'बिहार' में पहुंचा 'पहाड़' तो ठंडक के बदले बढ़ गया बिहार का सियासी पारा, आखिर कांग्रेस चाहती क्या है?
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'बिहार' में पहुंचा 'पहाड़' तो ठंडक के बदले बढ़ गया बिहार का सियासी पारा, आखिर कांग्रेस चाहती क्या है?

बिहार लग रहा है इस बार केंद्र की सत्ता के लिए राजनीतिक दलों को सबसे उपजाऊ जमीन नजर आ रही है.

(फाइल फोटो)

पटना : बिहार लग रहा है इस बार केंद्र की सत्ता के लिए राजनीतिक दलों को सबसे उपजाऊ जमीन नजर आ रही है. एक तरफ भाजपा ने बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कई महीने पहले से संघर्ष शुरू कर दिया है तो वहीं भाजपा को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए राजद, कांग्रेस, जदयू सहित 7 सियासी दल बिहार में एकजुट हैं तो वहीं विपक्ष के अन्य दलों को एकजुट करने के लिए नीतीश कुामर लगातार संघर्ष कर रहे हैं. 

नीतीश कुमार लगातार अलग-अलग विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों के सुर भी नीतीश कुमार से मिलते नजर आ रहे हैं. कांग्रेस राहुल गांधी की सांसदी जाने के पहले जहां एक तरफ नीतीश के प्रस्ताव को ठुकरा चुकी थी वहीं अब नीतीश के वीपी सिंह वाले OSOC के फॉर्मूले को स्वीकार करने में अपनी दिलचस्पी दिखाती नजर आ रही है. नीतीश कुमार को कांग्रेस ने इस बार ऐसा इलू-इलू बोला है कि नीतीश भी गदगद हो गए हैं. 

अब बिहार में अचानक कांग्रेस महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत का आना जहां पहाड़ों जैसी ठंडक का सबको अंदेशा था हुआ उसके ठीक उलट हरीश रावत के बिहार दौरे ने सियासी पारा जरूर चढ़ा दिया. ऊपर से हरीश रावत का सीएम नीतीश से मुलाकात के बाद यह बयान की उनसे राजनीतिक बातचीत हुई उशने तो पारा हाई करने का ही काम किया. 

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हालांकि हरीश रावत ने इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी की उनके पार्टी हाईकमान ने किसी खास मिशन के लिए उन्हें बिहार तो नहीं भेजा. वह मीडिया के सामने यह कहते रहे कि नीतीश कुमार उनके पुराने दोस्त हैं लेकिन सोशल मीडिया पर अपनी नीतीश के साथ तस्वीर जारी कर जो संदेश लिखा कि 2024 में विपक्ष एकजुट होकर आवाज बुलंद करेगा और इस एकता की आवाज नीतीश कुमार होंगे ने कई सियासी सवालों के जवाब दे दिए. उन्होंने मीडिया के सवालों से बचने के लिए भले कह दिया कि नीतीश के अच्छे कामों की सराहना करने के लिए वह गए थे. वह अच्छा काम कर रहे हैं और अच्छे काम को नमस्कार करने का दायित्व सबका बनता है. 

हरीश रावत ने इसके सात कह दिया की दो राजनीतिक लोग मिलेंगे तो चर्चा तो राजनीतिक ही होगी क्योंकि हम कोई संत तो नहीं है. दोनों के बीच काफी लंबी मुलाकात चली, इससे ठीक पहले नीतीश राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की मुलाकात हुई थी और तब खरगे ने कहा था कि बातचीत सकारात्म रही. अह राजनीतिक जानकार इसे भी उसी कड़ी से जोड़कर देख रहे हैं. 

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