बिहार में डिप्टी सीएम पद की शपथ लेने के बाद से तेजस्वी यादव के सामने चुनौतियां का अंबार लगा है. ये चुनौतियां किसी और ने नहीं बल्कि खुद तेजस्वी ने अपने लिए खड़ी की है.
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पटना: तेजस्वी यादव बिहार के नए उपमुख्यमंत्री हैं. मुख्यमंत्री नीतिश कुमार से ज्यादा तीखें सवालों का सामना तेजस्वी को करना पड़ रहा है. तेजस्वी यादव ने 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख नौकरियां देने का वादा किया था.
हालांकि उस वक्त भी ये सवाल पूछा गया था कि क्या बिहार की मौजूदा अर्थव्यवस्था एक मुश्त 10 लाख नौकरियां दे सकतीं है? इस सवाल का जवाब हां या न में ढूंढने से बेहतर हैं कि एक बार जरा आंकड़ों को खंगाल लेते हैं.
क्या था तेजस्वी यादव का वादा
तेजस्वी यादव ने कहा था कि बिहार का बेरोजगारी दर 46 फीसदी से ज्यादा हो चुकी है. बेरोजगारी के कारण राज्य से पलायन होता है. बेरोजगारों को अपने साथ जोड़ने के लिए उन्होने एक पोर्टल भी जारी किया था, जिसके तहत उन्होने बताया कि उन्हे 22.58 लाख से ज्यादा बेरोजगार युवा आवेदन कर चुके हैं.
कहां-कहां भर्ती की थी घोषणा ?
तेजस्वी यादव ने ये भी बताया था कि 10 लाख नौकरियां कहां-कहां दी जाएंगी. तेजस्वी के अनुसार, प्रदेश में डाक्टरों की कमी है. जिसके लिए 1.25 लाख भर्तियां की जाएंगी. इसके अलावा करीब 2.5 लाख नर्सिंग, पैरामैडिकल स्टाफ और फार्मासिस्ट की जरूरत भी होगी. इसके अलावा पुलिस में 50000 और स्कूल कॉलेज में अध्यापकों के 3 लाख नौकरियां प्रदान की जाएंगी.
10 लाख नौकरियां देने के लिए कितना खर्च आएगा?
हमने इस पर होने वाला खर्चे का अनुमान लगाया है. इस सब पदों पर भर्ती होने पर न्यूनतम वेतन देने पर भी सालाना 23350 करोड़ का खर्चा हो रहा है.
बेरोजगारी भत्ते पर होगें 2264 करोड़ रुपये का खर्चा
इसके साथ ही तेजस्वी यादव ने 35 साल के कम आयु के बेरोजगारों को 1500 प्रति महीना बेरोजगारी भत्ता देने का वादा भी किया था. RJD के मुताबिक, उन्हे 22.58 लाख लोगों ने रजिस्टर किया था. अगर हम ये मान लें कि सिर्फ यही लोग बेरोजगार हैं. तब भी इन 10 लाख रोजगारों के बाद भी 12.58 लाख युवा बच जाएंगे.
अगर इन युवाओं को 1500 प्रति महीना दिया जाए तो साल ये खर्च 2264 करोड़ हो जाता है.
कहां से लाएंगे तेजस्वी अपने चुनावी वादों के लिए पैसा?
बिहार का साल 2022-23 वित्त वर्ष का GDP 7.45 लाख करोड़ रहने का अनुमान लगाया गया है. इस साल के बजट में 24750 करोड़ रुपए कुल सैलरी बजट के तौर पर शामिल है, वही पेंशन बिल इससे थोड़ा कम यानि 24252 करोड़ है.
इन दोनो वादों का कुल खर्च 25514 करोड़ का है. जिसमें से 23250 करोड़ तो नई भर्तियों के वेतन के लिए लगने वाला पैसा है.
इस साल बिहार का बजट घाटा 25,825 करोड़ रहने की उम्मीद है. ऐसे में अगर 10 लाख रोजगारों के वादे को जोड़ लें, तो बजट घाटा दोगुना होकर 50000 करोड़ पार कर जाएगा.