RLJD 'स्टेशन' पर रुकी उपेंद्र कुशवाहा की 'घुमंतू एक्सप्रेस', 2005 से ही काट रहे चक्कर, नहीं बन पाए बिहार के रामविलास पासवान
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RLJD 'स्टेशन' पर रुकी उपेंद्र कुशवाहा की 'घुमंतू एक्सप्रेस', 2005 से ही काट रहे चक्कर, नहीं बन पाए बिहार के रामविलास पासवान

उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की 'घुमंतू एक्सप्रेस' अब राष्ट्रीय लोक जनता दल यानी आरएलजेडी (RLJD) स्टेशन पर आकर ठहर गई है. पिछले काफी समय से वे नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के साथ मनमुटाव को लेकर सुर्खियां बटोर रहे थे. वैसे तो उपेंद्र कुशवाहा 2005 से ही घूम रहे हैं.

उपेंद्र कुशवाहा, राष्ट्रीय लोक जनता दल के अध्यक्ष

उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की 'घुमंतू एक्सप्रेस' अब राष्ट्रीय लोक जनता दल यानी आरएलजेडी (RLJD) स्टेशन पर आकर ठहर गई है. पिछले काफी समय से वे नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के साथ मनमुटाव को लेकर सुर्खियां बटोर रहे थे. वैसे तो उपेंद्र कुशवाहा 2005 से ही घूम रहे हैं. 2010 में घरवापसी यानी दोबारा नीतीश के साथ, 2014 में एनडीए (NDA) में गए और मोदी सरकार (Modi Govt) में मंत्री बने, 2019 में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो 2020 में पप्पू यादव (Pappu Yadav) के साथ विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2020) में दांव आजमाया. उसके बाद हालात को लेकर नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा ने आपस में समझौता किया और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जदयू में विलय हो गया. उपेंद्र कुशवाहा जदयू के संसदीय दल के अध्यक्ष बनाए गए और उन्हें विधान परिषद की सदस्यता भी दी गई. अब लोकसभा चुनाव से पहले 2023 में वे खुद की बनाई नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल के अध्यक्ष बन गए हैं.

  1. नई पार्टी कब तक अस्तित्व में रहेगी, देखना बाकी
  2. 2005 से लेकर अब तक ठिकाना ही खोज रहे 

भरोसे की कमी के चलते घूमते रहे चक्कर 

2005 के बाद से ही उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति इस दल से उस दल, इस गठबंधन से उस गठबंधन होती चली आ रही है. स्थायित्व न होने के कारण न उपेंद्र कुशवाहा को दूसरे दलों या गठबंधन पर भरोसा रहा और न ही उन पर किसी ने भरोसा किया. नीतीश कुमार से 2005 में अलग हो गए और 2010 में मिल गए. 2020 में फिर नीतीश कुमार के साथ हो लिए और 2023 में फिर किनारा कर लिए. इस तरह नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा ने मिलन और जुदाई का चौका लगा लिया है. 2013 में उपेंद्र कुशवाहा नई पार्टी के रूप में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाते हैं और 2014 में एनडीए के साथ हो लेते हैं. मोदी सरकार में उन्हें मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री का पद दिया जाता है लेकिन 2019 में उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन के साथ चले जाते हैं.

2020 के चुनाव के बाद जेडीयू में गए थे वापस 

2019 में महागठबंधन को बिहार में करारी शिकस्त हुई और उपेंद्र कुशवाहा अपनी सीट से भी हार गए. ठीक डेढ़ साल बाद बिहार विधानसभा चुनाव होने थे तो उपेंद्र कुशवाहा ने चुनाव में पप्पू यादव की पार्टी के साथ चुनाव लड़ना मुुनासिब समझा. इस चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को एक ढेला भी नसीब नहीं हुआ. उधर, इस चुनाव में नीतीश कुमार अपनी औकात में आ गए और फिर दोनों ने मिलने की सोची. फिर क्या था राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय कर लिया गया और उपेंद्र कुशवाहा बना दिए गए जेडीयू संसदीय दल के अध्यक्ष. हालांकि जब नीतीश कुमार से कुशवाहा का झगड़ा हुआ तब उपेंद्र कुशवाहा ने आरोप लगाया कि उन्हें जो पद दिया गया, वो केवल झुनझुना के बराबर था. उन्हें तो एक बैठक बुलाने का भी अधिकार नहीं था.

रामविलास पासवान की तरह आंकने की क्षमता नहीं 

उपेंद्र कुशवाहा के साथ शायद एक दिक्कत यह है कि वे रामविलास पासवान की तरह बिहार के राजनीतिक मौसम विज्ञानी बनना चाहते हैं पर शायद सबसे वश की बात नहीं है राजनीतिक मौसम विज्ञानी बनना. दरअसल, बिहार में एक रैली को संबोधित करते हुए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने रामविलास पासवान को राजनीतिक मौसम विज्ञानी कहकर संबोधित किया था. लालू प्रसाद यादव ने कहा था, रामविलास पासवान को पता नहीं कैसे जानकारी हो जाती है कि किस पार्टी की सरकार बनने वाली है और उसी पार्टी या गठबंधन से वे चिपक जाते हैं. हो सकता है उपेंद्र कुशवाहा भी रामविलास पासवान की राह पर चल रहे हों पर अब तक तो उनके हिस्से में 2014 को छोड़कर विफलता ही हाथ लगी है. अब देखना यह होगा कि राष्ट्रीय लोक जनता दल कितने दिनों तक अस्तित्व में रह पाती है या फिर उपेंद्र कुशवाहा फिर झोला उठाकर चल देंगे.

 

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