2000 Rupees Note: 'रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया'( RBI) ने 19 मई को 2000 रुपये के नोट को चलन से बाहर करने का ऐलान किया है. आरबीआई की तरफ से 2,000 के नोटों को बदलने के लिए 30 सितंबर तक का वक्त दिया गया है. लोग इसे नोटबंदी 2.0 का नाम दे रहे हैं. आरबीआई की ओर से जारी सर्कुलर के बाद तय हो गया है कि सितंबर के बाद से देश में 2000 रुपये के नोट अवैध हो जाएंगे. हालांकि, ये तो तय था कि 2,000 रुपये के नोट को बंद किया जाएगा. मतलब 2,000 का नोट छपा ही था बंद होने के लिए. इसके पीछे कई कारण हैं...
- RBI की मजबूरी- नवंबर 2016 में पीएम मोदी ने नोटबंदी घोषित की थी. इस दौरान उन्होंने 1000 रुपये और 500 के नोटों को अवैध घोषित कर दिया था. उस वक्त आरबीआई का लक्ष्य अर्थव्यवस्था को तुरंत रीमोनेटाइज करना था. नोटबंदी की घोषणा के समय प्रचलन में नोटों के कुल मूल्य का 80 फीसदी से अधिक अवैध रूप से 500 और 1,000 रुपये करेंसी के पुराने नोट थे. यहां तक कि आरबीआई मुद्रा प्रेस में इन नोटों की प्रिंटिंग लगातार हो रही थी, जिसकी वजह से इनती बड़ी संख्या में नोटों को बदलना लगभग असंभव था. इसलिए आरबीआई के पास 2,000 रुपये का नोट छापना मजबूरी हो गई थी. इससे मार्केट में करेंसी का फ्लो आसानी से हो गया था और अर्थव्यवस्था डैमेज होने से बच गई थी.
- पहले दिन से ही विरोध- 2,000 के नोट का अर्थशास्त्रियों ने पहले दिन से विरोध किया था. दरअसल नोटबंदी का असली मकसद कालेधन पर प्रहार करना था. हालांकि, मार्केट में उथल-पुथल ना मचे इसके लिए सरकार को 2,000 रुपये का नोट लाना पड़ा था. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि 2,000 के नोट से जमाखोरी में इजाफा हो जाएगा. उधर आम लोग भी इतने बड़े नोट को स्वीकार नहीं कर पाएं. इसका सबसे बड़ा कारण था कि मार्केट में आज भी इतने बड़े नोट का आसानी से छुट्टा नहीं मिलता है.
- मार्केट से नोट पहले ही गायब- आरबीआई की ओर से 2000 रुपये के नोट को काफी पहले से मार्केट से निकालने की कोशिश की जा रही थी. ये प्रक्रिया काफी पहले से चल रही थी. 2018-19 से नए नोट बिल्कुल भी छापे नही गए और 2000 रुपये के नोटों का कलेक्शन किया जा रहा था. नोटबंदी के बाद 500 रुपये के नए नोट का सर्कुलेशन सामान्य होते ही बैंकों के एटीएम से 2000 रुपये के नोट गायब से हो गए थे. आम लोगों के पास अब बहुत कम ही नोट बचे हैं लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने 2000 के नोटों का इस्तेमाल कालाधन रखने में करना शुरू कर दिया था.
- नकली करेंसी में हुई बढ़ोत्तरी- नोटबंदी के बाद आतंकवादियों, नक्सलवादियों और नकली करेंसी छापने वालों की कमर टूट गई थी. ब्लैकमनी नहीं होने से जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में भी शांति स्थापित होने लगी थी. यहां पत्थरबाज गायब से हो गए हैं. लेकिन हाल के कुछ वर्षों नकली करेंसी में इजाफा हुआ है. 2016 से 2020 के बीच देश में बरामद किए गए नकली 2,000 रुपये के नोटों की मात्रा 2,272 से बढ़कर 2,44,834 हो गई है. रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में देश में कुल मिलाकर 2,272 नकली 2,000 रुपये के नोट पाए गए, 2017 में 74,898, 2019 में 90,566 और 2020 में 2,44,834 नोटों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई.
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- डिजिटल ट्रांजेक्शन- नोटबंदी के बाद से देश में डिजिटल ट्रांजेक्शन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. बाजार विश्लेषकों का मानना है कि देश में पेमेंट इकोसिस्टम का तेजी के साथ डिजिटलाइजेशन हुआ है. जिसकी वजह से इस बार इस फैसले का इकोनॉमी और मार्केट में कोई असर देखने को नहीं मिलेगा. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बार 2016 की तरह कोई बड़ा इश्यू दिखाई नहीं देगा. उनके अनुसार इस कदम से बाजार और अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि करेंसी का सर्कुलेशन पहले से ही कम है. साथ ही देश में डिजिटलदजेशन पेमेंट सिस्टम भी काफी मजबूत दिखाई दे रहा है.
- नोटों की समयसीमा पूरी- आरबीआई के मुताबिक, 2000 के करीब 89% नोट मार्च 2017 से पहले ही जारी हो गए थे. सरकार का कहना है कि ये नोट 4-5 साल तक अस्तित्व में रहने की उनकी सीमा पार कर चुके हैं या पार करने वाले हैं. ये भी एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से 2000 के नोट को सरकार बैन करने का फैसला किया है. आरबीआई के अनुसार, 31 मार्च 2018 को 6.73 लाख करोड़ रुपये के नोट बाजार के सर्कुलेशन में थे. यानी मार्केट में मौजूद कुल नोटों की हिस्सेदारी पहले 37.3% थी. वहीं 31 मार्च 2023 तो यह आंकड़ा घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपये रह गया, यानि चलन में मौजूद कुल नोटों में से 2000 रुपये की नोटों की हिस्सेदारी सिर्फ 10.8% ही रह गई है.