इतिहास के पन्नों में दफन राजेंद्र प्रसाद का स्कूल! सरकारी उदासीनता पर बहा रहा बदहाली के 'आंसू'
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इतिहास के पन्नों में दफन राजेंद्र प्रसाद का स्कूल! सरकारी उदासीनता पर बहा रहा बदहाली के 'आंसू'

प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद मैट्रिक तक कि शिक्षा देने वाला जिला स्कूल आज अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. 

 

प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की आज 136वीं जयंती है. (फाइल फोटो)

राकेश कुमार सिंह/छपरा:  'EXAMINEE IS BETTER THAN EXAMINER' यह ऐतिहासिक टिप्पणी वर्ष 1902 में प्रमंडलीय मुख्यालय छपरा स्थित जिला स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा के बाद देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के उत्तर पुस्तिका की जांच के दौरान अंग्रेज परीक्षक ने किया था.

अपनी बदहाली पर बहा रहा आंसू
दरअसल, स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद मैट्रिक तक कि शिक्षा देने वाला जिला स्कूल आज अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं जो अपने आप में 'स्वर्णिम अतीत का बदहाल वर्तमान' की कहावत चरितार्थ कर रहा है. इतना ही नहीं बल्कि इस विद्यालय के कई भवन शिक्षा विभाग के कब्जे में है. हालांकि, स्कूल प्रशासन के द्वारा शिक्षा विभाग को कई बार आवेदन दिया चुका है. लेकिन आज तक अतिक्रमण मुक्त नहीं हो सका है.

'सरकारी उदासीनता और राजनीतिक प्रपंच का शिकार'
जिला स्कूल भले ही देश को प्रथम राष्ट्रपति देने वाला विद्यालय रहा है. लेकिन इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद भी विद्यालय को ख्याति नहीं मिल सकी है. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को उद्धाहरण मानकर विद्यालय में शैक्षणिक व्यवस्था सुदृढ़ कर छात्रों के बीच एक आदर्श स्थापित किया जा सकता था. पर विभागीय उदासीनता और राजनीतिक प्रपंच ने इस विद्यालय के स्तर को उठने ही नहीं दिया.

स्कूल कम ऑफिस कैंपस ज्यादा
जिला स्कूल में वैसे तो नए और पुराने मिलाकर लगभग 40 कमरें है. लेकिन यहां के अधिकतर कमरों में विभागीय कार्यालय चलता है. शिक्षा विभाग के पास भवन की कमी होने के कारण विद्यालय में ही जिला शिक्षा पदाधिकारी का कार्यालय, डीपीओ कार्यालय, साक्षरता कार्यालय, कंप्यूटर सेंटर, निगरानी कार्यालय चलते हैं. वहीं, अधिकतर समय विद्यालय में शिक्षा विभाग से सम्बंधित कार्यक्रमों का आयोजन होते रहता है, जिस कारण यह विद्यालय शिक्षा का केंद्र कम कार्यालय कैंपस ज्यादा प्रतीत होता है.

साल में 1 बार सिर्फ परिचर्चा
यहां प्रति वर्ष की भांति 3 दिसंबर को देशरत्न की जयंती पर विद्यालय प्रशासन द्वारा एक परिचर्चा का आयोजन कर अपनी खानापूर्ति कर ली जाती है. कारण की देश के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर 1884 में तत्कालीन सारण जिला वर्तमान में सिवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. लेकिन उनकी प्राथमिक व प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के इसी जिला स्कूल से शुरू हुआ था.

ऐतिहासिक धरोहर की स्थिति बिगड़ी
जिला स्कूल के प्राचार्य मुनमुन श्रीवास्तव ने कहा, 'इसी विद्यालय में राजेंद्र बाबू का नामांकन 1893 में आठवे वर्ग में हुआ था जो उस वक्त का प्रारंभिक वर्ग था. उस समय आठवीं वर्ग से उतीर्ण करने के बाद इसी स्कूल में नामांकन के लिए एंट्रेस में आया करते थे, जिसे अव्वल दर्जा का वर्ग कहा जाता था. राजेंद्र बाबू इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि उन्हें वर्ग आठ से सीधे वर्ग नौ में प्रोन्नति कर दिया गया था. उन्होंने इसी जिला स्कूल से 1902 में एंट्रेस की परीक्षा दी थी जिसमे पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, वर्मा और नेपाल में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने प्रान्त का नाम रोशन किया था. लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो उत्तर पुस्तिका कोलकाता से बिहार नहीं आ सका है, जिसमें अंग्रेज परीक्षक ने एतिहासिक टिप्पणी की है. इस विद्यालय के शिक्षक व छात्र जिला स्कूल को एक धरोहर के रूप में देखते है.'

राजकीय इंटर कॉलेज जिला स्कूल को मॉडल स्कूल का दर्जा प्राप्त है. लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ भी नही है. इस विद्यालय के कोने-कोने में राजेन्द्र प्रसाद की यादें जुड़ी हुई है. लेकिन स्कूल की वर्तमान दशा व दिशा देखकर ऐसा नही लगता की इसका इतिहास इतना गौरवशाली रहा होगा. जर्जर भवन शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं का अभाव के बावजूद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में मात्र 18 शिक्षक है जो 1100 छात्रों को पठन-पाठन के अलावा अन्य गतिविधियों की शिक्षा देने का कार्य करते है. वहीं, जिला स्कूल के प्राचार्य ने बताया कि विद्यालय में शैक्षणिक व्यवस्था सुचारू ढंग से चल रही है. शिक्षकों की संख्या भी पर्याप्त मात्रा में है. राजेंद्र बाबू इसी विद्यालय में पढ़े हैं. यह जिला स्कूल के लिए गर्व की बात है. समय-समय पर छात्रों को देशरत्न से जुड़ी स्मृतियां और उनके उपलब्धियों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है.

समय रहते अगर शिक्षा विभाग शिक्षा के इस मंदिर को संरक्षित नहीं किया तो वो दिन भी दूर नहीं जब गौरवशाली अतीत वाला यह स्कूल इतिहास के पन्नो में दफन हो जाए. ऐसे में जरुरत है इसे सजाने व संवारने की जिससे छात्रों को राजेंद्र प्रसाद की तरह बनने का प्रेरणा मिले.