है तो वो इस चीज की शिकायत संबंधित विश्वविद्यालयों से जरूर करती है. नैक की टीम ने यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में जो मापदंड तय किए हैं उसमें पीएचडी और रिसर्च पेपर एक अहम फैक्टर है. अफसोस है कि बिहार की किसी भी यूनिवर्सिटी में ढंग के शोध नहीं हो रहे हैं. छात्रों, शिक्षकों की संख्या के अनुपात में पीएचडी और रिसर्च पर काम नहीं हो रहे हैं.

ताज्जुब ये है कि ये उस बिहार की कहानी है जिसके बजट का 20 फीसदी से अधिक खर्च तो सिर्फ शिक्षा पर हो रहा है. वहीं, इसे लेकर उच्च शिक्षा विभाग की निदेशक प्रोफेसर रेखा कुमारी स्वीकार करती हैं कि पीएचडी और रिसर्च के मामले में बिहार पिछड़ रहा है. हालांकि, उन्हें अच्छे दिन लौटने का भरोसा जरूर है.

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आइए जानते हैं कि बिहार भर के विश्वविद्यालयों में पीएचडी की क्या स्थिति है-  
यूनिवर्सिटी                         2018-19    2019-20    2020-21  
पटना यूनिवर्सिटी                    106          145          214  
पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी                 00          00             00  
मगध यूनिवर्सिटी                    187          250            92  
वीर कुंवर सिंह विवि, आरा         06            02           08  
बीएनएमयू, मधेपुरा                131            81             87  
यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर          212           243           229  
एलएनएमयू, दरभंगा             368             19           176  
टीएमबीयू, भागलपुर              09               08            09  
जेपीयू, छपरा                     124              108         145  
मुंगेरू यूनिवर्सिटी                  00               00           00  
पूर्णिया यूनिवर्सिटी                 00                00          00  
चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान          00                00           00      

ये स्थिति बिहार भर के तमाम विश्वविद्यालयों की पीएचडी के मामले में हैं. अब रिसर्च की क्या स्थिति है. पटना विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, हाल में दो रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए हैं जिसमें अरेबियन जर्नल ऑफ केमेस्ट्री और सीएनएस न्यूरोलॉजिकल डिसऑडर्स....बाकी यूनिवर्सिटी की जानकारी विभाग के पास नहीं है. हमारे हाथों में जो भी तकनीक है वो रिसर्च और आविष्कार के बाद ही पहुंचा है. अगर बिहार की यूनिवर्सिटी को सिर्फ डिग्री देने का संस्थान भर बना दिया जाएगा तो बिहार के विश्वविद्यालय कभी भी JNU या फिर दिल्ली विवि को टक्कर दे सकेंगे? पीएचडी या फिर रिसर्च बेहतर हो इसके लिए ईमानदार प्रयास कुलपतियों के साथ शिक्षा विभाग को भी करना होगा.  

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