रिसर्च के प्रथम चरण में रिम्स में दाखिल हुए कोविड मरीजों में से 46 पर ट्रायल किया गया. उन्हें एलोपैथिक के साथ यूनानी दवाइयां दी गई. 110 दिनों तक चले इस ट्रायल के दौरान यह पाया गया कि जिन मरीजों को कॉम्बिनेशन मेडिसिन दी गई, उनकी रिकवरी जल्द हुई.
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Ranchi: कोविड (Covid-19) के मरीजों के इलाज में एलोपैथिक और यूनानी दवाइयों का कॉम्बिनेशन कारगर हो सकता है. रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) में चल रहे रिसर्च के पहले चरण के परिणामों से यह उम्मीद जगी है. रिसर्च का दूसरा चरण भी शुरू हो चुका है और अगले कुछ महीनों में इसके नतीजे आ जाने की उम्मीद है. सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन यूनानी मेडिसिन (Central Council for Research in Unani Medicine) ने दोनों चरणों में ट्रायल के दौरान मरीजों पर कॉम्बिनेशन मेडिसिन के इस्तेमाल की इजाजत दी है.
कॉम्बिनेशन मेडिसिन लेने वाले मरीजों की हुई जल्द रिकवरी
रिसर्च के प्रथम चरण में रिम्स में दाखिल हुए कोविड मरीजों में से 46 पर ट्रायल किया गया. उन्हें एलोपैथिक के साथ यूनानी दवाइयां दी गई. 110 दिनों तक चले इस ट्रायल के दौरान यह पाया गया कि जिन मरीजों को कॉम्बिनेशन मेडिसिन दी गई, उनकी रिकवरी जल्द हुई. इसी अवधि में जिन्हें केवल एलोपैथ की दवाइयां दी जा रही थीं, उनकी रिकवरी में 14-15 दिनों का वक्त लगा, जबकि जिनपर कॉम्बिनेशन मेडिसिन का इस्तेमाल हुआ, उनकी रिकवरी 8-10 दिनों में हुई.
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12 जनवरी से 2 मई बीच किया गया ट्रायल
इस रिसर्च की अगुवाई रिम्स के कार्डियोथोरेसिक सर्जन सह सीटीवीएस विभागाध्यक्ष डॉ अंशुल कुमार कर रहे हैं, जबकि टीम में क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ मोहम्मद सैफ, डॉ जियाउल हक, डॉ गुलाम रबानी शामिल हैं. रिसर्च टीम ने बताया कि सीसीआरयूएम दिल्ली से नवंबर 2020 में इजाजत मिलने के बाद 12 जनवरी से 2 मई 2021 बीच कोरोना के मरीजों पर ट्रायल किया गया. जिन मरीजों पर ट्रायल किया गया, उनमें से 36 माइल्ड पेशेंट और 10 ऐसे थे, जो ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे. इन्हें यूनानी दवाओं तिरयाक वबाई, अर्क अजीब और हब्बे ए लोबान के साथ-साथ विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित एलोपैथिक दवाइयां दी गई थीं.
रिसर्च और ट्रायल के दूसरे चरण का काम शुरू
अब रिसर्च और ट्रायल के दूसरे चरण का काम भी शुरू हो गया है. इस फेज में ज्यादा संख्या में मरीजों पर कॉम्बिनेशन मेडिसिन का इस्तेमाल किया जाएगा. रिसर्च टीम का कहना है कि दूसरे चरण के नतीजे सफल रहे तो कोविड का इलाज अपेक्षाकृत सस्ता और प्रभावी हो सकता है. इसकी मदद से ऐसा फॉमूर्ला विकसित हो सकता है, जिससे इलाज के दौरान दवाइयों का साइड इफेक्ट कम किया जा सके.
(इनपुट- आईएएनएस)