Bihar Caste Census: बिहार में MYK बनाम BBBKKM की लड़ाई, अति पिछड़ा वर्ग और दलितों के पास होगी सत्ता की चाबी
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Bihar Caste Census: बिहार में MYK बनाम BBBKKM की लड़ाई, अति पिछड़ा वर्ग और दलितों के पास होगी सत्ता की चाबी

Bihar Caste Census: जातीय जनगणना के बिहार की उलझी हुई राजनीति अब और उलझ गई है. सबसे अधिक फायदा राजद को होता दिख रहा है लेकिन उसमें भी कई सारे अंतर्विरोध झलक रहे हैं. 

जातीय जनगणना

Bihar Caste Census: जातीय जनगणना हो चुकी और इसके आंकड़े भी अब पब्लिक डोमेन में हैं. सत्ताधारी महागठबंधन (Mahagathbandhan) जातीय जनगणना के आंकड़े को जारी कर जहां अपनी पीठ थपथपा रहा है, वहीं भाजपा अब बिहार को हिंदू राज्य (Hindu State) घोषित करने की मांग कर रही है. जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) और उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने तो जातीय जनगणना में झोल करने के भी आरोप लगा दिए हैं. मांझी ने तो फिर भी इसी जातीय जनगणना के आधार बिहार सरकार के मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन की भी मांग कर दी है. इसमें कोई शक नहीं कि जातीय जनगणना चुनावी फायदे के लिए कराया गया है- एक तरह से बिहार का जातीय समीकरण MYK (Muslim, Yadav & Kurmi) बनाम BBBKKM (Brahmin+Bhumihar+Baniya+Kushwaha+Kayastha+Mushar) की लड़ाई में बदलता जा रहा है. इस तरह अति पिछड़ा वर्ग और दलितों के पास सत्ता की चाबी रहने वाली है. तो एक नजर सभी दलों या गठबंधनों को होने वाले नफा नुकसान पर भी डाल लेते हैं. 

सबसे पहले सत्ताधारी गठबंधन यानी महागठबंधन की बात करते हैं. महागठबंधन में राजद, जेडीयू और कांग्रेस के अलावा वामदल शामिल हैं. राजद के वोट बैंक की बात करें तो यादव और मुस्लिम इसका सबसे बड़ा आधार है. राजपूतों का एक वर्ग भी राजद को वोट देता आया है. जेडीयू वैसे तो सर्वधर्म समभाव की राजनीति करती है पर मुस्लिमों को लुभाने में यह कभी पीछे नहीं रही. इसका कोर आधार वोट बैंक कुर्मी हैं. उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने और सम्राट चौधरी के बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से कुशवाहा वोट बैंक जेडीयू से खिसक गया है और बिहार में पिछले दिनों हुए उपचुनाव में यह प्रमाणित भी हो चुका है. 

कांग्रेस की बात करें तो पहले उसका वोट बैंक सवर्णों के अलावा दलितों और मुस्लिमों का हुआ करता था पर अब वह बीते जमाने की बात हो गई है. बिहार में कांग्रेस शुद्ध रूप से राजद और जेडीयू के वोट बैंक पर निर्भर है. कम्युनिस्ट पार्टी का जातिगत आधार पर कोई वोट बैंक नहीं है लेकिन सभी वर्गों में एक छोटा तबका वाम दलों से नजदीकी रखता है. तो कुल मिलाकर महागठबंधन का वोट बैंक 17 प्रतिशत मुसलमान, 14 प्रतिशत यादवों के अलावा 2 प्रतिशत कुर्मी होते हैं. यह बिहार की कुल जनसंख्या का 33 प्रतिशत होता है. 

अब बात करते हैं एनडीए के वोट बैंक की. एनडीए में मुख्य दल भाजपा के अलावा लोजपा के दोनों धड़े, उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोक जनता दल और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल हैं. भाजपा पहले सवर्णों और बनियों की पार्टी कही जाती थी पर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पिछड़े वर्ग में इसका आधार बहुत बढ़ा है. उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए में आने और सम्राट चौधरी के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद से कुशवाहा वोट बैंक भी एनडीए की ओर आया है. 

प्रतिशत में देखें तो कुशवाहा 4 प्रतिशत, ब्राह्मण 3 प्रतिशत, भूमिहार 2 प्रतिशत, बनिया 2 प्रतिशत, मुसहर 3 प्रतिशत और कायस्थ 0.6 प्रतिशत सॉलिड रूप से एनडीए के साथ हैं. इसके अलावा राजपूतों में से एक धड़ा एनडीए को वोट देता आया है. वर्गों के हिसाब से देखें तो 36.01 प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग, दलित 19 प्रतिशत, वनवासी समुदाय का 1 प्रतिशत और सवर्ण 15 प्रतिशत भाजपा और एनडीए के साथ मजबूती से डटे हुए हैं. 

महागठबंधन के पास यादव, कुर्मी और मुसलमानों का ठोस वोटबैंक है तो एनडीए के पास टुकड़ों में वोट बंटे हुए हैं. स्थानीय स्तर पर या फिर उम्मीदवार के हिसाब से महागठबंधन एनडीए के वोटबैंक में सेंध लगा सकता है, लेकिन एनडीए उम्मीदवार के स्तर पर भी महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकता, क्योंकि यादव और मुसलमान राजद छोड़कर कहीं नहीं वोट करने वाले तो कुर्मी भी नीतीश कुमार को लेकर निष्ठावान हैं. 

महागठबंधन के साथ एक दिक्कत यह है कि यादव जहां जाएंगे, बाकी पिछड़े दल उससे किनारा कर लेंगे. लालू प्रसाद यादव का माई समीकरण अब बिहार में जिताउ समीकरण नहीं रहा, जब तक कि दूसरे वर्गों का थोड़ा बहुत अंशदान राजद को नहीं मिल जाता. यही कारण है कि राजद 2005 के बाद से अब तक सत्ता से दूर ही रही है. 

जातीय जनगणना के आंकड़े

मुसलमान: 17.7088 प्रतिशत 
यादव: 14.2666 प्रतिशत 
कुर्मी: 2.8785 प्रतिशत 
कुशवाहा: 4.2120 प्रतिशत 
ब्राह्मण 3.6575 प्रतिशत 
भूमिहार: 2.8683 प्रतिशत 
राजपूत: 3.4505 प्रतिशत 
मुसहर: 3.0872 प्रतिशत  
मल्लाह: 2.6086 प्रतिशत 
बनिया: 2.3155 प्रतिशत 
कायस्थ: 0.60 प्रतिशत 

वर्ग के हिसाब से 
अति पिछड़ा वर्ग: 36.01 प्रतिशत 
पिछड़ा वर्ग: 27.12 प्रतिशत 
अनुसूचित जाति: 19.6518 प्रतिशत 
अनुसूचित जनजाति: 1.6824 प्रतिशत 
सवर्ण: 15.5224 प्रतिशत

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