Bihar Politics: मोदीराज में हरिवंश का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते नीतीश कुमार, अब वो इस बात के इंतजार में हैं कि....
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Bihar Politics: मोदीराज में हरिवंश का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते नीतीश कुमार, अब वो इस बात के इंतजार में हैं कि....

बिहार में जेडीयू इन दिनों कई वजहों से बेबस है. एक तो महागठबंधन का हिस्सा बनने के बाद से विपक्षी भाजपा के तेवर, दूसरा महागठबंधन के दलों के साथ अच्छा सामंजस्य नहीं होना और तीसरा और सबसे अहम पार्टी के भीतर ही चल रहा अंतर्कलह. ऐसे में अब जेडीयू की वर्किंग कमिटी की बैठक पटना में हुई.

(फाइल फोटो)

Bihar Politics: बिहार में जेडीयू इन दिनों कई वजहों से बेबस है. एक तो महागठबंधन का हिस्सा बनने के बाद से विपक्षी भाजपा के तेवर, दूसरा महागठबंधन के दलों के साथ अच्छा सामंजस्य नहीं होना और तीसरा और सबसे अहम पार्टी के भीतर ही चल रहा अंतर्कलह. ऐसे में अब जेडीयू की वर्किंग कमिटी की बैठक पटना में हुई. बता दें कि जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारणी की सूची में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश प्रसाद का नाम नहीं है. वैसे आपको बता दें कि हरिवंश नारायण को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाना लगभग पहले से तय नजर आ रहा था. 

हरिवंश नारायण और नीतीश कुमार के बीच दूरियों की कहानी कोई नई नहीं है. नीतीश को मौका नहीं मिला नहीं तो राज्यसभा से हरिवंश नारायण की सदस्यता कब की चली गई होती. जब नीतीश ने भाजपा गठबंधन से रिश्ता तोड़कर महागठबंधन के साथ बिहार में सरकार बनाई तो उस समय हरिवंश को भी राज्यसभा के उप सभापति के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ.  

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उसके बाद संसद भवन की नई बिल्डिंग के उद्धाटन समारोह के कार्यक्रम का जब सभी विपक्षी दल विरोध कर रहे थे तो उसमें नीतीश की पार्टी जेडीयू भी शामिल थी. उस समय भी हरिवंश उस कार्यक्रम का हिस्सा बतौर राज्यसभा के उपसभापति बने. वहां उन्होंने संबोधन भी दिया. 

दिल्ली विधेयक को लेकर नीतीश कुमार चाहते थे कि हरिवंश भी इसमें पार्टी के साथ सरकार के विरोध में खड़े रहें. इसके लिए पार्टी की तरफ से व्हीप भी जारी किया गया था. लेकिन, सदन का माहौल नीतीश को परेशान कर गया. जब वोटिंग से ठीक पहले वह राज्यसभा के सभापति की कुर्सी पर विराजमान हो गए. ऐसे में वह यहां उप सभापति की भूमिका में आ गए. 

शायद हरिवंश को पता है कि नीतीश कुमार उन्हें पार्टी की सदस्यता और राज्य सभा की सदस्यता से वंचित नहीं कर सकते हैं. ऐसे में वह पार्टी के विचार से अलग काम करते रहे. नीतीश कुमार चाहकर भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से नहीं कह सकते थे कि वह हरिवंश की पार्टी से सदस्यता समाप्त कर दें. नीतीश को पता था कि ऐसी स्थिति में हरिवंश फिर एकदम आजाद तरीके से काम करने लगेंगे. ऐसे में उन्हें पार्टी की सदस्यता से बांधे रखा.  

नीतीश कुमार इस मामले में ज्यादा से ज्यादा यह कर सकते थे कि राज्यसभा के सभापति यानी उपराष्ट्रपति को हरिवंश की सदस्यता समाप्त करने के लिए पत्र लिख सकते थे. ऐसे में इसका क्या होता यह भी पता है. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव तक इंतजार करना ही नीतीश के लिए बेहतर विकल्प है ताकि देश में I.N.D.I.A की सरकार बने और फिर हरिवंश की सदस्यता रद्द करने की मांग की जाए. ऐसे में इस तरह हरिवंश का नाम जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारणी की सूची से हटाकर नीतीश ने केवल अपने दिल को तसल्ली दी है.  

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