Importance of Aarti: भारतीय सनातनी परिवारों में हर दिन की शुरुआत पूजन से होती है. एक तरफ जब सू्र्य उदित हो रहा होता है तब घंटी की ध्वनि के साथ पूरे घर में आरती दिखाने की परंपरा नए दिन की घोषणा का प्रतीक है.
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पटनाः Importance of Aarti: सनातनी परिवारों में हर रोज एक नियम जरूर देखा जाता है, वह है सुबह-शाम आरती का जलना. सुबह पूजा के समय घर के मंदिर में दीपक जलाकर आरती की जाती है तो शाम को तुलसी के चौरे में आरती जलाकर रखी जाती है. इस आरती का क्या महत्व है और इसका क्या उद्देश्य है, नई पीढ़ी इससे अन्जान है. यही वजह है कि अब नए परिवारों में ये परंपराएं लुप्त हो रही हैं. भारतीय मनीषा में एक सूक्ति प्रचलित है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय. इसे वृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है. इसका अर्थ है, हे परमात्मा, मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो.
यह अंधेरा सिर्फ प्रकाश की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि यह ज्ञान की गैरमौजूदगी भी है. ये अंधेरा नकारात्मक स्थिति या ऊर्जा का प्रतीक भी है. ये वो अंधेरा है जो हमारे पांवों में बंध जाए तो विकास रोक दे. इसलिए इसे दूर करने का संकल्प ही आरती जलाना है, इसे बड़ी आसानी से प्राचीन काल में ही हमारी दैनिक चर्या में शामिल किया गया था. सुबह-शाम आरती जलाना, दीप प्रज्वलित करना इसी प्रक्रिया का सरल हिस्सा है.
नवीनता का संदेश है दीपक
भारतीय सनातनी परिवारों में हर दिन की शुरुआत पूजन से होती है. एक तरफ जब सू्र्य उदित हो रहा होता है तब घंटी की ध्वनि के साथ पूरे घर में आरती दिखाने की परंपरा नए दिन की घोषणा का प्रतीक है. यह नवसृजन और सकारात्मकता को निमंत्रण है, इसके साथ ही सूर्य व अग्नि को साक्षी मानकर उन्हीं के समान प्रकाशमान बनने का संकल्प भी है. देवताओं को दीप समर्पित करते समय भी ‘त्रैलोक्य तिमिरापहम्’ कहा जाता है, यानी दीप के समर्पण का उद्देश्य तीनों लोकों में अंधेरे का नाश करना ही है.
ज्योति स्वरूप में स्थापित है परम सत्ता
पौराण कथाएं मानती हैं कि अग्नि के तीन अलग-अलग स्वरूप ज्ञात हैं. इसकी ऊर्जा भी तीन रूपों में बंटी हुई है. यह ब्रह्मांड में विद्युत, ग्रहमंडल में सूर्य और पृथ्वी पर ज्वाला रूप में दिखती है. एक सूक्ति ‘सूर्याशं संभवो दीप:’ में कहा गया है कि दीपक की उत्पत्ति सूर्य के अंश से हुई है. इसलिए दीपक का प्रकाश इतना पवित्र है कि मांगलिक कार्यों से लेकर भगवान की आरती तक इसका प्रयोग अनिवार्य है. सूर्य की उत्पत्ति परमात्मा के नेत्रों से मानी गई है. इसलिए आरती जलाते हुए यह भाव आता है कि ज्योति की अग्नि परमात्मा का ज्योति स्वरूप ही है. यही ज्योति हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करेगी. आरती जलाने और पूजा में इसीलिए इसके विभिन्न प्रयोग भी देखे जाते हैं. दीप पूजा व दीपदान करना सबसे श्रेष्ठ है. संन्ध्या वंदन के समय दीप जलाना उत्तम कर्म है. यह दीप दिन के अंत की घोषणा है.
ऐसा है परमात्मा का स्वरूप
यजुर्वेद में परमात्मा का जो स्वरूप बताया गया है, उसमें भी सूर्य-चंद्र और अग्नि प्रमुख घटक की तरह ही हैं.
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत,
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत.
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत.
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकान् अकल्पयन्
इसमें बताया गया है कि परमात्मा-रूपी पुरुष के मन से चन्द्रमा उत्पन्न हुआ, उसके चक्षु से सूर्य, श्रोत्र से वायु और प्राण, मुख से अग्नि, नाभि से अन्तरिक्ष, सिर से अन्य सूर्य जैसे प्रकाश-युक्त तारागण, दो चरणों से भूमि, श्रोत्र से दिशाएं, और इसी प्रकार सब लोक उत्पन्न हुए. घर कें मंदिर में जल रहा दीप असल में परमात्मा की आंखों का तेज ही है, जो हमें सकारात्मक ऊर्जा दे रहा है, हमारा पालन कर रहा है और हमें झंझावातों से बचा रहा है.
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