Bihar Land Survey: जमीन सर्वे के 4 लूपहोल ने बिहारियों को परेशान कर रखा है! सरकार को जल्द खोजना होगा हल
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Bihar Land Survey: जमीन सर्वे के 4 लूपहोल ने बिहारियों को परेशान कर रखा है! सरकार को जल्द खोजना होगा हल

Bihar Land Survey: सरकार का कहना है कि भूमि सर्वेक्षण बिहार का 'डिजिटल भविष्य' तय करेगा और भूमि विवादों को समाप्त करने में मदद करेगा. वहीं विपक्षी नेताओं ने नीतीश सरकार को घेरना शुरू कर दिया है.

बिहार जमीन सर्वे

Bihar Land Survey Update: बिहार में बीते 20 अगस्त से जमीन सर्वे का काम जारी है. नीतीश सरकार इस सर्वे को ऐतिहासिक फैसला बता रही है. सरकार का कहना है कि इसका उद्देश्य भूमि विवादों को कम करना है, तो वहीं विपक्षी इसे लेकर सरकार को घेरने की कोशिश में जुटे हुए हैं. विपक्ष का कहना है कि इसके जरिए जनता को परेशान किया जा रहा है. सर्वे में सरकारी तैयारी की कमी और अफसरशाही के कारण लोगों में जमीन के कागजातों को लेकर खलबली मची हुई है. कुछ जगहों पर रिश्वतखोरी के मामले भी सामने आ रहे हैं. यही वजह है कि कुछ जगहों पर भूमि सर्वे का विरोध भी किया जा रहा है. बिहार सरकार ने जो प्रक्रिया प्रक्रिया की है, वो दिखने में तो काफी आसान है लेकिन ग्राउंड पर लोग इससे काफी परेशान नजर आ रहे हैं. अब तक देखा जाए तो जमीन सर्वे के 4 ऐसे लूपहोल हैं, जिससे लोग काफी परेशान हैं. 

  1. प्रवासी मजदूरों की दिक्कत- बिहार में रोजगार की कमी के कारण ज्यादातर मर्द (पुरुष) बाहरी प्रदेशों में नौकरी करने चले जाते हैं. जमीन सर्वे के दौरान कहीं उनकी जमीन ना छिन जाए, इसका डर उन्हें गांव लौटने पर मजबूर कर रहा है. इससे उन्हें  लेकर उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ कहा है. हालांकि, सरकार का दावा है कि सर्वे की प्रक्रिया ऑनलाइन भी की जा सकती है लेकिन जमीन के कागज, वंशावली और अन्य छोटे-छोटे काम के लिए लोगों को गांव आने पर मजबूर होना पड़ रहा है. इससे उनके रोजगार पर संकट पैदा हो रहा है.
  2. वंशावली वाली दिक्कत- बिहार में अधिकांश लोगों के पास पैतृक संपत्ति है, यानी वह अपने पूर्वजों की जमीन के मालिक हैं. ऐसे में उन जमीनों पर दावा के लिए वंशावली की जरूरत होती है. वंशावली बनाने का अधिकार सरपंचों को दिया गया है. ऐसे में वंशावली तैयार करने में सरपंच लोगों को काफी परेशान कर रहे हैं. इससे रैयत काफी परेशान हैं. इतना ही नहीं इस पूरे प्रक्रिया में सरकारी कर्मचारियों और जन-प्रतिनिधियों की तरफ से ली जाने वाली रिश्वत भी लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है.
  3. कैथी लिपि में जमीन के कागज- बिहार में अब तक जमीन रजिस्ट्री की जो भाषा रही है, वो कैथी लिपि में ही रही है. दरअसल, 1919 में हुए सर्वे के दौरान इसी लिपि का इस्तेमाल हुआ था. लिहाजा, अधिकांश बिहारियों के पास जमीन के मूल कागज इसी लिपि में है. कहा जा रहा है कि वर्तमान में इस लिपि को पढ़ने वाले लोग कम हैं. सर्वे के दौरान इसको लेकर रैयतों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, इस समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार ने सर्वे में लगे अमीनों को कैथि लिपि की ट्रेनिंग दिलाने का फैसला किया है. 
  4. जमीन के संपूर्ण कागज न होना- एक दावे के मुताबिक, बिहार में एक तिहाई जमीन लड़ाई-झगड़े में फंसा है. ऐसे में रैयतों के पास जमीन का संपूर्ण कागज नहीं है. राजस्व विभाग के अधिकारी सभी कागज न होने पर सर्वे का काम रोक दे रहे हैं. जमीन के सभी कागजात निकालने में महीनों लग रहे हैं. राजस्व कार्यालय में इन दिनों इसकी वजह से लंबी-लंबी लाइनें लग रही है.

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