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याद करिए, नीतीश कुमार को कांग्रेस ने विपक्षी एकता का जिम्मा कब सौंपा था. उस समय कांग्रेस हताश थी. राहुल गांधी को सजा हो गई थी और उनकी सांसदी भी चली गई थी. कांग्रेस के सामने नेतृत्व का संकट सामने था. सजा पर रोक नहीं लगी तो 2029 तक राहुल गांधी पीएम नहीं बन सकते. तब राहुल गांधी की मौजूदगी में मल्लिकार्जुन खड़गे और नीतीश कुमार की मुलाकात हुई थी और विपक्षी एकता का जिम्मा बिहार के मुख्यमंत्री को सौंपा गया था. आज हालात एकदम उलट हैं. कांग्रेस पाॅजिटिव एनर्जी से भरी हुई है और कर्नाटक में उसने शानदार जीत दर्ज की है. वो भी बीजेपी के खिलाफ. इससे कांग्रेस को एक तरह से एक नई संजीवनी मिली है. एक तरह से कहें तो कांग्रेस अब बिंदास हो गई है और फ्रंटफुट पर खेल रही है. अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस नीतीश कुमार को उतना ही फ्री हैंड देगी, जितना कि हताश होने के बाद उसने दिया था. इस सवाल के जवाब में आपको कई किंतु-परंतु मिलेंगे.
कांग्रेस की ओर से फ्री हैंड मिलने के बाद से नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की कवायद तेज कर दी थी. अब तक वे पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के प्रमुख उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिल चुके हैं. हालांकि इनमें से नवीन पटनायक ने नीतीश कुमार को बड़ा झटका दिया और विपक्षी खेमे में आने से इनकार कर दिया. हालांकि बाकी सभी दलों के नेताओं ने सकारात्मक रुख दिखाया है.
पिछले साल तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव पटना आए थे और सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद के. चंद्रशेखर राव ने अपनी पार्टी की महारैली की थी, जिसमें कई क्षेत्रीय दलों को बुलाया पर नीतीश कुमार को नहीं बुलाया. वे खुद को पीएम पद उम्मीदवार घोषित करने की फिराक में हैं.
कर्नाटक चुनाव परिणाम को लोकसभा चुनाव 2024 का लिटमस टेस्ट कहा जा रहा है. हालांकि आने वाले महीनों में अभी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं. फिर भी कांग्रेस ने जिस तरह कर्नाटक का चुनाव लड़ा और पीएम मोदी की तमाम रैलियों और रोड शो के बाद भी बड़ी जीत हासिल की, उससे उसका उत्साह सातवें आसमान पर है. इस जीत के साथ ही कांग्रेस की पूरे देश में 4 राज्यों में सरकार हो गई है. इसके अलावा 3 राज्यों में वह गठबंधन सरकार में भागीदार है.
जानकारों का कहना है कि अपनी स्थिति मजबूत होते देख अब कांग्रेस सीएम नीतीश कुमार को फ्रीहैंड देने से बचेगी और 2024 का लोकसभा चुनाव खुद की अगुवाई में लड़ना पसंद करेगी. इससे जहां विपक्षी एकता को परेशानी हो सकती है, वहीं कमजोर कांग्रेस से मजबूत सौदेबाजी का सपना देखने वाले क्षेत्रीय दलों का सपना भी चूर-चूर हो सकता है.