यह है बिहार का वृंदावन, ब्रज वाली होली का लेना हो आनंद तो यहां आइए
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यह है बिहार का वृंदावन, ब्रज वाली होली का लेना हो आनंद तो यहां आइए

होली का त्योहार हो तो सबसे पहले किस होली को आप देशभर में याद करते हैं. जो नाम आपके जैहन में सबसे पहले आती है. वह है बरसाने की लट्ठमार होली, बनारस की भस्म वाली होली या फिर ब्रज की होली यानी वृंदावन में बांके बिहारी की होली.

(फाइल फोटो)

समस्तीपुर: होली का त्योहार हो तो सबसे पहले किस होली को आप देशभर में याद करते हैं. जो नाम आपके जैहन में सबसे पहले आती है. वह है बरसाने की लट्ठमार होली, बनारस की भस्म वाली होली या फिर ब्रज की होली यानी वृंदावन में बांके बिहारी की होली. इन होलियों का रंग ऐसा कि इससे सराबोर लोग एक साथ त्योहार के उल्लास और आस्था के सैलाब दोनों में डुबकी लगा लेते हैं. बिहार में भी कई जगहों पर ऐसी ही होली होती है जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होती है. दरअसल बिहार के कई जिलों में प्राचीन समय से कुछ अनुठे अंदाज में होली खेली जाती है और यह परंपरा का ऐसा अंग बन गया है कि इसकी चर्चा दुनिया भर में हैं. 

ऐसे में आपको अगर वुंदावन की कूंज गलियों की तरह की होली का आनंद चाहिए और आप वहां जाने में सक्षम नहीं हैं तो आपको बिहार के समस्तीपुर जिसे भिरहा गांव आना होगा. इस गांव की होली ऐतिहासिक है और यहां पहुंचकर आपके रंगों की उमंग चौगुनी हो जाएगी. ऐसा हम क्यों कह रहे हैं ये हम आपको बताते हैं. भारत के राष्ट्रकवि दिनकर ने यहां की होली को वृंदावन की होली कहा था. यहां ब्रज के तर्ज पर होली मनाई जाती है और आज भी यह परंपरा यहां जिंदा है. यहां गाव में तीन टोले हैं और एक महीने पहले से ही यहां होली की तैयारी शुरू हो जाती है, हर टोला एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगा रहता है. यहां सजावट के साथ बेहतरीन बैंड देश के अलग-अलग राज्यों से बुलाए जाते हैं, साथ ही नर्तकियों का नृत्य भी होता है. 

होलिका दहन से पहले ही नर्तकियों का डांस होता है. जिसमें तीनों टोलों में अलग-अलग होनेवाले कार्यक्रम में देश के बड़े से बड़े कलाकारों का जमावड़ा रहता है. यहां रंग के उमंग में सराबोर होने से पहले नृत्य संगीत की बेहतरीन महफिल सजती है. यहां के तीनों टोलों के लोग गाजे बाजे के साथ जुलूस लेकर गांव के उच्च विद्यालय के प्रांगण में पहुंचते हैं, वहीं होलिका दहन का कार्यक्रम होता है और फिर यहां देश के अलग-अलग हिस्सों से आए बैंड के बीच खूब प्रतियोगिता होती है. इसमें अव्वल आने वाले को पुरस्कार भी मिलता है. 

पूरा गांव मानो दुल्हन की तरह सजा होता है. होली की उमंग में इस गांव के क्या बूढ़े, क्या जवान और क्या बच्चे सभी डूबे नजर आते हैं. महफिल खत्म होती है तो तीनों टोलों के लोग दूसरे दिन दोपहर के बाद फगुआ पोखर पहुंचते हैं. यहां लोग नहाते नहीं बल्कि हजारों की संख्या में जुटी भीड़ यहां एक दूसरे को गु्लाल लगाते हैं. यहां जमकर रंग बरसती है. भिरहा की होली को इसी वजह से पूरी दुनिया में अलग पहचान मिली है. 

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