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Bihar Congress: एक समय पर सवर्ण नेताओं के भरोसे बिहार की सत्ता पर काबिज रहनेवाली कांग्रेस ने प्रदेश में एक बार फिर से अपनी रणनीति में बदलाव किया है. कांग्रेस ने बिहार की राजनीति में अपना स्वर्ण काल 'सवर्णों' के सहारे ही गुजारा है. आपको बता दें कि श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिन्हा की जोड़ी और उसके बाद से जगन्नाथ मिश्रा, भागवत झा आजाद सहित कांग्रेस के दौर के मुख्यमंत्रियों के नाम और जाति की पूरी लिस्ट निकाल लें तो आपको शायद बेहतर पता चल पाएगा. आपको बता दें कि उसी स्वर्ण काल में कांग्रेस एक बार बिहार में फिर से वापसी करना चाह रही है. बता दें कि कांग्रेस ने पूरे प्रदेश के 38 जिलों के 39 जिलाध्यक्षों के नाम की सूची जारी की है जिसमें से सवर्णों की संख्या देखकर आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं.
बिहार में कांग्रेस जब तक सत्ता में रही अधिकतर समय वह अन्य जातियों के मुकाबले प्रदेश में कम आबादी होने के बावजूद भी सवर्णों को ही अपना चेहरा सीएम के तौर पर लाती रही. अब इस बार एक बार फिर से कांग्रेस ने प्रदेश भर में सवर्णों पर अपना भरोसा बढ़ाया है. कांग्रेस की इस सूची को देखकर आप भी समझ सकते हैं कि कैसे वह मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटों से दूर सवर्णों को प्रदेश में एक बार फिर से साधने की कोशिश में लग गई है.
बता दें कि इस बार 39 में से 26 सवर्ण जाति के अध्यक्ष कांग्रेस ने बनाए हैं. इसके साथ ही पांच ओबीसी, पांच अल्पसंख्यक और तीन दलित को भी शामिल किया है. मतलब साफ है कि 100 में से 67 फीसदी जिलाध्यक्ष कांग्रेस के सवर्ण हैं. इसमें से सबसे ज्यादा भूमिहार जाति के हैं जिनकी संख्या 11 है. कांग्रेस ने इस सूची में 11 पुराने चेहरे रखे हैं तो वहीं 28 नए चेहरों पर दाव लगाया है.
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बिहार में वैसे भी एक समय तक सवर्ण वोटरों की पसंद कांग्रेस ही रही है. अभी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह हैं जो भूमिहार जाति से आते हैं. हालांकि कांग्रेस जैसे-जैसे बिहार में कमजोर हुई सवर्ण वोट बैंक की शिफ्टिंग भाजपा की तरफ होता रहा. राजनीति के जानकार मानते हैं कि अब कांग्रेस चालाकी से इस वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए यह दाव खेल गई है. कांग्रेस की इसके पीछे की बड़ी वजह भी है वह जान रही है कि गठबंधन के अन्य दल अन्य जातियों को साधने की कोशिश करेंगे ऐसे में कांग्रेस अपनी पुरानी जमीन पर लौटना चाह रही है.