Happy Birthday Lalu Yadav: सियासत के ऐसे शेफ जो तड़क लगाकर पकवान को लजीज बनाना बखूबी जानते हैं
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Happy Birthday Lalu Yadav: सियासत के ऐसे शेफ जो तड़क लगाकर पकवान को लजीज बनाना बखूबी जानते हैं

लालू ने आगे चलकर ना सिर्फ भारतीय राजनीति की तस्वीर और तकदीर को बदला बल्कि उस तबके को भी सम्मान से जीने का अधिकार दिलाया, जो लंबे समय से अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा था.

लालू यादव. (तस्वीर साभार-ट्विटर)

Patna: आरजेडी सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव 74 साल के हो गए हैं. आज उनका जन्मदिन है. उनके जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए परिवार और पार्टी दोनों ने तैयारियां की हैं. हालांकि, लालू प्रसाद की सेहत और कोरोना के प्रोटोकॉल का असर उनके जन्मदिन पर जरूर दिखेगा. लेकिन लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की जो शख्सियत है, वो उन्हें हमेशा सुर्खियों में रखती है.

दरअसल, 11 जून की तारीख भारतीय इतिहास में इसलिए काफी मायने रखती हैं क्योंकि इस दिन एक ऐसा बच्चे का जन्म हुआ जिसने आगे चलकर ना सिर्फ भारतीय राजनीति की तस्वीर और तकदीर को बदला बल्कि उस तबके को भी सम्मान से जीने का अधिकार दिलाया, जो लंबे समय से अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा था.

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11 जून, 1948 को गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में पैदा हुए लालू यादव ने प्रतिकूल हालात को अपने अनुरूप बनाया और उसी को साधन बनाकर एक छोटे से गांव से निकल कर सियासत के उन धुरंधरों में अपना नाम शुमार किया जो देश की सियासत का रूख बदलने का माद्दा रखते हैं.

गांव में भैंस पर बैठकर अपने दोस्तों के साथ 'सात भइंसी के सात चभाका सोरे सेर घीव खाऊं रे, कहां बाड़े तोर बाघ मामा एक टक्कर लड़ जाऊं रे' कहने वाले लालू प्रसाद ही वो शख्स हैं जो संसद में भी 'बिना मन के बियाह कनपटी भर सेनुर' कहने से गुरेज नहीं करते.

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लालू प्रसाद यादव सियासत के ऐसे शेफ हैं जिन्हें बखूबी मालूम है कि किस पकवान में किस चीज का तड़का लगाने से वो ज्यादा लजीज हो जाएगा. उनकी यही खासियत उन्हें दूसरे सियासतदानों से अलग करती है, जब वो किसी सभा को संबोधित करने के लिए मंच पर खड़े होते हैं तो उन्हें मालूम होता है कि सभा में इकट्ठे लोगों का मिजाज क्या है, उन्हें कौन सा मैसेज देना है.

1974 आंदोलन से उपजे लालू यादव रातोंरात राजनेता नहीं बन गए. सड़क और सदन में संघर्ष करते-करते उनकी राजनीतिक सोच में निखार आया, जनता की नब्ज को पहचानने का गुर आया. मौलिक सोच और संघर्ष से विकसित हुई समझ ने उन्हें काफी परिपक्व बना दिया. समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों की आवाज बन उनके दुख-दर्द पर मरहम लगाने के लिए सामाजिक न्याय का नारा दिया और इसमें हर कदम पर उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने साथ दिया.

लालू प्रसाद यादव ने परिवार, समाज और सियासत किसी को कभी भी कम तवज्जो नहीं दी. सबको बैलेंस रखा, ना तो परिवार के लिए समाज और सियासत को छोड़ा और ना ही सियासत के लिए परिवार को पीछे छोड़ा. उन्हें मालूम था कि परिवार से समाज बनाता है और समाज से ही सियासत का रास्ता निकलता है.

लालू प्रसाद यादव का बैकग्राउंड ग्रामीण था इसलिए वो खेत के मेड़ पर साइकिल चलाना भी जानते थे और सियासी सफर पर रहे लिहाजा उन्हें हेलिकॉप्टर से उड़ने वाली धूल का भी अंदाजा था और दोनों के फर्क को भी वो जानते थे, इसलिए ऊंची उड़ान से उन्होंने कभी नीचे के साइकिल वाले को छोटा नहीं समझा. यही वजह है कि जब 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री बने तो कार की सवारी छोड़ साइकिल से सचिवालय जाना शुरू किया.

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हालांकि, विरोधी इसका माखौल भी उड़ाते रहे. लेकिन लालू प्रसाद को भला कहां फर्क पड़ने वाला था. लालू प्रसाद यादव की सबसे बड़ी खूबी ये थी कि वे सियासत को सादगी से जोड़ कर रखे. उनके विरोधी भी उनकी इस सोच के कायल रहे. सियासी विरोध को लालू प्रसाद यादव ने कभी भी निजी विरोध के तौर पर नहीं लिया और यही कारण है कि आज भी लालू और उनकी राजनीति सबसे अलग है और इसके सभी कायल हैं. 

हालांकि, आज लालू स्वास्थ्य और उम्र के कारण जीवन के उस पड़ाव पर पहुंच गए हैं, जो उन्हें सामाजिक जीवन से दूरी बनाने को मजबूर करता है, लेकिन आज भी लालू की सियासी पकड़ और जनता की नब्ज टटोलने की क्षमता बरकरार है और शायद इसीलिए उनके प्रशंसक कहते हैं कि 'लालू जैसे दूसरा कोई नहीं.'

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