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रांचीः 1880 का खड़िया विद्रोह शायद ही किसी को पता ना हो. अंग्रेजों से अपनी जमीन बचाने के लिए तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में यह विद्रोह शुरू हुआ. इस विद्रोह में झारखंड के आदिवासी जमीन और जंगल से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए पारंपरिक हथियारों गदका, तीर और तलवार की शिक्षा लेकर फिरंगियों के खिलाफ मैदान में आ गए. 23 अप्रैल 1880 को अंग्रेजों ने धोखे से तेलंगा खड़िया की हत्या करवा दी लेकिन यह आंदोलन रूका नहीं और उनकी पत्नी रत्नी खड़िया ने इसे जारी रखा. आज हालात ये हैं कि इस परिवार के लोगों को प्रदेश में अच्छी चिकित्सा नहीं मिल पाई और उनके घर के दो लोगों ने कुछ दिनों के अंतराल पर ही इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया.
दरअसल अमर शहीद तेलंगा खड़िया के पोते जोगिया खड़िया भी लंबे समय तक समुचित चिकित्सा के अभाव में परेशान रहे और उनकी मौत हो गई उनकी पत्नी पुनिया देवी भी इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाई और इलाज के अभाव में एक सप्ताह के अंदर उनका भी निधन हो गया. रांची के रिम्स में इलाज के दौरान पुनिया खड़िया ने भी दम तोड़ दिया.
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पैसे के अभाव के कारण शहीद तेलंगा खड़िया के पोते का समुचित इलाज नहीं हो पाया और जोगिया खड़िया का निधन हो गया. उसके बाद से ही उनकी पत्नी पूरी तरह से टूट गई और उनकी हालत भी खराब हो गई. उन्हें भी समुचित इलाज नहीं मिल पाया और आज उन्होंने भी दम तोड़ दिया. खड़िया परिवार इस सदमे से उबर नहीं पा रहा हैय
शहीद को पोते और उनकी पत्नी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पैसे के अभाव के कारण वह अपना इलाज नहीं करा पा रहे थे. सरकार और प्रशासन ने भी इस शहीद परिवार की परेशानी पर ध्यान नहीं दिया और आज इस परिवार से 7 दिन के भीतर दो शव उठ गए.
शहीद को परिजनों की मानें तो दोनों के इलाज के लिए पूर्वजों की जमीन तक बंधक रखनी पड़ी थी. पैसे की इतनी किल्लत की झाड़फूंक और झोला छाप डॉक्टरों के सहारे उनका इलाज कराया गया. प्रशासन से इस शहीद परिवार को कोई मदद नहीं मिली और आज हालात यह है कि परिवार से दो मौत एक सप्ताह के अंदर हो गया. परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा है.