Bihar Flood: जब कोसी ने बदल दी थी अपनी धारा, जलमग्न हो गया था आधे से ज्यादा बिहार
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Bihar Flood: जब कोसी ने बदल दी थी अपनी धारा, जलमग्न हो गया था आधे से ज्यादा बिहार

Bihar Flood News: उत्तर बिहार के 20 जिलों में बाढ़ से तबाही का खतरा बढ़ा है. कोसी नदी का रौद्र रूप देखने को मिला है जिससे हजारों परिवार उजड़ गए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर

Bihar Flood News: नेपाल में हुई मूसलाधार बारिश से बिहार में बाढ़ से अब हालात काफी चिंताजनक हो गए हैं. प्रदेश की नदियों का जलस्तर इतना बढ़ा हुआ है कि अब वो अपने किनारे को तोड़कर प्रलय मचाने में जुटी हैं. पानी का दबाव इतना बढ़ गया है कि अब तक 7 बंध टूट चुके हैं. इससे राज्य के करीब 12 जिलों के 77 प्रखंडों के 546 पंचायत पानी में डूब चुके हैं. बाढ़ के इस संकट को देखते हुए राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार भी अलर्ट हो गई है. बिहार सरकार ने बताया कि नेपाल ने भारी बारिश के कारण रविवार (29 सितंबर) की सुबह 5 बजे कोसी बैराज वीरपुर से 6,61,295 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है, जो 1968 के बाद सर्वाधिक है. इसी कारण बिहार में बाढ़ का संकट बढ़ गया है.

वर्षों से चली आ रही इस समस्या पर सरकार के तमाम दावों के बावजूद हालात वैसे ही हैं, जैसे हर साल रहते हैं. बिहार सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य का 68,800 वर्ग किमी हर साल बाढ़ में डूब जाता है. इस बार भी बाढ़ से लाखों की आबादी प्रभावित हो रही है. वहीं दूसरी ओर बगहा में गंडक और सीतामढ़ी के बेलसंड और रून्नीसैदपुर में बागमती तथा शिवहर के छपरा में बागमती का बांध टूट गया. गंडक तटबंध के क्षतिग्रस्त होने से नाराज जल संसाधन विभाग ने बगहा के बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता निशिकांत कुमार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है. साथ ही बाढ़ ग्रस्त इलाकों में लोगों को गांवों से निकालकर ऊंचे स्थान पर शिफ्ट करने का काम शुरू हो चुका है. 

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वहीं लोगों का कहना है कि 50 साल बाद कोसी नदी में इतना पानी देखा जा रहा है जो उत्तर बिहार के कई जिलों को डुबा सकता है. लोगों ने बताया कि 2008 में जब 2-3 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था तो कुसहा नामक स्थान पर कोसी नदी का तटबंध टूट गया था. इससे बिहार जल प्रलय आ गई थी. कोसी नदी ने अपनी धारा बदल ली जिसके कारण कई गांव नदीं के बीच में आने के कारण पूरी तरह से बह गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 526 लोगों की मौत इस बाढ़ की चपेट में आने से हो गई, जिसमें सबसे अधिक मधेपुरा जिले में 213 लोगों की मौत हुई थी. इस त्रासदी में कई लोग लापता भी हो गए, जिसका आजतक कोई पता नहीं चला. स्थानीय लोगों के मुताबिक सरकारी आंकड़े और वास्तविक आंकड़े में आसमान धरती का फर्क था, क्योंकि कई लोगों की मृत्यु का रिकार्ड सरकारी स्तर पर दर्ज ही नहीं हो पाया. 

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कुसहा त्रासदी का नाम सुनकर अभी भी कोसी इलाके लोगों का तन सिहर जाता है. कोसी की लहर ने इलाके में ऐसा तांडव मचाया था कि चारो ओर कोहराम मच गया था. सहरसा, मधेपुरा और सुपौल के कई गांव, कस्बे और शहर टापू में तब्दील हो गए थे. सड़के, पुल-पुलिया, बिजली के खंभे सब कुछ बह गए थे. जिस खेत में कभी फसले लहलहाती थी वह या तो गड्ढे में तब्दील हो गई या फिर उसपर कई फीट तक बालू भर गया था. इन इलाकों के किसान आज भी अपने खेतों में फसल नहीं उगा पा रहे हैं, क्योंकि उनके खेतों की उपजाऊ मिट्टी बालू के नीचे दफन हो चुकी है. इस बार भी नेपाल में लगातार बारिश के बाद कोसी बराज से 5.5 लाख क्यूसेक से भी ज्यादा पानी छोड़ा जा चुका है, इससे हालात बहुत ज्यादा गंभीर हैं. लोगों को 1986 दोहराने का डर सता रहा है.

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