आखिर बिहार में कैसे सफल हो रही BJP की रणनीति? कौन बन रहा यहां मददगार
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आखिर बिहार में कैसे सफल हो रही BJP की रणनीति? कौन बन रहा यहां मददगार

एनडीए गठबंधन लगातार नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र की सत्ता पर काबिज है. उनके खिलाफ जनता का मुड भी बना हुआ है, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे सरकार के खिलाफ खड़े हैं लेकिन विपक्ष की एकता की बात करें तो वह एक दूसरे के खिलाफ खड़े होकर भाजपा और उसके गठबंधन को अमृत देने का काम कर रहे हैं. 

(फाइल फोटो)

पटना :  2024 लोकसभा चुनाव से पहले ही सियासत का जो तूफानी दौर चला है वह कईयों को साथ ले आएगा तो वहीं कई बिखर जाएंगे. दरअसल एक तरफ भाजपा जहां अपने गठबंधन के सहयोगियों के साथ मिलकर इस चुनाव के लिए कमर कस चुकी है. वहीं विपक्ष भी अब इकट्ठा होने के मुड में है. फिर भी हर बार की तरह इस बार भी विपक्षी एकता को मानो ग्रहण सा लग गया है. हालांकि कई विपक्षी दल एक साथ आकर भाजपा का मुकाबला करने को तैयार हैं लेकिन कांग्रेस अभी इससे अलग अपने राह तलाश रही है.  

 विपक्ष की कोशिश है कि सभी दल एक साथ आकर भाजपा को शिकस्त दें लेकिन अब विपक्ष भी कई खेमों में बंटता हुआ नजर आ रहा है. एक तरफ कांग्रेस के साथ बिहार में जेडीयू और आरजेडी मिलकर गठबंधन की जुगत में लगे हुए हैं तो वहीं. ममता और अखिलेश एक अलग खेमे के गठन की कवायद में लग गए हैं. वहीं अभी तक मायावती के साथ असदुद्दीन ओवैसी और नवीन पटनायक किस खेमे के साथ होंगे उन्होंने अभी तक इसका ऐलान नहीं किया है. 

अनुमान लगाया जा रहा है कि मायावती, ओवैसी और नवीन पटनायक अलग-अलग ही चुनाव लड़ेंगे. जबकि केसीआर के साथ अरविंद केजरीवाल एक अलग गठबंधन बनाकर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं इसकी संभावना जताई जा रही है. कांग्रेस के साथ भले सभी दल संपर्क में हो पर वह अभी भी अकेले चलने के मुड में ही नजर आ रही है. 

एनडीए गठबंधन लगातार नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र की सत्ता पर काबिज है. उनके खिलाफ जनता का मुड भी बना हुआ है, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे सरकार के खिलाफ खड़े हैं लेकिन विपक्ष की एकता की बात करें तो वह एक दूसरे के खिलाफ खड़े होकर भाजपा और उसके गठबंधन को अमृत देने का काम कर रहे हैं. बिहार में हीं देख लें तो उपेंद्र कुशवाहा, आरसीपी सिंह, पीके, असदुद्दीन औवैसी जैसे नेता विपक्ष का खेल बिगाड़ने में लग गए हैं. 

भाजपा के खिलाफ खड़े मुसलमान अगर आंशिक या पूर्ण समर्थन के साथ भी ओवैसी को हो लिए तो फिर भाजपा को जितना इसका नुकसान होगा उससे ज्यादा विपक्ष को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. बिहार में दो उपचुनावों में यह असर दिख भी गया है कि मुस्लिम वोट बैंक को अपनी धरोहर समझने वाली कांग्रेस, राजद और जदयू के बदले मुसलमान ओवैसी के साथ दिखे और इसी का फायदा भाजपा को मिला. यहा हाल सीमांचल की चार सीटों पर भी हो सकता है. ऐसे में ओवैसी के उम्मीदवार भले ना जीतें लेकिन कांग्रेस, राजद और जदयू के उम्मीदवारों को इस वजह से हार का सामना तो करना ही पड़ेगा. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जहां विपक्षी अभी तक एकजुट नहीं हो पाए हैं वहीं भाजपा बूथ स्तर पर अपने मैनेजमेंट के काम में लग गई है. भाजपा दूसरी तरफ पसमांदा मुसलमानों को भी अपने पक्ष में करने की तैयारी में लगी हुई है. 

भाजपा ने बिहार में जहां सुरक्षा देकर चिराग पासवान, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं को साधने का काम किया है. वहीं पशुपति कुमार पारस को पहले ही केंद्र में मंत्री बनाकर अपने साथ कर लिया है. वहीं जिस तरह से लालू परिवार के खिलाफ एजेंसियों की तरफ से कार्रवाई चल रही है उसको लेकर नीतीश कुमार भी पसोपेश की स्थिति में हैं. अगर सीबीआई तेजस्वी के खिलाफ कोई एक्शन लेती है तो नीतीश को एक बार फिर पाला बदलकर भाजपा का दामन थामना होगा. बिहार पर इस बार भाजपा का फोकस ज्यादा है, जहां जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर कम है वहां भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. इस बार जितने सीट भाजपा के पास हैं वह उससे ज्यादा जीत के आंकड़ों को कैसे पाया जाए इस पर काम कर रही है. अमित शाह इसी क्रम में 6 महीने के भीतर चौथी बार बिहार आ रहे हैं. अग ओवैसी फैक्टर काम कर गया तो बिहार में भाजपा की जीत वाली सीटों की संख्या बढ़ाने की सोच कामयाब हो सकती है. 

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