Lok Sabha Election 2024: भगवान राम के बाद अब 'लव-कुश' पर नजर, 2024 में नीतीश कुमार को चारों खाने चित करने की तैयारी
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Lok Sabha Election 2024: भगवान राम के बाद अब 'लव-कुश' पर नजर, 2024 में नीतीश कुमार को चारों खाने चित करने की तैयारी

बात 1994 की है, जब बिहार में 'लव-कुश' समीकरण की नींव डाली गई थी. उस समय कुर्मी-कोइरी सम्मेलन हुआ था और यही से 'लव-कुश' समीकरण की बात पहली बार की गई.

पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह

Lok Sabha Election 2024: बात 1994 की है, जब बिहार में 'लव-कुश' समीकरण की नींव डाली गई थी. उस समय कुर्मी-कोइरी सम्मेलन हुआ था और यही से 'लव-कुश' समीकरण की बात पहली बार की गई. इसके बाद तत्कालीन जनता दल से विद्रोह करते हुए जॉर्ज फर्नांडीज (George Fernandiz), नीतीश कुमार (Nitish Kumar), उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha), पीके सिन्हा (PK Sinha), दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh), शकुनी चौधरी (Shakuni Chaudhary) आदि नेताओं ने समता पार्टी (Samata Party) के नाम से नया दल बनाया. कुर्मी के नेता नीतीश कुमार तो कोइरी के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने लव-कुश समीकरण का खूब प्रचार-प्रसार किया. इसी के बलबूते नीतीश कुमार कालांतर में बिहार के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे और करीब पिछले 18 सालों से (जीतनराम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो) बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. हालांकि बाद के दिनों में उपेंद्र कुशवाहा से उनकी खटपट शुरू हो गई तो कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया और 2020 के चुनाव में मात खाने के बाद जेडीयू में इसका विलय भी कर लिया गया था. अब उपेंद्र कुशवाहा फिर से नीतीश कुमार से अलग होने की राह पर हैं और सोमवार दोपहर तक वे नई पार्टी का ऐलान भी कर सकते हैं. माना जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह (पहले ही नीतीश कुमार से अलग हो चुके हैं) मिलकर अब नीतीश के बेस वोट बैंक को चोट पहुंचाएंगे. नीतीश कुमार गुट के नेताओं का कहना है कि ये दोनों नेता बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं. यह बात अगर सही है तो जेडीयू के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि बीजेपी इन दोनों नेताओं के सहारे लव कुश समीकरण को अपने साथ ले सकती है. अगर ऐसा होता है तो नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के लिए बहुत बुरी खबर हो सकती है.

  1. 2020 में गुपचुप वोटर तो 2024 में लव कुश वोटर 
  2. 2024 में नीतीश को चारों खाने चित करने की तैयारी 

2020 में महिलाएं तो 2024 में कुर्मी-कोइरी समीकरण 

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने एक रैली में कहा था, बीजेपी ने महिला वोटरों का ऐसा ग्रुप तैयार किया है, जो पार्टी के पक्ष में चुपके से वोट करती हैं. 2020 से पहले माना जाता था कि महिलाओं के दिल में नीतीश कुमार के प्रति हमदर्दी होगी, क्योंकि नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून लागू किया है और कई महिलाओं के घर उजड़ने से बच गए हैं. लेकिन 2020 में सब कुछ अचानक बदल गया. यहां तक कि नीतीश की पार्टी के नेताओं के पक्ष में प्रचार करने के लिए भी पीएम मोदी को मैदान में आना पड़ा था. जैसा कि आप सब जानते हैं, बीजेपी की चुनाव मशीनरी हर चुनाव में अलग तरीके और अलग स्ट्रैटजी के साथ मुकाबले में उतरती है तो हो सकता है कि बीजेपी बिहार में लव कुश समीकरण को साधने की तैयारी कर रही हो. अगर जेडीयू नेताओं की बातों में दम है तो खुद जेडीयू को ही इस बारे में सबसे ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है. क्योंकि अगर बीजेपी का यह वार निशाने पर लगा तो नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर और जेडीयू का भविष्य दानों तबाह हो सकता है. हालांकि नीतीश कुमार ने ऐलानिया कह रखा था कि 2020 का चुनाव उनका अंतिम चुनाव होगा. फिर भी राजनीति में इन बातों का कोई मतलब नहीं होता. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के वोट लव कुश समीकरण पर आधारित हैं.

कुर्मी-कोइरी छोड़ किसी और को जोड़ नहीं पाए नीतीश 

हालांकि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने के बाद लव कुश समीकरण से इतर अन्य वोटरों को साधने की कोशिश की थी. उन्होंने पसमांदा मुसलमानों पर डोरे डाले. दलितों में से एक अन्य कैटेगरी ईजाद की- महादलित. इसके अलावा शराबबंदी कानून लागू कर वे महिला वोटरों को अपने पक्ष में करना चाहते थे, लेकिन पीएम मोदी के चुनावी चमत्कार ने सब कुछ बदलकर रख दिया. मुसलमानों के मसीहा बनने की भी नीतीश कुमार ने कोशिश की और धार्मिक मसलों पर वे एनडीए में होते हुए भी मुसलमानों के पक्ष में बयान देते थे लेकिन राजद के मजबूत होने के साथ ही मुसलमान उसकी ओर चले गए, जो बीच में कभी लोजपा तो कभी जेडीयू को वोट कर रहे थे. रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के रहते नीतीश कुमार दलित वोटरों में बंटवारा करने में नाकाम रहे. तो उनके पास रह गए वहीं लव कुश वोटर और उसी के बल पर वे अब तक शासन में जमे हुए हैं. दरअसल, बिहार में राजनीतिक रूप से दो धड़े बने हुए हैं. एक धड़े का प्रतिनिधित्व बीजेपी करती है तो दूसरे का प्रतिनिधित्व नीतीश कुमार करते हैं. नीतीश कुमार किसी धड़े में नहीं हैं और सुविधानुसार हर धड़े का अंग बन जाते हैं.

आरसीपी और कुशवाहा मिलकर खड़ी करेंगे मुसीबत 

पिछले साल की बात है, जब मोदी सरकार के मंत्री और नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी आरपीसी सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा था और उन्हें मंत्री पद इसलिए छोड़ना पड़ा, क्योंकि जेडीयू ने राज्यसभा में दूसरे टर्म के लिए उन्हें भेजा ही नहीं. जेडीयू में नीतीश कुमार के करीबी नेता आरोप लगाते हैं कि मंत्री पद पर रहते हुए आरसीपी सिंह बीजेपी के बहुत करीब चले गए थे, जो पार्टी लाइन के खिलाफ था. आरसीपी सिंह, नीतीश कुमार की तरह कुर्मी जाति से आते हैं और उनका और नीतीश कुमार का गृह जिला भी एक ही है. अब जैसा कि जेडीयू के नेता आरोप लगा रहे हैं कि आरसीपी सिंह बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि बीजेपी बिहार में कुर्मी वोटों में सेंध लगाने की तैयारी में है. जेडीयू के नेता उपेंद्र कुशवाहा पर भी ऐसा ही आरोप लगाते हैं तो इसमें भी बताने की जरूरत नहीं है कि कोइरी वोटों पर भी बीजेपी नजर बनाए हुए है. अब अगर ये दोनों नेता बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि नीतीश कुमार के लव कुश समीकरण को लेकर बहुत बड़ा फेरबदल होने वाला है. भगवान राम पर तो बीजेपी पहले ही 'कॉपीराइट' लेकर बैठी हुई है और बिहार में 'लव-कुश' पर भी उसकी नजर है. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में देखना होगा कि बीजेपी अपने दांव में सफल हो पाती है या नहीं.

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