Nalanda University: शिक्षा का केंद्र माने जाने वाले इस विश्वविद्यालय में 300 कमरें और नौ मंजिला का एक विशाल पुस्तकालय था.
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Patna: दुनिया में भारत आज चाहे शिक्षा के क्षेत्र में कई देशों से पीछे क्यों ना हो. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब भारत इंडिया को शिक्षा का केंद्र बिंदु माना जाता था. जानकारी के अनुसार, भारत ही वह देश है जहां दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय खुला था. यह विश्वविद्यालय बिहार में है जिसे नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के नाम से जाना जाता है. इसकी स्थापना 5 वीं शताब्दी में की गई थी.
कला का एक अनोखा नमूना
बिहार के इस विश्वविद्यालय में 8वीं से लेकर 12वीं शताब्दी तक पूरी दुनिया के छात्र पढ़ने आते थे. उस समय करीब 10 हजार छात्र यहां पढ़ते थे. यहां छात्र भारत के साथ-साथ दुनिया के कई देशों जापन, तिब्बत, चीन, कोरिया, तु्र्की और इंडोनेशिया से आते थे. इसी के साथ यहां दो हजार शिक्षक पढ़ाते थे.
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शिक्षा का केंद्र माने जाने वाले इस विश्वविद्यालय में 300 कमरें और नौ मंजिला का एक विशाल पुस्तकालय था. इस पुस्तकालय में 3 लाख से भी अधिक किताबें थी. यहां छात्र घंटों अध्ययन करते थे. नालंदा विश्वविद्यालय कला का एक अनोखा नमूना है.
दीवारों पर ट्रक भी चलाया जा सकता है
एक समय में इस विश्वविद्यालय में दाखिला पाना बहुत बड़ी बात माना जाता था. क्योंकि यहां की प्रवेश परीक्षा काफी कठिन होती थी. इसके लिए छात्रों को 3 कठिन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता था.
विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था. जिसमें जाने के लिए एक ही गेट था. उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे. वहीं, नालंदा विश्वविद्यालय की दीवारें इतनी चौड़ी हैं कि इनके ऊपर ट्रक भी चलाया जा सकता है.
एहसान का बदला नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर दिया
तुर्की शासक बख्तियार खिलजी (Bakhtiar Khilji) के द्वारा 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगाई गई थी. जानकारी के अनुसार, इस आग लगवाने के पीछे एक कहानी जुड़ी है. कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बहुत बीमार पड़ गए. शासक के हकीमों ने बख्तियार का काफी इलाज किया. लेकिन हकीमों के उपचार से खिलजी की तबियत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. तब बख्तियार खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य से उपचार कराने की सलाह दी गई.
वहीं, आचार्य राहुल को बुलवा लिया गया और इलाज से पहले शर्त लगा दी गई कि तुर्की शासक किसी भी हिंदुस्तानी दवाई का सेवन नहीं करेंगे. उसके बाद आचार्य से कहा गया कि अगर खिलजी ठीक नहीं हुआ तो आचार्य की हत्या करवा दी जाएगी.
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आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य ने बख्तियार खिलजी की सारी शर्तें मान ली और अगले दिन आचार्य उसके पास कुरान लेकर गए और कहा कि कुरान की पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पढ़िए ठीक हो जाएंगे. इसके साथ ही खिलजी ने कुरान पढ़ा और वह ठीक हो गया. लेकिन ठीक होने के बाद खिलजी को खुशी नहीं हुई बल्कि उसको बहुत गुस्सा आया कि उसके हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है?
इसके साथ ही बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले बख्तियार खिलजी ने 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दी. वहां इतनी पुस्तकें थीं कि वह आग लगने के बाद तीन महीने तक पुस्तकें जलती रहीं थी. वहीं, उसने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले.
जानकारी के अनुसार, खिलजी के ठीक होने का यह वजह बताई जाती है कि वैद्यराज राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था. वही लेप खिजली थूक के साथ मात्र दस-बीस पेज चाट गया और ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर दिया. बता दें कि तुर्की शासक बख्तियार खिलजी का पूरा नाम इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी था और वह बिहार का एक मुगल शासक था.