20 और 15 नहीं, पूरे 35 साल की पॉलिटिक्स को टारगेट कर रहे हैं प्रशांत किशोर, अब तक दूसरों को जिताने वाले अब खुद कसौटी पर
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20 और 15 नहीं, पूरे 35 साल की पॉलिटिक्स को टारगेट कर रहे हैं प्रशांत किशोर, अब तक दूसरों को जिताने वाले अब खुद कसौटी पर

Prashant Kishor Politics: पहले दूसरे को सत्ता की सीढ़ियों तक पहुंचाने में जोर लगाते थे, वहीं प्रशांत किशोर अब खुद राजनीतिक अखाड़े में उतरकर ताल ठोकते नजर आएंगे. प्रशांत किशोर के लिए नई पार्टी लांच कर राजनीति में उतरना और फिर सफल होना चुनाव लड़ाने जितना आसान नहीं है. फिर भी इस मुश्किल टास्क को हाथ में लेने के लिए प्रशांत किशोर की प्रशंसा करनी होगी. 

प्रशांत किशोर, जनसुराज के संस्थापक

प्रशांत किशोर... एक जाना पहचाना नाम. पहले राजनीति कराने के लिए जाने जाते थे तो अब खुद ही राजनीति करने के लिए पिच तैयार कर रहे हैं. पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक, प्रशांत किशोर ने कई दलों को सत्ता के गलियारों तक पहुंचाने में भरपूर साथ दिया और एक तरह से रास्ता दिखाने का काम किया. 2 अक्टूबर को उनकी पार्टी की लांचिंग है और इससे पहले उन्होंने पूरे बिहार को लगभग मथ दिया है. राजनीति में आने वाले युवाओं के लिए प्रशांत किशोर एक अवसर बनकर उभरे हैं तो दर्जनों रिटायर आईएएस या आईपीएस के लिए Fill In The Blanks का मौका भी लेकर आए हैं. हालांकि बिहार की राजनीति में Blanks जैसा कभी कुछ रहा नहीं. इसके अलावा, दर्जनों सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स भी प्रशांत किशोर की पार्टी लांच होने और उससे पहले उससे जुड़ने की कतार में हैं. आलम यह है कि प्रशांत किशोर के कार्यक्रमों में जाने और न जाने को लेकर राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को एडवाइजरी जारी करनी पड़ी थी. मतलब प्रशांत किशोर बिहार के स्थापित दलों में डर भी पैदा कर पा रहे हैं और यह डर उन्हें अच्छा लग रहा होगा. प्रशांत किशोर बिहार के पिछले 35 सालों में सरकारों के काम को मुद्दा बना रहे हैं, जबकि एनडीए लालू प्रसाद के 15 साल और लालू तेजस्वी नीतीश कुमार के 20 साल को कोस रहे हैं.

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प्रशांत किशोर 2014 में नरेंद्र मोदी को सत्तासीन कराने में बड़ी भूमिका निभा चुके हैं. संबंध बिगड़े तो 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को गठबंधन करवाकर और फिर उनके लिए रणनीति बनाकर जीत हासिल करवाई. पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, तमिलनाडु के मुख्यमतंत्री एमके स्टालिन, आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक को विपरीत परिस्थितियों में भी प्रशांत किशोर बड़े बहुमत से सत्ता में लाने में सफल रहे थे. 

2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली अपार सफलता के बाद प्रशांत किशोर ने इतना भरोसा जीत लिया कि नीतीश कुमार ने उन्हें जनता दल यूनाइटेड का कार्यकारी उपाध्यक्ष बना दिया और पार्टी से युवाओं को जोड़ने की जिम्मेदारी दे दी. प्रशांत किशोर इस काम को कर पाते, उससे पहले ही उनका कुछ नीतिगत मसलों पर नीतीश कुमार से दुराव पैदा हो गया और उन्होंने दूरी बना ली. बीच बीच में वे चुनावी रणनीति बनाने वाली कंपनी आईपैक के माध्यम से राजनीतिक दलों को अपनी सेवा देते रहे. 

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने दावा किया था कि भाजपा अगर ट्रिपल डिजिट में आ जाएगी तो वे अपना काम छोड़ देंगे और वाकई भाजपा 100 के भीतर ही सिमट गई थी. इससे खुश होकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी उन्हें बड़ा ओहदा दिया था. ममता बनर्जी और नीतीश कुमार की तरह पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी प्रशांत किशोर को खुश करना चाहते थे पर कांग्रेस आलाकमान शुरू से ही प्रशांत किशोर को संदेह की निगाह से देखती रही, जिसके चलते अमरिंदर सिंह ऐसा नहीं कर पाए थे. 

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प्रशांत किशोर ने कांग्रेस आलाकमान को एक रिवाइवल प्लान भी दिया था और पार्टी की उदयपुर चिंतन शिविर में इस पर चर्चा भी हुई. हालांकि कांग्रेस ने इसे रिजेक्ट कर दिया था. प्रशांत किशोर के रिवाइवल प्लान में गांधी परिवार पर कांग्रेस के आश्रित न होने पर फोकस किया गया था, जो गांधी परिवार को नागवार गुजरी थी. रिवाइवल प्लान पेश करने से पहले तो प्रशांत किशोर को कांग्रेस में कोई बड़ा पद देने की बात हो रही थी पर जैसे ही प्रशांत किशोर ने अपना प्लान पेश किया, पार्टी ने प्रशांत किशोर से कन्नी काट ली. हालांकि कांग्रेस गांधी परिवार वाला एंगल छोड़ बाकी अधिकांश प्लान पर काम करती दिखी.

और तो और, प्रशांत किशोर ने 2024 के लोकसभा चुनाव से बहुत पहले कुछ इंटरव्यूज में यह कहना शुरू किया कि पीएम नरेंद्र मोदी मजबूत तो हैं पर ऐसा नहीं है कि उन्हें हराया नहीं जा सकता. प्रशांत किशोर ने ही सबसे पहले भाजपा प्रत्याशी के सामने विपक्ष के एक प्रत्याशी की थीम को लांच किया और बाद में इंडिया ब्लॉक ने इसे ही आजमाया और चुनावों में इस थीम से विपक्ष को जबर्दस्त फायदा हुआ और वह 232 सांसदों को जीता ले गया. 

प्रशांत किशोर की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे जाति से ब्राह्मण हैं और उनपर यह आरोप चस्पा किया जा सकता है कि वे भाजपा और आरएसएस की बी टीम हैं. इस आरोप से अब तक मायावती और असदुद्दीन ओवैसी उबर नहीं सके हैं. प्रशांत किशोर जानते हैं कि जब तक बिहार में जाति की बात होगी, तब तक उनके लिए कोई स्पेस नहीं बनने वाला. इसलिए वे समग्रता में अपनी बात रख रहे हैं. वे जहां बिहार में अव्यवस्था, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध और सामाजिक तानों बानों के लिए लालू प्रसाद यादव को निशाना बना रहे हैं तो नीतीश कुमार को भी कोसने से नहीं चूक रहे हैं.

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प्रशांत किशोर ज्यादातर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. खासतौर से उनको जो राजनीति में किसी भी तरह की एंट्री और पहचान बनाने के लिए लालयित हैं और उनको कोई प्लेटफॉम नहीं मिल पा रहा है. तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद यादव जहां जातिगत जनगणना और जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी पर फोकस कर रहे हैं तो नीतीश कुमार ने बिहार के विकास, बजट में बिहार को मिले गिफ्ट, नए नए प्रोजेक्ट आदि को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी में हैं. और सबसे बड़ी बात नीतीश कुमार की सरकार आगामी चुनाव से पहले 12 लाख नौकरयिां देने की बात कर रही है. यह भी प्रशांत किशोर के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. 

प्रशांत किशोर के लिए मौका और दस्तूर यह है कि बिहार में भ्रष्टाचार को केंद्रीय एजेंडे में लाएं. इसी साल पुल गिरने की करीब 20 घटनाएं हो चुकी हैं और बिहार इससे उपहास का पात्र बना है. आए दिन सरकारी अधिकारियों का रिश्वत लेते हुए वीडियो वायरल हो रहा है. शायद ही कोई सरकारी विभाग हो, जहां बिना रिश्वत के जनता का काम आसानी से हो रहा है. अपराध चरम पर है. लूट, अपहरण, डकैती, फिरौती और मर्डर से अखबारों के पन्ने रंगीन हो रहे हैं. और सबसे बड़ी बात बिहारी अस्मिता और पलायन की. बिहारी एक बार बाहर जा रहा है तो वह परदेसी हो जा रहा है. उसके लिए राज्य में कोई मौके नहीं हैं. पर्व त्योहार पर आता है और फिर ट्रेन पकड़ लेता है. घर परिवार और घरौदा सब टूट रहा है. 

अगर प्रशांत किशोर ऐसा कुछ कर ले जाते हैं तो बिहार के लिए वो एक उम्मीद हैं. अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो बिहार में बने कई छोटे बड़े दलों की तरह वे भी एक दल बनकर रह जाएंगे. वैसे भी अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से नई राजनीति के बहाने लोगों का भरोसा तोड़ा, उससे किसी भी नए दल के लिए स्थापित होना और फिर राजनीति करना किसी चुनौती से कम नहीं है. फिर भी देखना होगा कि प्रशांत किशोर किस तरह बिहार की राजनीति में स्थापित होते हैं और बिहारियों को दिखाने वाले सपनों को कैसे पंख लगाते हैं.

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