Lok Sabha election 2024: 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई काराकाट सीट, कभी कांग्रेस का माना जाता रहा गढ़
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1643092

Lok Sabha election 2024: 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई काराकाट सीट, कभी कांग्रेस का माना जाता रहा गढ़

रोहतास जिले का काराकाट सीट वैसे तो 1952 से ही शाहाबाद दक्षिणी लोकसभा क्षेत्र के रूप में जाना जाता था. फिर इस सीट का नाम 1962 में बदलकर बिक्रमगंज कर दिया गया. लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद काराकाट लोकसभा सीट अस्तित्व में आई.

(फाइल फोटो)

Lok Sabha election 2024: रोहतास जिले का काराकाट सीट वैसे तो 1952 से ही शाहाबाद दक्षिणी लोकसभा क्षेत्र के रूप में जाना जाता था. फिर इस सीट का नाम 1962 में बदलकर बिक्रमगंज कर दिया गया. लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद काराकाट लोकसभा सीट अस्तित्व में आई. इस सीट पर पहले कांग्रेस का एकाधिकार माना जाता रहा है, 1989 से पहले तक यही हालत इस सीट पर रही. इसके बाद यह सीट समाजवादियों के कब्जे में आई और लंबे समय तक इसी के कब्जे में रही. भाजपा इस सीट पर अपनी जीत में सफल नहीं हो पाई है. बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह सीट जदयू के पास थी. इसी सीट पर जदयू के खिलाफ उपेंद्र कुशवाहा चुनाव मैदान में थे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा उजियारपुर सीट से भी चुनाव लड़े थे और वहां से भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 

इस काराकाट सीट पर हमेशा से वहां के क्षेत्रीय दलों का ही वर्चस्व रहा है. देखना यह होगा कि क्या इस बार भाजपा इस सीट पर अपने उम्मीदवार उतारती है क्योंकि यहां 1991 के बाद से अब तक भाजपा ने कभी उम्मीदवार ही नहीं उतारे हैं. एक जमाने में कांग्रेस नेता और सहकारिता सम्राट के नाम से जाने जानेवाले सम्राट तपेश्वर सिंह की यह कर्मस्थली रही है. यहां परिसीमन के बाद से एक चीज जो देखी गई है वह यह है कि यहां सांसद हमेशा बदलते रहे हैं. कोई भी उम्मीदवार यहां दो बार से अधिक जीत नहीं सका है. 

इस सीट पर जब यह शाहबाद दक्षिणी लोकसभा के नाम से जाना जाता था तो पहली बार कमल सिंह निर्दलीय सांसद बने थे. 1989 के बाद से यहां कांग्रेस के प्रत्याशी को कभी जीत नसीब नहीं हुई मतलब उनके हाथ से उनका यह किला भी छिन गया. बता दें कि इसी सीट से समता पार्टी के टिकट पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष रहे वशिष्ठ नारायण सिंह सांसद रह चुके हैं. 2014 में यह सीट उपेंद्र कुशवाहा ने जीती थी. 2019 में उपेंद्र कुशवाहा को यह सीट जदयू के महाबली सिंह के हाथों गंवानी पड़ी. 

ये भी पढ़ें- जो तेजस्वी बोलते थे वो अब सम्राट चौधरी बोल रहे हैं.... जो बीजेपी बोलती थी वो अब राजद बोल रही है, ऐसा क्यों?

काराकाट लोकसभा सीट के अंदर ओबरा, गोह, नबीनगर, नोखा, डेहरी और काराकाट 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इसका जिला रोहतास कभी बिहार के उद्योग के केंद्र के रूप में जाना जाता था. नक्सली हिंसा ने इस क्षेत्र को बदनाम कर दिया और आपको बता दें कि यह जिला फिर से कभी उभर नहीं पाया. यहां यादवों की आबादी सबसे बड़ी है उसके बाद राजपूत, फिर कोइरी, मुसलमान, ब्राह्मण और फिर भूमिहार आते हैं. अगर भाजपा इस बार बिहार की सभी सीटों पर लोकसभा चुनाव में अपने दम पर उम्मीदवार उतारती है तो देखना होगा कि यहां से भाजपा किसे चेहरा बनाती है और यहां का जातीय समीकरण भाजपा को कितना फायदा पहुंचाने वाला होगा. 

 

Trending news