Gopalganj UpChunav Analysis: गोपालगंज तो गया, लेकिन तेजस्वी-नीतीश कुढ़नी बचाने के लिए क्या करेंगे?
Advertisement

Gopalganj UpChunav Analysis: गोपालगंज तो गया, लेकिन तेजस्वी-नीतीश कुढ़नी बचाने के लिए क्या करेंगे?

गोपालगंज में सबसे ज्यादा 65000 मतदाता मुस्लिम हैं. 47000 वोट के साथ यादव तीसरे नंबर पर हैं. टोटल वोटर करीब 2.60 लाख हैं फिर भी MY समीकरण पर दांव लगाने वाली पार्टी यानी कि RJD चुनाव हार गई.

नीतीश-तेजस्वी साथ हैं तो बीजेपी की जीत का मार्जिन घटकर महज 1794 रह गया है.

पटना: 'ये मामा नहीं हैं, कंस मामा हैं' गोपालगंज उपचुनाव में आरजेडी की हार की निराशा लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने कुछ इस तरह निकाली. लेकिन समझदारी पछताने में नहीं, प्लानिंग में है. गोपालगंज तो गया लेकिन इस उपचुनाव से सबक लेकर अब देखना है कि तेजस्वी कुढ़नी में क्या करते हैं. कुढ़नी में वो कोई कमाल कर पाते हैं तो वही फॉर्मूला 2025 में भी काम आ सकता है. 

गोपालगंज में सबसे ज्यादा 65000 मतदाता मुस्लिम हैं. 47000 वोट के साथ यादव तीसरे नंबर पर हैं. टोटल वोटर करीब 2.60 लाख हैं फिर भी MY समीकरण पर दांव लगाने वाली पार्टी यानी कि RJD चुनाव हार गई. वो भी महज 1794 वोट से. तो खीझ, गुस्सा, निराशा लाजिमी है. लेकिन ऐसा हुआ क्यों. क्योंकि मुसलमान और यादव वोट बंट गए. मुसलमान वोट पर ओवैसी की पार्टी ने भी दांव लगाया था और उनके उम्मीदवार अब्दुल सलाम को 12 हजार से ज्यादा वोट मिले. 

उधर, लालू के साले यानी तेजस्वी के मामा साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव BSP से चुनाव लड़ रही थीं. उन्हें भी 8 हजार से ज्यादा वोट मिले. दोनों को मिलाकर करीब 21000 वोट मिले. ये वोट नहीं बंटते को कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि विनर कौन होता. कोई ताज्जुब नहीं कि लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य ने हार के लिए अपने मामा साधु यादव और ओवैसी को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने उन पर पार्टी का वोट कटवाने का आरोप लगाया.

आचार्य ने कहा, 'मैं ओवैसी सर से कहना चाहता हूं कि उन्होंने तेजस्वी यादव से बदला नहीं लिया है, बल्कि उस पार्टी को तोहफा दिया है, जिसने बिलकिस बानो के बलात्कारियों को रिहा करने में मदद की थी.' लेकिन ये वक्त निराश और हताश होने का नहीं है. राजनीति में जीत उसी की होती है तो जो बेहतर बिसात बिछाता है. और जाहिर है यहां बीजेपी ने बेहतर चक्रव्यूह रचा था. 
गोपालगंज पर रोने की नहीं, सीखने की जरूरत है. क्योंकि अब ये एक पैटर्न हो चला है. पिछले विधानसभा चुनावों में ओवैसी के पांच उम्मीदवार जीते थे. बाद में भले ही चार आरजेडी में चल गए लेकिन चुनाव परिणामों ने आरजेडी का समीकरण जरूर बिगाड़ दिया. कई ऐसी सीटें भी थीं जहां भले ही ओवैसी का उम्मीदवार नहीं जीता लेकिन आरजेडी का खेल बिगाड़ा.
 
ओवैसी पर जब भी ये आरोप लगा है कि वो बीजेपी की बी टीम हैं तो उन्होंने इससे इनकार किया है. अगर वो वाकई में झूठ नहीं बोल रहे तो उन्हें ये सोचना ही चाहिए कि आखिर उनकी लड़ाई है किसके साथ. मायावती भी बीजेपी की बी टीम होने के आरोपों को सिरे से खारिज करती हैं. अगर ये सच है तो उन्हें तय करना होगा वो किस टीम में हैं. 

नीतीश-तेजस्वी को भी गैर बीजेपी दलों को साथ लाने के लिए दो कदम आगे बढ़ना होगा. क्यों ने कुढ़नी से ही शुरू करें? कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव 5 दिसंबर को आ रहे हैं. ओवैसी की पार्टी ने यहां भी अपना उम्मीदवार खड़ा करने का ऐलान कर दिया है. तो ये महागठबंधन खासकर नीतीश, तेजस्वी के लिए टेस्ट हो सकता है कि कैसे वो बड़े दुश्मन बीजेपी से लड़ने के लिए ओवैसी जैसे छोटे दुश्मनों को दोस्त बनाते हैं. कुढ़नी में ये पैंतरा कारगर रहा तो गैर बीजेपी दलों को फायदा समझ में आएगा और क्या पता यही फार्मूला 2025 में अपना लिया जाए.

तेजस्वी के लिए निराशा के बीच एक उम्मीद की बात. 2015 में जब नीतीश और तेजस्वी साथ थे तो आरजेडी के उम्मीदवार को गोपालगंज में 73000 वोट मिले थे, तब भी बीजेपी जीती थी, उसे 78000 वोट मिले थे. लेकिन जीत का मार्जिन 2020 से काफी कम था. 2020 में नीतीश और तेजस्वी अलग थे. तो गोपालगंज में बीजेपी करीब 37000 हजार वोट से जीती थी. 

इस बार जब फिर से नीतीश-तेजस्वी साथ हैं तो बीजेपी की जीत का मार्जिन घटकर महज 1794 रह गया है. इस गठबंधन के लिए ये सिल्वर लाइनिंग है कि मिलकर लड़ेंगे तो जीत सकते हैं. वृहत पैमाने पर विपक्ष के लिए भी यही संदेश है. अगर बिखरे-बिखरे रहे तो बर्बाद जाएंगे. छोटे गिले शिकवे, निजी महत्वाकांक्षाएं भुलाए बिना 2024 और 2025 की जंग में बीजेपी के खिलाफ उतरे तो गोपालगंज जैसी गड़बड़ होने की आशंका ज्यादा है.

Trending news