बिहार में आमतौर पर किसान परंपरागत खेती करते हैं, जिस कारण उन्हें अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में सीवान जिले के एक बुजुर्ग किसान स्थानीय किसानों को औषधीय पौधों की खेती के गुर सिखाकर उनकी तकदीर बदल रहे हैं.
Trending Photos
सीवानः बिहार में आमतौर पर किसान परंपरागत खेती करते हैं, जिस कारण उन्हें अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में सीवान जिले के एक बुजुर्ग किसान स्थानीय किसानों को औषधीय पौधों की खेती के गुर सिखाकर उनकी तकदीर बदल रहे हैं.
दरअसल, सीवान जिले के हसनपुर प्रखंड के लहेजी गांव निवासी मोहम्मद हामिद खान ने किसानों की किस्मत बदलने का बीड़ा उठाया है. वे कहते हैं कि ऐसे तो वे कई औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं, लेकिन मुख्य रूप से खस, सतावर, मेंथा, लेमनग्रास, एलोवेरा की खेती करते हैं. उन्होंने बताया कि इसके अलावे कई पॉपलर पेड़ भी लगाए हुए हैं.
उन्होंने कहा कि प्रारंभ में वे भी परंपरागत खेती ही करते थे, लेकिन कुछ शुभचिंतकों ने उन्हें खस की खेती करने की सलाह दी. इसके बाद उन्होंने इसकी खेती करने की ठान ली. सबसे पहले इन्होंने केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौधा संस्थान (एसआईएमआईपी) लखनऊ से प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर औषधीय पौधों की खेती में जुट गए. वे 2009 से खस की खेती कर रहे हैं. जिला और राज्य स्तरीय कई पुरस्कार हासिल कर चुके हामिद की खेती देखने के लिए 2012 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उनके गांव पहुंचे थे. हामिद का मानना है कि किसान वैसी खेती करना चाहते हैं, जिस में समय कम व मुनाफा अधिक हो.
चाचा के नाम से प्रसिद्ध हामिद न केवल खुद ऐसे पौधों की खेती करते हैं बल्कि आसपास के इच्छुक किसानों को इसका गुर भी बताते हैं. उन्होंने बताया कि अब तक वे 84 किसानों को खस की खेती से जोड चुके हैं, जो आज खेती के जरिए बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक एकड़ भूमि पर खस की खेती करने में मुश्किल से 70 से 75 हजार रुपये खर्च आता है जबकि इससे 1.25 लाख रुपये की आमदनी होती है.
हामिद आज सीवान, छपरा और गोपालगंज सहित विभिन्न जिलों के किसानों को प्रशिक्षण देकर खस के अलावा मेंथा और पॉपलर की खेती करा रहे हैं. उन्होंने कहा कि वे खुद करीब 11 से 12 एकड़ में खस की खेती कर रहे हैं और खस के तेल का उत्पादन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि खस की फसल एक साल में तैयार हो जाती है. अच्छी फसल हुई तो प्रति कट्ठा (1350 वर्ग फुट) 400 से 700 ग्राम तक तेल निकलता है, जिस की कीमत 15,000 से 18,000 रुपए प्रति लीटर होती है. फरवरी में इसकी खुदाई कर जड़ निकाल कर बचे हुए पौधों को फिर से नई फसल के लिए खेत में लगाया जा सकता है.
हामिद ने बताया कि खस से तेल निकालने के लिए उन्होंने पूरी व्यवस्था कर रखी है. जिन किसानों के पास तेल निकालने की सुविधा नहीं हैं, उन्हें भी वे मदद करते हैं. उन्होंने कहा कि इसके लिए बाजार खोजने की भी जरूरत नहीं है. पटना, बाराबंकी, लखनऊ के व्यापारी आकर तेल खरीदकर ले जाते हैं. हामिद ने स्टिल डिस्टिलेशन प्लांट लगाए हैं. जिसमें आठ क्विंटल खस की जड़ें भर कर 72 घंटे में तेल निकाला जाता है. उन्होंने बताया कि मुख्य रूप से इस तेल का उपयोग इत्र बनाने में किया जाता है.
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि पिछले दिनों तेल की कीमत में कमी आ गई थी, लेकिन फिर से इसके मूल्य में वृद्धि हुई है. हामिद सथानीय किसानों को खस का पौधा भी उपलब्ध कराते हैं. वे कहते हैं कि लखनऊ से दो रुपए प्रति पौधे की दर से पौधे लाकर नर्सरी तैयार करने के बाद वे 80 पैसे प्रति पौधे की दर से किसानों को बेचते हैं. उन्होंने बताया कि खस जुलाई महीने में भी खेतों में लगाया जा सकता है लेकिन दिसंबर से मार्च तक का समय इसकी रोपाई के लिए ज्यादा अच्छा होता है.
वे कहते हैं कि खस की खेती जलजमाव वाले खेतों में भी की जा सकती है. उनके जीवन का लक्ष्य किसानों को जगाना और ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाना है. इसके अलावा औषधीय खेती कर और दूसरों से कराकर किसानों की माली हालात को सुधारना है. खान आज केवल जिला नहीं, बल्कि पूरे बिहार के लोगों के लिए रोल मॉडल बने हुए हैं.
इनपुट-आईएएनएस
यह भी पढ़ें- झारखंडः मोहब्बत के जुनून में नहीं थम रहा खून की वारदात का सिलसिला