Indian Archery: दिव्यांग तनिष्का के 'द्रोणाचार्य' बने बिहार के अनुराग, पैरालंपिक है लक्ष्य
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Indian Archery: दिव्यांग तनिष्का के 'द्रोणाचार्य' बने बिहार के अनुराग, पैरालंपिक है लक्ष्य

Indian Archery: कुछ कर गुजरने की चाह हो तो रास्ते खुद ब खुद बनते चले जाते हैं. दिल्ली की त्रिलोकपुरी निवासी पैरा तीरंदाज तनिष्का ने भले ही दिव्यांग हैं पर इनका जज्बा अच्छे-अच्छों को हैरत में डालने वाला है.

Indian Archery: दिव्यांग तनिष्का के 'द्रोणाचार्य' बने बिहार के अनुराग, पैरालंपिक है लक्ष्य

पटनाः Indian Archery: किसी ने सही कहा है कि कुछ कर गुजरने की चाह हो तो रास्ते खुद ब खुद बनते चले जाते हैं. इस बात को सच कर दिखाया है दिल्ली की त्रिलोकपुरी निवासी पैरा तीरंदाज तनिष्का ने. तनिष्का भले ही दिव्यांग हैं पर इनका जज्बा अच्छे-अच्छों को हैरत में डालने वाला है. खेल के जुनून के आगे उन्होंने कभी आर्थिक चुनौतियों को सामने नहीं आने दिया. उनका लक्ष्य बस ओलंपिक में पदक हालिस करना है. जुनून ऐसा है कि कोरोना संकट में भी उनके कदम नहीं रुके और शारीरिक दूरी का पालन करते हुए घर के पास मैदान में तीरंदाजी का अभ्यास किया.

तनिष्का के लिए 'द्रोणाचार्य' बन गए बिहार के गुरु अनुराग कुमार 
बिहार के रहने वाले गुरु अनुराग कुमार ने खास बातचीत में बताया कि तनिष्का भले ही आर्थिक रूप से कमजोर हैं, लेकिन धनुर्विद्या की धनी हैं. दिव्यांग तनिष्का की कहानी जिजीविषा से भरी है. उनका दायां पैर जन्म से ही पोलियोग्रस्त है. सामान्य लोगों के नजरिए से देखें तो एक पल में लोग उन्हें कमजोर और कमतर मान सकते हैं, लेकिन तनिष्का लोगों की सोच और मानसिकता से कहीं आगे निकल चुकी हैं. वह भले ही ठीक से चल और दौड़ नहीं पाती हों, लेकिन उनकी निगाह बहुत तेज है. इसी तेज निगाह ने उन्हें अर्जुन सरीखा बना दिया है, जिसे केवल चिड़िया की आंख दिखती है. लिहाजा तनिष्का भी बन गईं पैरा तीरंदाज और अब उनके निशाने पर पैरालंपिक है. तनिष्का सुबह 10 बजे से लेकर पांच बजे तक घर के पास हीरो शोरूम में काम करती हैं. फिर उसके बाद शाम छह बजे से आठ बजे और सुबह पांच बजे से आठ बजे तक दोनों समय तीरंदाजी का अभ्यास करती हैं. यह सिलसिला पिछले चार साल से जारी है. अब तक वह राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर कई पदक हासिल कर चुकी हैं.

दोस्त का धनुष उधार लेकर प्रतियोगिता में लिया हिस्सा, जीते पदक  
दिव्यांग पैरा तीरंदाज तनिष्का ने 'ज़ी बिहार झारखंड' से बातचीत में बताया कि परिवार में पिता राम लखन राव व माता गीता सहित अन्य सदस्य है. पिता निजी कंपनी में काम करते हैं, जिन पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी है. ऐसे में तीरंदाजी के अभ्यास करने में कई परेशानियां होती है. उन्होंने बताया कि कंपाउंड बो (धनुष) काफी महंगा है. उनके पास इतने रुपये नहीं है कि वो खरीद सकें. वह लकड़ी के धनुष से ही अभ्यास करती हैं और दोस्त अंजू और पूजा के कंपाउंड बो (धनुष) से प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर खेलती हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय तीरंदाज की ओर से उनका चयन एशियन पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप 2022 के लिए हुआ था, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण एशियन पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप 2022 रद्द हो गई. भविष्य में आयोजित होने जा रहे वर्ल्ड तीरंदाजी चैंपियनशिप और एशियन पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप के लिए तनिष्का अभी से तीर पैने कर रही हैं. 

देश के लिए ओलंपिक में पदक लाने का है सपना
तनिष्का बताती हैं कि राजकीय सर्वोदय विद्यालय से 10वीं-12वीं की पढ़ाई की और दिल्ली विश्व विद्यालय (डीयू) में पत्राचार से बीए की पढ़ाई कर रही हैं. हाल ही में तीन साल पहले तीरंदाजी में हाथ आजमाया और लगन इतनी कि हरियाणा में आयोजित पैरा नेशनल तीरंदाजी प्रतियोगिता 2019 में कांस्य पदक जीतकर ये दिखा दिया कि हौसला हो तो कोई भी बाधा बहुत बड़ी नहीं हो सकती है. उन्होंने बताया कि उनका सपना देश के लिए पैरालंपिक में पदक हालिस करना है.

परिवार पर बोझ नहीं बन रहा बेटी का सपना
पिता राम लखन राव और माता गीता ने बताया कि परिवार के सदस्य खुश हैं कि बेटी अपने बलबूते आगे बढ़ रही है. सपने देख रही है और पूरे भी कर रही है. स्टेडियम की फीस और डाइट के लिए बेटी हीरो शोरूम में काम करती है. उससे जो भी रुपये कमाती है उससे वह स्टेडियम की फीस देती है. बड़ी बात यह है कि अपने सपने को उसने उनपर बोझ नहीं बनने दिया है.

तनिष्का हासिल कर चुकी हैं राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक  
तनिष्का बताती है कि हरियाणा में आयोजित पैरा नेशनल तीरंदाजी प्रतियोगिता 2018-2019 में टीम दिल्ली के लिए दो कांस्य पदक अपने नाम किया. साथ ही दिल्ली स्तर पर भी कई तीरंदाज चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर पदक जीत चुकी है. उन्होंने कहा कि भविष्य में आयोजित होने जा रहे वर्ल्ड तीरंदाजी चैंपियनशिप और पैरा ओलंपिक के लिए अभी से ही अभ्यास कर रही है.

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