Kojagari Sharad Purnima: कोजागरी में क्यों देखते हैं चांद, राम-सीता से जुड़ा है इसका इतिहास
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1383826

Kojagari Sharad Purnima: कोजागरी में क्यों देखते हैं चांद, राम-सीता से जुड़ा है इसका इतिहास

Kojagari Sharad Purnima: सीताजी ने पुष्पवाटिका में श्रीराम को देखा और उन्हें वह पति रूप में पाने के लिए व्याकुल हो गई थीं. रात में उन्होंने चंद्र देव से ही प्रार्थना करते हुए कहा, हे चंद्र, अपने चंद्र मौली भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती तक मेरी ये विनती पहुंचाओ

Kojagari Sharad Purnima: कोजागरी में क्यों देखते हैं चांद, राम-सीता से जुड़ा है इसका इतिहास

पटना: Kojagari Sharad Purnima: शरद पूर्णिमा की रात को बिहार के लिए बहुत खास माना जाता है. इसे यहां कोजागरी की रात नाम से भी जानते हैं. इस रात चंद्रमा अपनी संपूर्ण 16 कलाओं के साथ खिलता है. कोजागरी की रात ऐश्वर्य और आरोग्य की रात होती है. देशभर में इस दिन चंद्र किरणों में पगी हुई खीर खाने का रिवाज है. बिहार में भी यह परंपरा है, लेकिन यहां की हर परंपरा श्रीराम और सीता से जुड़ी हुई है. सीता जी बिहार की बेटी हैं और श्रीराम दामांद. इसलिए आज भी यहां नवदंपती को राम-सीता के रूप में ही देखा जाता है. 

माना जाता है कि अगर नवदंपती एक साथ कोजागरी के चांद को देखें, इसका पूजन करें तो उनका वैवाहिक जीवन बहुत सफल होता है. उनमें प्रेम बना रहता है और वे युगों-युगों के साथी हो जाते हैं. कुमारी कन्याओं ने हमेशा ही चंद्रदेव से विनती की है. प्रेम में डूबे हर पुरुष और स्त्री की बातें और मनोभाव चंद्रमा ही सुनता-समझता है. इसके जरिए ही वह एक-दूसरे को प्रेम संदेश भी भेजते हैं. यही वजह है कि कोजागरी की रात चंद्र दर्शन को महत्वपूर्ण माना जाता है. बिहार में इस परंपरा की शुरआत भी राम और सीता से होती है. 

देवी सीता ने किया था चंद्र दर्शन
सीताजी ने पुष्पवाटिका में श्रीराम को देखा और उन्हें वह पति रूप में पाने के लिए व्याकुल हो गई थीं. रात में उन्होंने चंद्र देव से ही प्रार्थना करते हुए कहा, हे चंद्र, अपने चंद्र मौली भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती तक मेरी ये विनती पहुंचाओ. जिस रात देवी सीता ये प्रार्थना कर रही थीं, वह कोजागरी यानी शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) की ही रात थी. इसी तरह श्रीराम भी चंद्रमा को देखते हुए सीता जी को याद करते हैं और कई-कई उपमाएं देते हैं. इस दृष्य का वर्णन तुलसीदास जी ने मानस में किया है.

श्रीराम ने भी निहारा था चांद
प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा. सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा॥
बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं. सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥4॥
पूर्व दिशा में सुंदर चन्द्रमा उदय हुआ. श्री रामचन्द्रजी (Lord Ram) ने उसे सीता के मुख के समान देखकर सुख पाया. फिर मन में विचार किया कि यह चन्द्रमा सीताजी के मुख के समान नहीं है. इस प्रकार चन्द्रमा के बहाने सीताजी के मुख की छवि का वर्णन करके, बड़ी रात हो गई जान, वे गुरुजी के पास चले जाते हैं. इस तरह विवाह से पहले इन दोनों शास्वत प्रेमियों ने चांद को निहार कर उससे अपनी-अपनी बातें कही थीं. देवी सीता खुद लक्ष्मी का स्वरूप हैं, ऐसे में शरद पूर्णिमा का चांद और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. 

यह भी पढ़िएः Ganesh Lakshmi Murti: गणेश जी की सूंड़ किधर होनी चाहिए? दीवाली की मूर्ति खरीदने में किन बातों का रखें ध्यान

 

Trending news