बिहार में बदला घुसखोरी का ट्रेंड, विजिलेंस ने 2018 में सबसे ज्यादा रकम की बरामद
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बिहार में बदला घुसखोरी का ट्रेंड, विजिलेंस ने 2018 में सबसे ज्यादा रकम की बरामद

निगरानी विभाग के डीआईजी शंकर झा भी मानते हैं कि समय के साथ निगरानी में घूस का ट्रेंड बदलता जा रहा है.

2018 में निगरानी की ओर से की गई कार्रवाई में कुल 55 केस दर्ज हुए हैं, इनमें 30 पदाधिकारी स्तर के सरकारी कर्मी शामिल हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर))

आशुतोष चंद्रा, पटना : बिहार में घूसखोरी का ट्रेंड बदलता जा रहा है. सरकारी बाबू अब हजार में नहीं बल्कि लाखों में घूस की रकम डकार रहे हैं. यह खुलासा हुआ है साल 2018 के निगरानी विभाग की रिपोर्ट में. विभाग के गठन के बाद अब तक की सबसे ज्यादा घूस की रकम साल 2018 में निगरानी ने घूसखोरों से जब्त की है. बिहार सरकार में कई महत्पूर्ण पदों पर काम कर चुके पूर्व आईएएस अधिकारी इस ट्रेंड को बदलने के लिए सोशल मूवमेंट की जरुरत बता रहे हैं.

जुलाई 2012 में बिहार के पूर्व डीजीपी नारायण मिश्रा की संपत्ति जब्त हुई. नारायण मिश्रा पर भ्रष्टाचार के जरिये आय से अधिक संपत्ति जमा करने का आरोप था. पूर्व डीजीपी के जब्त किये गये मकान में आज मूक बधिरों का स्कूल चलता है.

बिहार सरकार ने भ्रष्ट्राचार के खिलाफ अपनी जीरो टॉलरेंस की नीति को साफ करते हुए नारायण मिश्रा को एक मॉडल के रुप में पेश किया था. उम्मद की जा रही थी कि इस मॉडल को देखने के बाद घूसखोर कर्मचारी और अधिकारी अपनी हरकतों से बाज आ जाएंगे और भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाएगा. लेकिन यहां कहानी बिलकुल ही अलग साबित हो रही है. भ्रष्टाचार का ग्राफ न केवल बढ़ता जा रहा बल्कि घूस की रकम भी बढ़ती जा रही है.

बिहार में निगरानी विभाग का गठन साल 1985 में किया गया, लेकिन साल 2012 में निगरानी विभाग को फिर से नीतीश सरकार ने जिंदा किया. अपने पहले साल 2012 में निगरानी विभाग ने कुल 10 लाख 90 हजार घूस की रकम के साथ कई घूसखोरों को दबोचा कर बड़ी उपलब्धि हासिल की. लेकिन इस कार्रवाई के बाद घूस का ट्रेंड घटने के बजाय बढ़ता ही चला गया.

विभिन्न वर्षों में जब्त घूस की रकम :

>> 2012- 10 लाख 90 हजार
>> 2013- 19 लाख 77 हजार
>> 2014- 13 लाख 8 हजार
>> 2015- 26 लाख 70 हजार
>> 2016- 55 लाख 42 हजार
>> 2017- 20 लाख 24 हजार
>> 2018- 77 लाख 92 हजार

निगरानी विभाग के डीआईजी शंकर झा भी मानते हैं कि समय के साथ निगरानी में घूस का ट्रेंड बदलता जा रहा है. सरकार विकास के लिए ज्यादा पैसे लगा रही है और सरकारी अधिकारी कर्मचारी ज्यादा आनेवाले पैसों में से अपने बढ़े हुए कमीशन का श्रोत ढूंढ ले रहे हैं. निगरानी विभाग की कोशिश है कि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी इस बात को भली भांति समझ लें कि उनकी गलत हड़कतों पर कोई नजर रखे हुए और थोड़ी सी चूक उन्हें जेल पहुंचा सकती है.

2018 में निगरानी की ओर से की गई कार्रवाई में कुल 55 केस दर्ज हुए हैं, इनमें 30 पदाधिकारी स्तर के सरकारी कर्मी शामिल हैं. कुल छह करोड़ 91 लाख 12 हजार 32 रुपये की संपत्ति जब्त किये जाने की तैयारी है. वहीं, एक करोड़ 63 लाख 24 हजार 561 रुपये की संपत्ति जब्त हो चुकी है.
 
बिहार सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके पूर्व आईएएस अधिकारी व्यास जी घूसखोरी के इस ट्रेंड पर चिंता जाहिर करते हैं. व्यास जी की मानें तो जब बड़े सरकारी अधिकारी ही दहेज जैसे मामलों में संकोच नहीं करते हैं तो आम कर्मचारी के बारे में क्या कहा जाए. व्यास जी ने घूसखोरी पर रोक लगाने के लिए सामाजिक और बौद्धिक आंदोलन चलाये जाने की बात कही है.

नए साल की शुरुआत में 2019 में चार ट्रैप केस हो चुके हैं. घूसखोरी पर रोक लगाने और घूसखोरों में भय कायम करने के लिए विजलेंस की कार्रवाई जारी है. लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या घूसखोरी पर अंकुश वाकई एक सपना बनकर रह जाएगा?