तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार से पूछे 18 सवाल, सचिवालय और शौचालय का क्यों किया जिक्र?
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तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार से पूछे 18 सवाल, सचिवालय और शौचालय का क्यों किया जिक्र?

Tejashwi Yadav on Modi Government:  बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार से सवाल पूछा है. तेजस्वी ने कहा कि पीएम मोदी आरक्षण विरोधी है. इसलिए इन उच्च पदों में आरक्षण को खत्म करने के लिए इसे एकल पद दिखाया गया है, जबकि कुल पद 45 है. 

तेजस्वी यादव, पूर्व डिप्टी सीएम, बिहार (File Photo)

Tejashwi Yadav: बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार पर आरक्षम को लेकर एक बार फिर तगड़ा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में दलित, पिछड़े और आदिवासी सचिवालय में नहीं बल्कि शौचालय में बैठे हैं. तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर एक पोस्ट कर मोदी सरकार से सवाल पूछा. राजद नेता ने इस दौरान 18 सवालों की एक लिस्ट जारी की है. 

1. प्रधानमंत्री मोदी संविधान और आरक्षण को खत्म कर असंवैधानिक तरीके से लैटरल एंट्री के ज़रिए उच्च सेवाओं में IAS/IPS की जगह, बिना परीक्षा दिए RSS के लोगों को भर रहे है.

2. संविधान सम्मत उच्च सेवाओं में भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होती है जिसमे प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार होता है. इसमें SC ST OBC और EWS के लिए रिजर्वेशन लागू होता है. लेकिन लेटरल एंट्री में भर्ती सिर्फ साक्षात्कार के माध्यम से हो रही है और बिना परीक्षा के. इसमें सभी लोग भाग भी नही ले सकते.

3. प्रधानमंत्री मोदी आरक्षण विरोधी है इसलिए इन उच्च पदों में आरक्षण को खत्म करने के लिए इसे एकल पद दिखाया गया है जबकि कुल पद 45 है. अगर इसमें आरक्षण लागू होगा तो इनमें से 50% पद दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलते. बिना परीक्षा की ऐसी सीधी नियुक्ति में SC, ST और OBC का सीधा 100% नुकसान हो गया है.

4. NDA समर्थित मोदी सरकार का यह फैसला गैरकानूनी है क्योंकि यह सरकार के खुद के DOPT द्वारा 2022 में जारी सर्कुलर का उल्लंघन है क्योंकि इसके अनुसार कोई भी टेम्परेरी भर्ती भी अगर 45 दिन से ज्यादा है तो इसमे आरक्षण लागू करना अनिवार्य है.

5. यह सरकार की नकारात्मक मानसिकता को दर्शाता है? क्योंकि अधिकांश IAS IPS अधिकारी देश के बड़े संस्थान जैसे IIT, IIM, AIIMS, JNU, IISC से आते है. फिर इनमे से कई के पास निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों में कार्य करने का अच्छा अनुभव भी है? फिर भी सरकार बाहर के निजी क्षेत्र के लोगों को क्यों बुलाना चाहती है? यह संदेहास्पद है? तथा सरकार की दलितों, पिछड़ों के प्रति नफ़रत को दर्शाता है.

6. यह भाई-भतीजावाद एवं विशेष विचारधारा के लोगों की बैक डोर एंट्री है अन्यथा तो IAS IPS में भर्ती युवा हर क्षेत्र के विशेषज्ञ है. जरूरत है सिर्फ सही अधिकारी की सही पोस्टिंग करने की. लेकिन पोस्टिंग के वक़्त मोदी सरकार अधिकारियों की जाति के आधार पर प्राथमिकता देती है उसी का कारण है कि केंद्रीय सरकार में सचिव स्तर पर SC/ST और OBC अधिकारी ना के बराबर है.

7. यह निर्णय समानता के सिद्धांत के खिलाफ है. एक IAS अधिकारी को भी JOINT SECRETARY (संयुक्त सचिव) बनने में कम से कम 16 साल लगते है लेकिन लेटरल एंट्री में निजी क्षेत्र के व्यक्ति को 15 साल सिर्फ किसी कंपनी में काम करने से सीधे JOINT SECRETARY बनाने की तैयारी है.

8. यह देश के भविष्य तथा देश की 90 फ़ीसदी बहुजन आबादी के साथ खिलवाड़ और समझौता जैसा है क्योंकि JS (संयुक्त सचिव) स्तर पर सरकार की नीतियां बनती है और काफी संवेदनशील मुद्दे डील किये जाते है. यहाँ पर निजी क्षेत्र से लोगों को उठाकर सीधे भर्ती करना देश की आर्थिक, सामरिक एवं डिजिटल सुरक्षा एवं गोपनीयता के साथ समझौते जैसा हो सकता है.

9. संविधान के ज़रिए UPSC की सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर संविधान की शपथ लेकर नियुक्त इस स्तर के IAS/ IPSअधिकारी सरकार की मंशा अनुसार पूर्णतः ग़लत कार्य नहीं करेंगे इसलिए इन पदों पर खास विचारधारा के खास लोगों को रखा जा रहा है.

10. इससे कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट (हितों का टकराव) भी पैदा होगा. अगर कोई टेलीकॉम कंपनी का अधिकारी आकर अगर संचार मंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाया जाएगा तो इसकी पूरी संभावना है कि यह व्यक्ति अपनी कंपनी के अनुसार सरकारी नीतियां बनाकर उसे फायदा पहुचाने की कोशिश करेगा.

11. यह एक गैर जिम्मेदाराना व्यवस्था है इसमें निजी क्षेत्र के व्यक्ति पर सरकार का कोई कंट्रोल नही होगा इससे ऐसी आशंका होगी कि वह व्यक्ति जिम्मेदारी और सत्यनिष्ठा के साथ काम नही कर पायेगा. अपने स्तर पर गलत कार्य कर ये निजी क्षेत्र के लोग देश छोड़ भाग जाएंगे अथवा भगा दिए जाएंगे.

12. ऐसी व्यवस्था में नीतियां कारपोरेट को ध्यान में रखकर बनेगी ना कि गाँव, गरीब, ग्रामीण, किसान और आम जनमानस व देशहित को ध्यान में रखकर.

13. पिछड़े, दलित और आदिवासियों को मोदी जी DECISION MAKING और POLICY MAKING में सम्मिलित क्यों नहीं करना चाहते?

14. क्या मोदी जी और NDA नेताओं को देश की आबादी के 90 फ़ीसदी SC/ ST और OBC में विशेषज्ञ नहीं मिलते? अगर मिलते? है? तो फिर उन्हें आजादी के 77 साल बाद भी अवसर क्यों नहीं मिलते? तथा उनका प्रतिनिधित्व नगण्य क्यों है?

15. यदि इन SC ST OBCऔर सामान्य वर्ग के गरीब तबकों से विशेषज्ञ नहीं मिलते है तो उसकी दोषी भी यह सरकार है , अगर संविधान के मार्फ़त भी उन्हें अब मौक़ा नहीं मिलेगा? तो फिर कब मिलेगा? क्या नीति निर्माण और निर्णय लेने वाले पदों पर फिर दलित पिछड़े कभी आ ही नहीं पायेंगे?

16. अगर मेरे आरोप गलत है तो मैं मोदी सरकार को चुनौती देता हूँ कि 2018 से अब तक सैंकड़ों पदों को लैटरल एंट्री के द्वारा भरा गया इनमें से कितने SC ST OBC की नियुक्ति की गयी? सरकार कुल नियुक्त आँकड़े और उनमें नियुक्त SC ST OBC के आँकड़े बताएँ? कोई हुआ ही नहीं इसलिए सरकार कभी यह आँकड़ा नहीं देगी?

17. दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का इन नियुक्तियों में आरक्षण समाप्त करवाने तथा संविधान प्रदत्त हक़-अधिकार छिनवाने में श्री चंद्रबाबु नायडू, नीतीश कुमार, जीतनराम माँझी, चिराग पासवान, अनुप्रिया पटेल, एकनाथ शिंदे, जयंत चौधरी सहित NDA के सहयोगी दल भी बराबर के भागीदार एवं दोषी है.

18. क्या लैटरल एंट्री के ज़रिए आरक्षण समाप्त कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, RSS और एनडीए के लोग यह संदेश देना चाहते है? कि दलित, पिछड़ा और आदिवासियों की जगह सचिवालय में बैठने की नहीं बल्कि शौचालय साफ़ करने में है?

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