पश्चिमी चंपारण से बापू ने शुरू किया था सत्याग्रह, तोड़ दी थी अंग्रेजों की कमर
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पश्चिमी चंपारण से बापू ने शुरू किया था सत्याग्रह, तोड़ दी थी अंग्रेजों की कमर

Mahatma Gandhi Jyanti: गांधी जयंति पर आज देश राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि दे रहा है. लेकिन प्रतीकों की पूजा की परिपाटी क्यों गलत है ये समझने के लिए हमें याद करना चाहिए कि महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत कहां से की थी

पश्चिमी चंपारण से बापू ने शुरू किया था सत्याग्रह, तोड़ दी थी अंग्रेजों की कमर

पटनाः Mahatma Gandhi Jyanti: गांधी जयंति पर आज देश राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि दे रहा है. लेकिन प्रतीकों की पूजा की परिपाटी क्यों गलत है ये समझने के लिए हमें याद करना चाहिए कि महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत कहां से की थी, किस मुद्दे पर की थी और जो समस्या ठीक करने के लिए उन्होंने अपना आंदोलन शुरू किया था. वो आज भी बनी हुई या नहीं? चूंकि ये सारा मामला बिहार से जुड़ा हुआ है. 

गांधी जी के सामने अंग्रेजों को झुकना पड़ा
1917 में महात्मा गांधी ने बिहार के पश्चिमी चंपारण में नील की खेती के विरोध में आंदोलन किया. उसे हम चंपारण का सत्याग्रह नाम से जानते हैं. दरअसल, उस समय अंग्रेजों ने नियम बनाया था कि किसान चाहे ना चाहे उसे नील की खेती करनी ही पड़ेगी. ऊपर से कई तरह के लगान किसानों को ब्रितानी सरकार को चुकाने पड़ते थे. फसल हुई हो या नहीं हुई हो, सूखा पड़ जाए या बाढ़ आ जाए, हुकूमत किसानों पर दया नहीं करती थी. किसानों की कमर टूट रही थी. लेकिन कोई मुरव्वत नहीं. गांधी जी चंपारण आए और सत्याग्रह किया. अंग्रेजों को झुकना पड़ा. नील की जबरन खेती बंद हो गई.
 
चंपारण में सफलता पूर्वक सत्याग्रह चलाने के बाद इसी फार्मूले पर गांधी ने देश में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीती. कह सकते हैं आजादी की जो लड़ाई बाद में वटवृक्ष बनी उसके बीज बिहार में ही बोए गए थे. हाल ही में राज्य में सियासी बदलाव होने के बाद नेताओं ने कहा कि बिहार एक बार फिर देश में बदलाव का कारण बनेगा. इशारा इसी चंपारण सत्याग्रह और जेपी की संपूर्ण क्रांति की तरफ था. इससे पहले भी कहा गया है कि देश के मानचित्र पर बिहार उस जगह पर है. जहां किसी व्यक्ति के शरीर में दिल होता है. ये बदलता है तो देश बदलता है. ये बात सही भी है लेकिन सिर्फ सियासी बदलाव से क्या बदलेगा? 

किसानों की किस्मत भी बदलनी चाहिए. यही गांधी, राजकुमार शुक्ल और चंपारण सत्याग्रह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी. आज गांधी होते तो पूछते चंपारण के जिन किसानों के लिए मैंने चोला बदल लिया, उसकी जिंदगी आजादी के इतने सालों बाद भी क्यों नहीं बदली? वो आज भी सूखे और बाढ़ से पीड़ित क्यों है? उसे लागत से भी कम फसल की कीमत क्यों मिलती है? क्यों किसान 2022 तक दोगुनी आमदनी का झूठा वादा झेलने को मजबूर हैं? क्यों वो अपनी खेत जो उसका मान है, उसे छोड़कर दिल्ली, नोएडा, मुंबई जाकर बेइज्जत होने को मजबूर है? 

नहीं मिल रही किसानों को मदद
आज बिहार में सूखा पड़ा है लेकिन किसानों को सरकारी मदद नहीं मिल रही. दिल्ली की सरकार सूखे को राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं कर रही. मामला तकनीकी बातों में फंसा हुआ है. नील की खेती को बंद कराकर गांधी ने किसानों को राहत दिलाई थी, आजादी के इतने सालों बाद भी अगर बिहार ही नहीं, देश का भी किसान बेहाल है. रोज 25 किसान खुदकुशी कर रहे हैं. तब लगान था, आज दुनिया भर के टैक्स दे रहे हैं तो गांधी का चंपारण आंदोलन कहां सफल हुआ? गांधी को फेल करने की साजिश किसने रची? जिस बिहार में आजादी की लड़ाई का तरीका खोजा गया, उस बिहार का हाल देखिए, सबसे पिछड़ा राज्य है. गांधी जयंति पर राष्ट्रपिता को श्रद्धाजंलि देते समय देश के नेता इन चीजों पर जरूर गौर करें.

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