Bihar Politics: इसे सियासी मजबूरी ही कहेंगे कि मुख्यमंत्री की इस बात पर अब बीजेपी नेताओं को भी भरोसा नहीं हो रहा होगा, लेकिन फिर भी साथ हैं. केंद्रीय नेतृत्व के आदेश का पालन करते हुए प्रदेश के भाजपाई भले ही शांत हो गए हों, लेकिन अबकी बार नीतीश पर विश्वास करना बड़ा मुश्किल हो रहा होगा.
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Bihar Politics: बिहार की सियासी उथल-पुथल पर आखिरकार रविवार (28 जनवरी) को विराम लग गया. नीतीश कुमार के पलटी मारने से 17 महीने बाद बीजेपी की फिर से सत्ता में वापसी हो चुकी है. बीजेपी की मदद से 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि हम पहले भी बीजेपी के साथ थे, बीच में कहीं गए थे, अब फिर से साथ आ गए. अब सब दिन साथ रहेंगे. अब जरा 17 महीने पहले नीतीश के बयान को याद कीजिए. उस वक्त नीतीश ने कहा था कि मर जाएंगे, लेकिन अब उनके (बीजेपी) के साथ नहीं जाएंगे. अगर यादों की डायरी को और पीछे लेकर जाएंगे, को उस समय भी नीतीश का बयान कुछ ऐसा ही था. मतलब नीतीश साथ-जीने मरने की कसमे खाने के बाद उन्हें तोड़ने में माहिर हैं.
इसे सियासी मजबूरी ही कहेंगे कि मुख्यमंत्री की इस बात पर अब बीजेपी नेताओं को भी भरोसा नहीं हो रहा होगा, लेकिन फिर भी साथ हैं. केंद्रीय नेतृत्व के आदेश का पालन करते हुए प्रदेश के भाजपाई भले ही शांत हो गए हों, लेकिन अबकी बार नीतीश पर विश्वास करना बड़ा मुश्किल हो रहा होगा. शायद यही वजह है कि डिप्टी सीएम बनने के बाद भी सम्राट चौधरी की पगड़ी बरकरार है. अब सवाल ये है कि क्या नीतीश से इस बार समझौता कहीं BJP को भारी तो नहीं पड़ेगा? नीतीश फिर से यू-टर्न नहीं लेंगे, इसकी क्या गारंटी है? क्या नीतीश पर भरोसा करके अमित शाह ने अपनी साख को दांव पर नहीं लगा लिया?
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नीतीश कुमार ने जब बीजेपी को धोखा दिया था तब अमित शाह ने ही उनके लिए एनडीए के दरवाजे बंद कर दिए थे. अमित शाह ने जब 5 नवंबर को बिहार का दौरा किया था, तब नीतीश कुमार को पलटूराम कहकर संबोधित किया था. अमित शाह ने नीतीश कुमार का नाम तो नहीं लिया था लेकिन उन्होंने कहा था कि बिहार को पलटूराम से मुक्ति दिलानी है. सिर्फ अमित शाह ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल चुके थे. नीतीश ने जब विधानसभा में महिलाओं पर टिप्पणी की थी, तब पीएम मोदी ने राजस्थान की रैली में उन पर हमला किया था. जीतन राम मांझी पर नीतीश के अभद्र व्यवहार को पीएम मोदी ने तेलंगाना की रैली में उठाया था.
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नीतीश कुमार इससे पहले 2013 में एनडीए छोड़कर गए थे. उसके बाद 2017 में उन्होंने वापसी की थी और फिर से 2022 में राजद से हाथ मिला लिया था. अब 17 महीने बाद नीतीश एक बार फिर से एनडीए में वापस आ चुके हैं. ऐसे में बीजेपी का एक बार फिर से नीतीश कुमार को समर्थन देने का फैसला कहीं पार्टी की साख पर बट्टा ना लगा दे.